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ड्रग्स की घातक समस्या से जूझ रहा संसार

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शरद सिंगी

इस समय दुनिया के अनेक देश ड्रग्स संबंधी अपराधों और हत्याओं से परेशान हैं। सुदूर पूर्व के देश फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो के बारे में हम पहले भी लिख चुके हैं कि किस तरह उन्होंने मानव अधिकारों की परवाह किए बगैर नशेड़ियों को देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए। दुनियाभर में उनकी आलोचना हुई किंतु उन्होंने किसी की नहीं सुनी और हजारों की संख्या में नशा कर अपराध करने वालों का न्याय सड़क पर गोली मारकर ही कर दिया गया। फिलीपींस इस समस्या से बहुत हद तक अब मुक्ति पा चुका है, किंतु नशे की समस्या से ग्रस्त हर देश इस तरह के त्वरित न्याय को लागू नहीं कर सकता। मैक्सिको के सामने भी यही एक बड़ी चुनौती है और उसने जब अपने पिछले वर्ष के आंकड़े घोषित किए तो दुनिया सचमुच विचलित हो गई।


नए सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष मैक्सिको में लगभग 34,000 लोगों की हत्या कर दी गई थी। इस प्रकार मैक्सिको के आधुनिक इतिहास का यह सबसे रक्तरंजित वर्ष रहा। 2006 के बाद से इस देश में रक्तपात बढ़ रहा है, जब राष्ट्रपति फेलिप काल्डेरोन ने ड्रग माफिया से लड़ने के लिए मैक्सिको के सशस्त्र बलों की तैनाती की। सेना की तैनाती से वहां हिंसा कम होने की बजाय उलटे आपराधिक गुटों के बीच विवाद और हिंसा अधिक तेज हो गए। साथ ही नागरिकों के खिलाफ व्यापक सैन्य दुरुपयोग के आरोप भी सरकार पर लगे। मैक्सिको के इस ड्रग युद्ध की शुरुआत के बाद से अब तक 2,50,000 से अधिक लोगों की हत्या कर दी गई है और 35,000 लोग गायब हो गए हैं।

दिसम्बर 2018 में मैक्सिको में नए राष्ट्रपति आंद्रेस निर्वाचित हुए हैं। आंद्रेस के सामने आने वाली सभी चुनौतियों में से, हिंसा पर अंकुश लगाना सबसे बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा है कि "देश में शांति स्थापित करने के लिए सरकार को कई विकल्पों पर विचार करना चाहिए। उन्होंने प्रवर्तन या जबरिया कानून का उपयोग किए बिना अपराध को कम करने के लिए कई उपचारों पर विचार करने पर जोर दिया, जिसमें निम्नस्तरीय अपराधियों को माफी देना, अपराध के आकाओं के साथ बातचीत करना, उनके सिंडिकेट को खत्म करने और सैनिकों, पुलिस और सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा किए गए मानवाधिकारों के उल्लंघन पर नियंत्रण करना आदि शामिल है।

मैक्सिको की यह समस्या अमेरिका के लिए भी सिरदर्द बनी हुई है। मैक्सिको की सीमाएं अमेरिका के साथ खुली होने की वजह से अपराधी, अपने देश में अपराध कर के अमेरिका भाग जाते है। इसी समस्या को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने मैक्सिको की सीमा पर दीवार बनाने का चुनावी वादा किया था जिस पर वे अब भी अड़े हुए हैं, किंतु मानवाधिकारों के संरक्षक और ट्रम्प विरोधी लोग ऐसा होने नहीं देना चाहते। सत्ता और विरोधी दलों के इस टकराव के कारण अमेरिका में इमरजेंसी सेवाओं को छोड़कर सारे सरकारी विभाग पिछले एक माह से अधिक समय से बंद पड़े हैं। कोई दल झुकने को तैयार नहीं। ट्रम्प तो चाहते हैं कि ड्रग अपराधियों के अमेरिका आने पर सख्त नियंत्रण लगे परंतु वहीं विरोधियों का मानना है कि दीवार बनाना सही विकल्प नहीं है क्योंकि इससे पड़ोसी देश बेइज्जत होता है।

सन् 2017 में चीन, ईरान, सऊदी अरब, सिंगापुर आदि देशों में भी लगभग एक हज़ार ड्रग स्मगलिंग अपराधियों को मौत की सजा दे दी गयी थी। इतनी कड़ी सजा होने के बावजूद भी धन के लालच में लोग ड्रग्स को स्मगल करते हैं या माफिया के आकाओं द्वारा लालच देकर गरीब लोगों को ड्रग्स का वाहक बनाया जाता है। विश्व में यह एक बड़ी समस्या है और मानव अधिकारों के चलते भारत सहित पश्चिमी देशों में ड्रग्स का सेवन करने या रखने के अपराध में मौत की सजा नहीं दी जाती। पंजाब के कई इलाके इस समस्या से जूझ रहे हैं। नशे की आदत के बाद आदमी बेकार हो जाने से अपराधी और बन जाता है।

दुनिया के लगभग सारे देश किसी न किसी प्रकार से इस समस्या से प्रभावित हैं और वैश्विक संस्थाएं भी इस समस्या से निपटने के लिए कोई कारगर नीति नहीं बना पाई हैं। देश गरीब हो या संपन्न और समर्थ, सभी के लिए ही नशेड़ी समाज एक घुन की तरह है जो देश की कानून व्यवस्था तो चौपट करता ही है, देश की युवा पीढ़ी को भी निष्क्रिय और अनुत्पादक बना देता है जिससे निपटने का तरीका अभी किसी के पास नहीं। सच कहें तो फिलीपींस का "गोली मारो" समाधान कारगर तो है किंतु जायज नहीं और जो जायज है वह कारगर नहीं। हमारे इस आधुनिक और प्रगतिशील समाज में कई वरदान तो हैं परंतु उनके साथ कुछ अभिशाप भी छुपे हुए हैं और शायद ड्रग्स की घातक लत उनमें से एक है।

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