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ट्रंप पर मुकदमा : भारत की अदालतों के लिए नजीर है!

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अनिल जैन

अमेरिकी और यूरोपीय सभ्यता-संस्कृति तथा वहां की जीवनशैली की हम लाख बुराई करें, लेकिन इस तथ्य से कोई इनकार नहीं कर सकता कि कानून का वास्तविक शासन वहीं चलता है और वहां की संवैधानिक संस्थाएं बिना किसी दबाव-प्रभाव या लालच के अपने कर्तव्यों के प्रति पूरी सजग रहकर काम करती हैं।
 
अमेरिका की एक संघीय अदालत का अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ एक फैसला इस सिलसिले में ताजा मिसाल है, जो दुनिया भर की तमाम अदालतों, खासकर भारत की तो हर छोटी-बडी अदालत के लिए एक नजीर है, जिनकी भूमिका और विश्वसनीयता पर इन दिनों संदेह और विवादों के बादल मंडरा रहे हैं। उनके फैसलों पर तरह-तरह के प्रश्न उठ रहे हैं।
 
कोलंबिया जिले के यूएस डिस्ट्रिक्ट जज एमेट जी. सुलीवन ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ मुकदमा चलाने की डेमोक्रेटिक पार्टी की एक अपील को मंजूरी दी है। विधि विभाग के वकील ने मुकदमे के बीच मे उच्च न्यायालय मे अपील करने और इस दौरान मुकदमे की सुनवाई रोकने की मांग की थी, लेकिन अदालत ने यह मांग नहीं मानी। यानी अब ट्रंप के खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकेगा। वहां के सांसद सूचनाएं जुटाने के लिए समन भेज सकेंगे।
 
डेमोक्रेटिक पार्टी के करीब दो सौ सांसदों की ओर से दायर इस अपील में कहा गया है कि अमेरिकी संविधान राष्ट्रपति को बिना संसद की अनुमति के किसी भी सरकार से कोई भी उपहार स्वीकार करने की इजाजत नहीं देता है। इस संवैधानिक प्रावधान का पालन अभी तक लगभग सभी अमेरिकी राष्ट्रपतियों ने किया है, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति रहते हुए संघीय सरकारों और विदेशों से उपहार लेते रहे हैं। ऐसा करते हुए वे देश के संविधान की सरासर तौहीन कर रहे हैं।
 
अपील में यह भी आरोप लगाया गया है कि ट्रंप ने राष्ट्रपति बनने के बाद भी संवैधानिक प्रावधानों की अनदेखी करते हुए अपने कारोबारी रिश्ते खत्म नहीं किए हैं, जबकि संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति पद रहते हुए कोई भी व्यक्ति कारोबारी गतिविधियों से जुड़ा नहीं रह सकता। यह एक तरह से सांसदों के कामकाज में बाधा पहुंचाने जैसा है। डेमोक्रेटिक पार्टी के इन आरोपों पर ही अदालत ने मुकदमा चलाने की मंजूरी दी है। अदालत के इस फैसले का अमेरिकी संसद के निचले सदन यानी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी ने स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति संविधान से ऊपर नहीं हो सकता, चाहे वह राष्ट्रपति ही क्यों न हो। 
 
वैसे यह पहला मौका नहीं है जब राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप पर किसी मामले में मुकदमा चलाने की मंजूरी दी गई है। इससे पहले भी यौन शोषण के एक पुराने मामले में पिछले साल मार्च के महीने में न्यूयॉर्क की एक अदालत ने ट्रंप के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी थी।
 
गौरतलब है कि अदालत का फैसला ऐसे वक्त में आया है जब ट्रंप अगले वर्ष यानी 2020 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक गोलमेज कार्यक्रम में शामिल होने के लिए वॉशिंगटन स्थित अपने ही नाम वाले होटल में शामिल हुए। यह होटल व्हाइट हाउस के बिलकुल करीब है। इस कार्यक्रम में ट्रंप के चुनावी अभियान के लिए धन जुटाने के अभियान की शुरुआत की गई।
 
दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप का विवादों से पुराना नाता है। वे जब राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने, तभी से उनके बयानों, उनके जीवन से जुड़ी गतिविधियों, कारोबारी अनियमितताओं, चुनावी धांधली आदि को लेकर तरह-तरह के आरोप उन पर लगते रहे हैं। राष्ट्रपति बनने के बाद उनके कई फैसले भी विवादों में रहे। शुरुआती दिनों में ही उनके फैसलों को अदालतों में चुनौती मिलने लगी थी।

दूसरे देशों से आने वाले शरणार्थियों पर रोक लगाने संबंधी उनके फैसले पर भी एक संघीय अदालत ने रोक लगा दी थी, जिससे दुनिया भर उनकी काफी किरकिरी हुई थी। ट्रंप के अब तक के कार्यकाल में उनके कामकाज के तौर तरीकों के लेकर भी गहरा असंतोष व्यक्त किया जाता रहा है। वे कई मामलों में संसद को विश्वास में लिए बगैर मनमाने तरीके से फैसले लेते रहे हैं।
 
ट्रंप की यह कार्यशैली और स्वेच्छाचारिता सिर्फ विपक्षी पार्टी को ही नहीं, बल्कि उनकी अपनी ही पार्टी के नेताओं और आम लोगों को भी खटकती है। यही वजह है कि जब संघीय अदालत में उन पर मुकदमा चलाने की अपील की गई और उसे खारिज कराने के लिए ट्रंप प्रशासन द्वारा की गई तमाम कोशिशों के बावजूद अदालत ने उसे स्वीकार कर लिया तो व्यापक तौर पर उसका स्वागत हुआ। विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी ने ही नहीं, बल्कि ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के भी कई नेताओं ने दबे स्वरों में अदालत के फैसले को जायज ठहराया।
 
अमेरिका में राष्ट्रपति को बहुत ताकतवर माना जाता है। उसकी तरफ पूरी दुनिया की नजर रहती है। उसके आचरण और फैसलों से सिर्फ अमेरिका के ही नहीं बल्कि दुनिया के बहुत सारे मामलों पर असर पड़ता है। इसलिए जब इस सर्वोच्च पद के दायित्वों का निर्वाह कर रहे व्यक्ति पर अनैतिक या संविधान विरोधी आचरण करने का आरोप लगता है तो स्वाभाविक ही अमेरिका की छवि पर बट्टा लगता है। मगर वहां की जिस संघीय अदालत के न्यायाधीश ने ट्रंप के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दी है, उसका साहस और अपने देश के संविधान के प्रति उसकी निष्ठा भी पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है।
 
ट्रंप को शायद लगता होगा कि वे जिस तरह राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित कर सत्ता तक पहुंच गए, उसी तरह अपने फैसलों और मनमानियों पर लोगों को चुप्पी साधे रखने के लिए भी मजबूर कर सकेंगे। लेकिन उनके ही देश की अदालत ने उनका यह मुगालता फिलहाल तो दूर कर ही दिया। अदालत ने ट्रंप को बता दिया कि वे खुद को देश के कानून और संविधान से परे नहीं मान सकते।  (इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
 

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