अयोध्या भगवान श्रीराम की जन्मभूमि है। यहां महल, मंदिर और तमाम तरह के आश्रम बने हुए थे। लेकिन गुलामी के काल में यह सभी तोड़ दिए गए। कहा गया कि लुटेरे बाबर के काल में राम मंदिर तोड़कर वहां पर बाबरी मस्जिद बना दी गई थी। तभी से यह मुद्दा चला आ रहा है। आओ जानते हैं कि आखिर में पुरातत्व विभाग और हाई कोर्ट की रिपोर्ट इस पर क्या कहती है।
- 1993 : भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने संविधान की धारा 143 (ए) के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय को एक प्रश्न 'रेफर' किया। प्रश्न था, 'क्या जिस स्थान पर ढांचा खड़ा था वहां राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के निर्माण से पहले कोई हिन्दू मंदिर या हिन्दू धार्मिक इमारत थी? इसके जवाब में कोर्ट की पांच जजों की पीठ में से दो जजों ने कहा था कि इस सवाल का जवाब तभी दिया जा सकता है जब पुरातत्व और इतिहासकारों के विशिष्ट साक्ष्य हों और उन्हें जिरह के दौरान परखा जाए।
- इस रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट ने मुद्दे को लेकर सरकार से और रुख स्पष्ट करने को कहा था जिसके जवाब में तत्कालीन सालिसिटर जनरल ने 14 सिंतबर 1994 को लिखित जवाब दाखिल कर कोर्ट में अयोध्या मसले पर सरकार का नजरिया रखा था। जिसमें सरकार की ओर से कहा गया था कि 'सरकार धर्मनिरपेक्ष और सभी धर्मावलंबियों के साथ समान व्यवहार की नीति पर कायम है। अयोध्या में जमीन अधिग्रहण कानून 1993 और राष्ट्रपति की ओर सुप्रीम कोर्ट को भेजा गया रेफरेंस भारत के लोगों में भाईचारा और पब्लिक आर्डर बनाए रखने के लिए है।'
- इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने करीब 20 महीने सुनवाई की और 24 अक्टूबर, 1994 को अपने निर्णय में कहा- इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ विवादित स्थल के स्वामित्व का निर्णय करेगी और राष्ट्रपति द्वारा दिए गए विशेष 'रेफरेंस' का जवाब देगी।
- तीन न्यायमूर्तियों (दो हिन्दू और एक मुस्लिम) की लखनऊ खंडपीठ की पूर्ण पीठ ने 1995 में मामले की सुनवाई शुरू की। मुद्दों का पुनर्नियोजन किया गया। मौखिक साक्ष्यों को रिकार्ड करना शुरू किया गया।
- राष्ट्रपति के 'रेफरेंस' के संदर्भ में 2002 में अयोध्या में विवाद की सुनवाई कर रहे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सच्चाई का पता लगाने के लिए एएसआई को वहां की खुदाई करने का निर्देश दिया। उस वक्त एएसआई को निर्देश देने वाले न्यायाधीश सुधीर नारायण अग्रवाल थे। एएसआई की खुदाई में पारदर्शिता और दोनों समुदाय के मौजूदगी का पूरा ध्यान रखे जाने के आदेश भी दिए गए।
- मार्च-अगस्त 2003: इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं।
- अगस्त, 2002 में राष्ट्रपति के विशेष 'रेफरेंस' का सीधा जवाब तलाशने के लिए उक्त पीठ ने उक्त स्थल पर 'ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार सर्वे' का आदेश दिया जिसे कनाडा से आए विशेषज्ञों के साथ तोजो विकास इंटरनेशनल द्वारा किया गया। अपनी रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने ध्वस्त ढांचे के नीचे बड़े क्षेत्र तक फैले एक विशाल ढांचे के मौजूद होने का उल्लेख किया जो वैज्ञानिक तौर पर साबित करता था कि बाबरी ढांचा किसी खाली जगह पर नहीं बनाया गया था, जैसा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने दिसंबर, 1961 में फैजाबाद के दीवानी दंडाधिकारी के सामने दायर अपने मुकदमे में दावा किया था। विशेषज्ञों ने वैज्ञानिक उत्खनन के जरिए जीपीआरएस रिपोर्ट की सत्यता हेतु अपना मंतव्य भी दिया।
- जनवरी 2003 : रेडियो तरंगों के जरिए ये पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर के नीचे किसी प्राचीन इमारत के अवशेष दबे हैं, कोई पक्का निष्कर्ष नहीं निकला।
- अप्रैल 2003 : इलाहाबाद हाइकोर्ट के निर्देश पर पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल की खुदाई शुरू की, जून महीने तक खुदाई चलने के बाद आई रिपोर्ट में कहा गया है कि उसमें मंदिर से मिलते-जुलते अवशेष मिले हैं। ध्वस्त ढांचे की दीवारों से 5 फुट लंबी और 2.25 फुट चौड़ी पत्थर की एक शिला मिली। विशेषज्ञों ने बताया कि इस पर बारहवीं सदी में संस्कृत में लिखीं 20 पंक्तियां उत्कीर्ण थीं। पहली पंक्ति की शुरुआत 'ओम नम: शिवाय' से होती है। 15वीं, 17वीं और 19वीं पंक्तियां स्पष्ट तौर पर बताती हैं कि यह मंदिर 'दशानन (रावण) के संहारक विष्णु हरि' को समर्पित है। मलबे से करीब ढाई सौ हिन्दू कलाकृतियां भी पाई गईं जो फिलहाल न्यायालय के नियंत्रण में हैं।
- अगस्त 2003 : पुरातात्विक विभाग के सर्वे में कहा गया कि जहां मस्जिद बनी है, कभी वहां मंदिर होने के संकेत मिले हैं। भूमि के अंदर दबे खंबे और अन्य अवशेषों पर अंकित चिन्ह और मिली पॉटरी से मंदिर होने के सबूत मिले हैं।
- 2003 में उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को वैज्ञानिक तौर पर उस स्थल की खुदाई करने और जीपीआरएस रिपोर्ट को सत्यापित करने का आदेश दिया। अदालत द्वारा नियुक्त दो पर्यवेक्षकों (फैजाबाद के दो अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी) की उपस्थिति में खुदाई की गई। संबंधित पक्षों, उनके वकीलों, उनके विशेषज्ञों या प्रतिनिधियों को खुदाई के दौरान वहां बराबर उपस्थित रहने की अनुमति दी गई। निष्पक्षता बनाए रखने के लिए आदेश दिया गया कि श्रमिकों में 40 प्रतिशत मुस्लिम होंगे।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा हर मिनट की वीडियोग्राफी और स्थिर चित्रण किया गया। इस खुदाई में कितनी ही दीवारें, फर्श और बराबर दूरी पर स्थित 50 जगहों से खंभों के आधारों की दो कतारें पाई गई थीं। एक शिव मंदिर भी दिखाई दिया। जीपीआरएस रिपोर्ट और भारतीय सर्वेक्षण विभाग की रिपोर्ट अब उच्च न्यायालय के रिकार्ड में दर्ज हैं।
- ऐतिहासिक निर्णय : 30 सितम्बर, 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खण्डपीठ ने विवादित ढांचे के संबंध में ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति एसयू खान ने एकमत से माना कि जहां रामलला विराजमान हैं, वही श्रीराम की जन्मभूमि है।
- उक्त तीनों माननीय न्यायधीशों ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि जो विवादित ढांचा था वह एक बड़े भग्नावशेष पर खड़ा था। न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने कहा कि वह 12वीं शताब्दी के राम मंदिर को तोड़कर बनाया गया था, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा कि वह किसी बड़े हिन्दू धर्मस्थान को तोड़कर बनाया गया और न्यायमूर्ति खान ने कहा कि वह किसी पुराने ढांचे पर बना। पर किसी भी न्यायमूर्ति ने उस ढांचे को मस्जिद नहीं माना। सभी ने उस स्थान को रामजन्मभूमि ही माना।
- 29 अक्टूबर 2018 : अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई एक बार फिर जनवरी 2019 तक के लिए टल गई थी। अयोध्या मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मसले पर अगली सुनवाई जनवरी 2019 में एक उचित पीठ के समक्ष होगी, लेकिन तब भी नहीं हुई। हालांकि अगस्त 2019 में लगातर सुनवाई हो रही है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 में अयोध्या की विवादित जमीन के तीन भाग करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं के समूह पर सुनवाई अगले साल करने का निर्देश दिया। हाई कोर्ट ने 2010 के अपने फैसले में विवादित स्थल को तीन भागों रामलला, निर्मोही अखाड़ा व मुस्लिम वादियों में बांटा था।