Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

अमेरिका के लिए चीन बना इतिहास की सबसे बड़ी चुनौती

हमें फॉलो करें अमेरिका के लिए चीन बना इतिहास की सबसे बड़ी चुनौती
webdunia

राम यादव

अमेरिका के उप विदेश मंत्री कर्ट कैंपबेल ने चीन से सबसे बड़े खतरे की चेतावनी दी है। साथ ही यूरोपीय देशों से उसके विरुद्ध कड़े प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया है। फ्रांस के अंतरराष्ट्रीय टेलीविजन चैनल 'फ्रांस 24 की' एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी उप विदेश मंत्री कैंपबेल ने अमेरिकी संसद की प्रतिनिधि सभा से हाल ही में कहा कि अमेरिका के इतिहास में चीन उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

कैंपबेल का कहना था कि सोवियत संघ वाले समय का शीतयुद्ध चीन द्वारा पेश की गई आज की विविध चुनौतियों की तुलना में फ़ीका है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह सिर्फ एक सैन्य ख़तरा ही नहीं है, बल्कि एक ऐसी चुनौती है, जो प्रौद्योगिकी और दक्षिणवर्ती विश्व (ग्लोबल साउथ) को भी प्रभावित करती है।

अमेरिका की चिंताओं से यूरोप सहमत : फ़्रांस 24 की रिपोर्ट है कि कैंपबेल ने अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की विदेशी मामलों संबंधी समिति से कहा कि हमें यूरोप को भी चीन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करना होगा। चीन से प्रतिस्पर्धा करने के लिए अमेरिका को उन्नत प्रौद्योगिकियों में अपना निवेश उल्लेखनीय रूप से बढ़ाना होगा। कैंपबेल ने अमेरिकी जहाज़ निर्माण और रक्षा उद्योगों में तेज़ी लाने के महत्व पर भी बल दिया।

अमेरिका के सामने एक नई समस्या यह है कि चीन पर ध्यान केंद्रित करने के राष्ट्रपति जो बाइडन के प्रयासों में रूस-यूक्रेन युद्ध, और अब अपने अरबी पड़ोसियों के साथ इसराइल की वर्तमान लड़ाई भी बाधा बनकर शामिल हो गई है। अमेरिकी सरकार चीन द्वारा रूस को प्रौद्योगिकी निर्यात की कड़ी आलोचना करती है, क्योंकि इससे रूस को यूक्रेन में युद्ध के लिए अपने सैन्य उत्पादन बढ़ाने में सहायता मिलती है। 'फ़्रांस 24' के अनुसार, अमेरिका के अधिकांश यूरोपीय सहयोगी रूस के साथ चीन के संबंधों के बारे में अमेरिकी चिंताओं को साझा करते हैं।

'फ़्रांस 24' का साथ ही यह भी कहना है कि अमेरिका और चीन के बीच तनावों के बावजूद नरमी के संकेत भी मिल रहे हैं। पिछले साल राष्ट्रपति जो बाइडन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच एक शिखर सम्मेलन के बा, चीन ने कुछ अमेरिकी मांगों पर सहमति व्यक्त की, जिनमें सैन्य-संचार चैनलों को बहाल करना और 'फेंटानील' जैसे ख़तरनाक मादक द्रव्यों से निपटने के उपाय शामिल थे।

चीन द्वारा संभावित आक्रमण का डर : इधर कुछ समय से चीन अपने नन्हे पड़ोसी ताइवान को निगल जाने के लिए जिस तरह व्याकुल है, उसे देखते हुए अमेरिका ने ताइवान पर संभावित चीनी आक्रमण के प्रतिकार की तैयारी तेज़ कर दी है। कहा जाता है कि अमेरिकी नौसेना की एक विशिष्ट इकाई भी इस संभावित परिदृश्य से निपटने के लिए प्रशिक्षण ले रही है।

अमेरिका, दशकों से ताइवान के प्रति तथाकथित रणनीतिक अस्पष्टता की एक ऐसी नीति अपनाता रहा है, जिसके द्वारा वह खुद को ताइवान के एक विश्वसनीय सहयोगी के रूप में प्रस्तुत करता है। परंतु साथ ही अमेरिका यह स्पष्ट करने से बचता रहा है कि किसी चीनी हमले की स्थिति में क्या वह (केवल 2 करोड़ 34 लाख की जनसंख्या वाले इस द्वीप देश को) वास्तव में पूर्ण सैन्य समर्थन देगा?

अमेरिका ने 1949 में ताइवान को एक स्वतंत्र सार्वभौम देश के तौर पर दी गई अपनी राजनयिक मान्यता, अक्टूबर 1971 में उससे छीनकर चीन को दे दी। इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ताइवान की स्थाई सीट भी न केवल चीन को मिल गई, बल्कि अमेरिका ने क़ानूनी तौर पर अपने हाथ खुद ही बांध लिए। तब से न केवल अमेरिका के लिए, बल्कि भारत सहित सारी दुनिया के लिए भी, कम्युनिस्ट चीन ही न कि ग़ैर कम्युनिस्ट ताइवान, समग्र चीनी जनता का प्रतिनिधि और एक स्वतंत्र सार्वभौम देश है। दुनिया के ऐसे केवल 8 छोटे-छोटे देश हैं, जिन्होंने अब भी ताइवान को राजनयिक मान्यता दे रखी है।

सीआईए ने चीन के लिए बजट बढ़ाया : अमेरिक की इंडो-पैसिफिक (हिंद-प्रशांत) कमांड के तत्कालीन कमांडर एडमिरल फिल डेविडसन ने 2021 में चेतावनी दी थी कि चीन छह साल के भीतर ताइवान पर हमला कर सकता है। इसके बाद से अमेरिका में ऐसे आयोजनों की तैयारी तेज़ हो गई है, जिनका लक्ष्य चीन को ऐसे किसी हमले से इस तरह रोकना है कि अमेरिका को ख़ुद उससे युद्ध न लड़ना पड़े।

सीआईए के निदेशक बिल बर्न्स ने हाल ही में एक ब्रिटिश अख़बार को बताया कि अमेरिकी गुप्तचर सेवा सीआईए (CIA) का 20 प्रतिशत बजट अब चीन पर केंद्रित है, जो पिछले तीन वर्षों में 200 प्रतिशत की वृद्धि के बराबर है। अमेरिका, ताइवान पर संभावित चीनी आक्रमण के विरुद्ध 'मानवरहित प्रणालियों' का उपयोग करने की योजना बना रहा है, ताकि उसके अपने सैनिकों को वहां लड़ना न पड़े।

इंडो-पैसिफिक कमांड के वर्तमान प्रमुख एडमिरल सैमुअल पापारो ने हाल ही में कहा कि चीन यदि वास्तव में ताइवान पर हमला करता है, तो अमेरिका ताइवान जलडमरूमध्य को 'मानव रहित नरक' में बदल देने के लिए तैयार है। पिछले जून महीने में, पापारो ने 'वाशिंगटन पोस्ट' को बताया कि ताइवान जलडमरूमध्य को पार करने पर चीनी आक्रमण का तुरंत जवाब देने के लिए बनी अमेरिकी योजना (समुद्री युद्धपोतों और पनडुब्बियों से लेकर हवाई ड्रोनों तक) हज़ारों 'मानवरहित प्रणालियों' को तैनात करने की है।

ताइवान की सहायता का वादा : राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी कई बार कहा है कि चीन द्वारा अकारण हमले की स्थिति में अमेरिकी सेना ताइवान की रक्षा करेगी। इसकी तैयारी के तौर पर हाल के वर्षों में पेंटागॉन ने ताइवान की सेना को प्रशिक्षित करने के लिए विशेष बल वहां भेजे हैं।

अमेरिकी नौसेना की एक विशिष्ट कमान है 'सील टीम 6' (SEAL Team 6)। यह टीम अमेरिका के वर्जीनिया राज्य में स्थित अपने मुख्यालय में एक साल से अधिक समय से ताइवान के बचाव के लिए अपनी रणनीति बना रही है और प्रशिक्षण ले रही है। अमेरिकी नौसेना की इसी विशिष्ट कमान ने 2011 में 'अलकायदा' के मुखिया ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में मार गिराया था।

'सील टीम' आमतौर पर अमेरिकी सेना के सबसे संवेदनशील और चुनौतीभरे मिशनों के लिए बहुत उच्च स्तर की गोपनीयता के साथ काम करती है। इन तैयारियों के साथ ही ताइवानी सेना के सैनिकों को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है कि वे शत्रुपक्ष की योजनाओं की कैसे टोह ले सकते हैं और उनके हमलों का कैसे सामना कर सकते हैं?

कहने की आवश्यकता नहीं कि अमेरिकी तैयारियों पर चीन की भी नज़र है। उसकी नौसेना के पास अमेरिकी नौसेना की तुलना में न केवल अधिक जहाज़ हैं, उसके जल, थल और वायु सैनिकों की संख्या भी अमेरिका से अधिक है। अमेरिका का सारा प्रयास यही रहेगा कि उसे स्वयं चीन से लड़ना न पड़े। उसके अपने सैनिक यथासंभव न मरें। सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

करवा चौथ पर क्यों देखती हैं महिलाएं छन्नी से पति का चेहरा, जानिए इस परंपरा का महत्व