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आइये, चंद्र मिशन -2 के बारे में जानें सरल शब्दों में

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शरद सिंगी

चंद्रयान-2 की उड़ान को लेकर सारे भारतवासी बहुत उत्साहित हैं। 15 जुलाई को प्रक्षेपण का पहला प्रयास किया जाना था किन्तु निर्धारित समय से करीब एक घंटा पूर्व 'बाहुबली' रॉकेट में तकनीकी शंका के कारण चंद्रयान -2 का प्रक्षेपण सुरक्षा कारणों से और एहतियात स्वरूप स्थगित कर दिया गया था। प्रक्षेपण और चंद्रयान की यात्रा और मार्ग में उसके पड़ावों की चर्चा प्रक्षेपण के बाद करेंगे, जो 22 जुलाई को निर्धारित है। 
 
आज चर्चा करते हैं उन जटिलताओं की जो प्रक्षेपण के पूर्व वैज्ञानिकों के समक्ष होती हैं। इस प्रक्षेपण की जटिलता का अंदाज़ हमें इस तथ्य से ही हो जाता है कि अभी तक मात्र तीन राष्ट्र ही चाँद तक पहुंच पाए हैं। भारत उस कड़ी में चौथा राष्ट्र बनने की तैयारियों में जुटा हुआ है। चंद्रयान-2 मिशन का लक्ष्य भारत को चाँद पर पहुंचने वाला दुनिया में चौथा देश बनाना है और चंद्रमा की सतह पर सवारी करना है। तो चलिए अब जानने की कोशिश करते हैं इस प्रक्षेपण की जटिलताओं को।
 
जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारी पृथ्वी की मुख्यतः दो गतियां होती हैं। एक तो वह जो अपनी धुरी पर चक्कर लगाती है, जिससे दिन और रात होते हैं और दूसरी जब वह अपनी धुरी पर चक्कर लगाते हुए सूर्य की परिक्रमा भी करती है, जिससे ऋतुएं परिवर्तित होती हैं। वहीं चन्द्रमा की तीन गतियां हैं। एक तो जो वह अपनी धुरी पर घूम रहा है। दूसरा, धुरी पर घूमते हुए वह पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है और तीसरी गति में वह पृथ्वी के साथ साथ चलते हुए सूर्य की परिक्रमा भी कर रहा है। याने चंद्रमाँ है तीन गतियों वाला एक रोलर कोस्टर झूला। 
 
अब कल्पना करें कि एक अति विशाल अंडाकार मैदान में मेला लगा हुआ है। इस अंडाकार मैदान के किनारे पर एक भीमकाय चकरी झूला अपनी धुरी पर घूम रहा है जिस पर हम बैठे हैं। धुरी पर घूमने के साथ वह मेले के विशाल मैदान के मध्यबिंदु की परिक्रमा भी कर रहा है। इस झूले की कुछ दूरी पर एक छोटा रोलर कोस्टर (चकरी झूला) भी है, जो अपनी धुरी पर तो घूम ही रहा है, वह बड़े झूले की परिक्रमा करते हुए उसके साथ साथ भी चल रहा है और मैदान के केंद्र की परिक्रमा भी कर रहा है। 
 
इस छोटे झूले की विशेष बात यह है कि इतना तरीके से वह बड़े झूले की परिक्रमा कर रहा है कि हमेशा उसका एक ही भाग, बड़े झूले के सामने रहता है। याने ठीक उसी तरह जिस तरह चाँद अपना पिछला हिस्सा पृथ्वी के सामने कभी नहीं रखता। जिसकी चर्चा हम अपने पहले आलेखों में कर चुके हैं।
 
अब तेजी से दो प्रकार की गति में घूमते हुए हम जिस बड़े झूले पर सवार हैं, उस झूले से हमें एक निशाना लगाना है। यह निशाना हमें लगाना है उस तीन प्रकार की गति से घूम रहे छोटे झूले में रखे एक गुब्बारे पर। गुब्बारा भी ऐसी सीट पर रखा है जिसे हम देख नहीं पा रहे। यानी वह रखा है छोटे झूले के पिछले भाग में जो हमें सामने से कभी नहीं दिखता। लीजिये अब तो हमारा दिमाग ही चकरी बन गया। रुकिए, बात अभी समाप्त नहीं हुई है। जो गोली छोड़ी जाएगी, यात्रा के दौरान उसकी गति और दिशा में भी परिवर्तन होगा। 
 
जब वह हमारी बन्दूक से निकलेगी तब उसमे बड़े झूले की दोनों गतियों का प्रभाव भी मिश्रित होगा। इस प्रकार संशोधित होकर वह तीन प्रकार की गति से चलेगी। यानी झूले की परिधि के बाहर निकलकर अलग दिशा में और जब वह छोटे झूले की परिधि में प्रवेश करेगी तो वह उस झूले की तीन गतियों से प्रभावित हो जाएगी। यानी लक्ष्य पर पहुँचने से पहले चार विभिन्न प्रकार की गतियां होंगी और वे भी विभिन्न दिशाओँ में। अब मारिये निशाना। 
 
चलिए छोड़िये, हमारे लिए तो इस प्रश्न को समझना ही टेढ़ी खीर है तो उसके हल की गणना की बात ही छोड़ दीजिये। फिर प्रश्न है कि हमारे वैज्ञानिक इतना दिमाग क्यों खपा रहे हैं? चंद्रयान-1 ने जब चन्द्रमा के हिस्से में पानी की खोज की तो भारतीय वैज्ञानिकों का उत्साह सातवें आसमान पर था। 
 
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का मानना है कि चंद्रयान-2 ऐसा भारतीय चंद्र मिशन है जो पूरे साहस से चाँद के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में उतरेगा जहां अभी तक कोई देश नहीं पहुंचा है। इसका मकसद, चंद्रमा के भीतरी और बाहरी सतह की जानकारी जुटाना और ऐसी खोज करना, जिनसे भारत सहित सम्पूर्ण मानवता को फायदा हो। यही नहीं, हमारा यह प्रयोग गहन अंतरिक्ष मिशनों के लिए आवश्यक टेक्‍नोलॉजी आज़माने का परीक्षण केन्‍द्र भी बन जाएगा। 
 
चंद्रमा हमें पृथ्वी के क्रमिक विकास और सौर मंडल के पर्यावरण की कई अद्भुत जानकारियां दे सकता है। चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास के बारे में भी कई महत्वपूर्ण सूचनाएं जुटाई जा सकेंगी। तो चलिए, भारत के इस महत्वपूर्ण मिशन को छोड़ दीजिये अपने काबिल वैज्ञानिकों के हाथों में। हम उन पर गर्व करने और उनके प्रति शुभेच्छा प्रकट करने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर सकते हैं। 
 
कामना है कि उनका यह मिशन शीघ्र पूरा हो और हमें चंदामामा के बारे में नई-नई जानकारियां मिले तथा ब्रह्माण्ड के रहस्यों से पर्दा उठने की शुरुआत हो। 22 जुलाई को दोपहर में टेलीविजन पर आँखे गढ़ाए रखिये। यह सचमुच एक विलक्षण अवसर है हमारे जीवन का।

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