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Corona Virus : मानव बनाम महामारी

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अनिल त्रिवेदी (एडवोकेट)

, सोमवार, 11 मई 2020 (15:34 IST)
युद्धशास्त्र का यह सामान्य सिद्धांत है कि हमलावर को परास्त करने के लिए जिन पर हमला होता है, उन सबको पूरी एकाग्रता से हमलावर को घेरकर परास्त करना चाहिए। हमारी इस विशाल धरती के सबसे बुद्धिशाली मानवों पर ही धरती के हर हिस्से पर महामारी का हमला हुआ है।
 
युद्धशास्त्र के कायदे से तो इस धरती के बुद्धिनिष्ठ मनुष्यों को वैश्विक एकजुटता के साथ इस महामारी से मुकाबला करना चाहिए। पर देश और दुनिया के मनुष्य एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं कि महामारी फैलाने के लिए ये जवाबदार तो वो कहे मैं नहीं वो जवाबदार।
 
एक तरफ हम दावा कर रहे हैं कि हम सब महामारी से युद्ध लड़ रहे हैं। तो दूसरी तरफ मनुष्य सारी दुनिया में आपस में संवाद की जगह विवाद कर रहे हैं। एक दूसरे पर ऐसे दोषारोपण कर रहे जो सामान्य काल में भी हम एक दूसरे पर नहीं लगाते। महामारी तो सारी दुनिया में फैल गई, हम सब एकजुट हो महामारी का मुकाबला करने से चूक गए, यही आज की दुनिया और दुनिया के मानव मनों की बुनियादी कमी है कि हम समस्या का समाधान करने के बजाय मन की संकीर्णता में ही उलझते रहते हैं। ध्यान के भटकाव से ध्येय हासिल नहीं होता। 
 
महामारी काल में समूची मनुष्यता का एक समान लक्ष्य महामारी के निरंतर विस्तार को हिलमिल कर रोकना होना चाहिए। पूरी दुनिया में महामारी के विस्तार का मुख्य कारक हम सबकी इस महामारी के स्वरूप को लेकर असमझ और सारी दुनिया के लोगों में आपसी समझ से ज्यादा नासमझी का होना बनता जा रहा हैं। हम सब मनुष्यों की आपसी समझदारी ही महामारी के महाविस्तार को रोकने में हम सबकी मददगार हो सकती है।
 
मनुष्य की सबसे बड़ी विशेषता यह हैं कि वह निरंतर गतिशील रहा है और हर काल की चुनौतियों से अपने सारे  विरोधाभासों के साथ विपरीत से विपरीत स्थिति में भी मनुष्यों ने अपनी अंतहीन कोशिशों को न तो कभी विराम  दिया है न ही भविष्य में भी किसी भी परिस्थिति में मनुष्य की कोशिशें कभी समाप्त होने वाली हैं।
 
कोशिश करने वालों की हार का सवाल ही पैदा नहीं होता है। हो सकता हैं हम तत्काल सफल न हो पर अपनी असफलताओं से हमें नया रास्ता सूझे। जीवन की यही जीवनी शक्ति होती है कि वो हर परिस्थिति से जूझता रहता है, इसी से जीवन सीधा सपाट एक मार्गी नहीं होता है।
 
इस समय हर रंग और ढंग की सरकारी और असरकारी संस्थाएं, समाज और व्यवस्थाएं अपनी-अपनी समझ संसाधनों और संकल्प अनुसार महामारी के विस्तार को रोकने का प्रयास निरन्तर कर रही हैं। फिर भी सारी दुनिया में हिलमिल कर इस वैश्विक चुनौती का सामना करने की व्यापक समझदारी का भाव लगभग छह माह बीतने पर भी पूरी दुनिया के पैमाने पर नहीं उभर पाया है।
 
इस महामारी ने न केवल चिकित्सा शास्त्रीय चुनौती खड़ी की है वरन मानव जीवन के हर आयाम में यथास्थिति में बदलाव हेतु चुनौतियां मानव जीवन के सामने खड़ी की हैं, जिसका समाधान समूची दुनिया को निकालना और निरापद जीवन की राह बनाना आज की सबसे बड़ी चुनौती है।
 
महामारी से स्वास्थ्य और चिकित्सा को लेकर कई नई चुनौतियां सारी दुनिया में उभरी हैं। जैसे मरीज, स्वास्थ्यकर्मी और चिकित्सक की जीवन सुरक्षा के व्यापक और निरापद उपायों की खोज हेतु वैश्विक स्तर पर संवाद सहयोग का विस्तार। हवाई, जल और थलमार्गीय यातायात में महामारी से बचने हेतु सुरक्षा उपायों में एकरूपता का निर्धारण सारी दुनिया में जरूरी है। आबादी के धनत्व के आधार पर स्थानीय स्तर पर निजी और सार्वजनिक यातायात संचालन के दौरान सुरक्षा उपायों खासकर महामारी काल के दौरान और बाद में परिपालन करने हेतु मापदंडों का निर्धारण। 
 
महामारी के दौर में यदि सारी दुनिया में मानव जीवन को लेकर देश की सीमाओं से परे सोच समझ का विस्तार होना आज की पहली प्राथमिकता है। संकट काल में एक दूसरे की सुरक्षा और सार संभाल की एक साझा वैश्विक समझ का स्थायी भाव विकसित होना समूची मनुष्यता के निरापद जीवन की ओर एक मजबूत कदम होगा।
 
महामारी के काल में मनुष्य के अंतरमन में यदि घर से दूर हैं तो किसी भी तरह और किसी भी कीमत पर घर पहुंचने का भाव बहुत गंभीर रूप से उभरा। जो हम सबके जीवन की नई चुनौती है, जिसे स्वीकारना और दुनिया के हर हिस्से को घर जैसा आपातकाल में मानना यह भाव ही हम सबको अपने अंदर प्रतिष्ठित करना ही आज का सबसे बड़ा सबक है। विदेश और देश का भाव तभी कम हो सकता है जब हम समूची दुनिया को अपना घर और घर को सारी दुनिया का हिस्सा समझें।
 
आज की दुनिया में जीवन को इतना निरापद और सुरक्षित बनाने के मार्ग पर सारी दुनिया को चलना होगा कि दुनिया के सारे मनुष्यों के मन से देश-विदेश और घर से दूर का भाव ही विदा हो जाए। हमारे देश के महानगरों और बड़े शहरों में जो शहरी जीवन को और मजबूत बनाने के लिए गए थे वे इतने भयाक्रांत हो गए जीवन सुरक्षा के लिए दो ढाई हजार किलोमीटर पैदल चलने को भी बहुत बड़ी संख्या में निकल पड़े। महानगर या बड़े शहर के पास भी कोई उपाय और दृष्टि ही दिखाई नहीं दी और लोगों के पास भी कोई विकल्प या निरापद उपाय नहीं ।सरकारें भी पूर्वानुमान करने में सफल नहीं हुईं। 
 
जब देश में घर की याद इस तीव्रता से मन में जगी तो विदेश में रोजगार या अध्ययन के लिए मनुष्यों की मनःस्थिति को सारी दुनिया को समझना होगा। देश-विदेश का भेद खत्म कर निरापद दुनिया और मन बनाना हम सबकी काल की चुनौती है।
 
महामारी के दौर में मानव का व्यवहार, उससे उभरे सवाल, देश-दुनिया की सरकारों की मानवीय जीवन की गरिमा की समझ और कार्यप्रणाली। देश दुनिया के लोगों के मन में अपने निजी और सार्वजनिक जीवन में प्राथमिकता के साथ बदलाव के संकल्प के साथ ही हम अपने अभी तक के जीवन क्रम की सामान्य लापरवाही को विदा नहीं करेंगे तब तक हम सारी दुनिया में निरापद जीवन की स्थापना करने में सफल नहीं होंगे।
 
मनुष्य समाज चुनौतियों से निरंतर सीखता है और अपने जीवन क्रम में बदलाव लाता रहता है। महामारी ने हम सभी मनुष्यों के निजी और सार्वजनिक कार्यकलापों में बदलाव का स्पष्ट संदेश दिया है। इस संदेश पर अमल ही आने वाले काल में हम सबके जीवन की दशा और दिशा तय करेगी। महामारी को जो करना था उसने अपने स्वरूप का विस्तार कर वह करना शुरू कर दिया अब हम सब मनुष्यों की बारी है। हम हिलमिल कर अपने दिल-दिमाग का विस्तार करेगें या हमेशा की तरह असमंजस में ही बने रहेंगे?

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