देश में आदर्श शहरों की जरूरत, ये किया, तो बुरहानपुर भी बन सकता है सिंगापुर

जल संरक्षण दिवस पर विशेष

डॉ. प्रवीण तिवारी
देश में आदर्श शहरों की जरूरत, ये किया तो बुरहानपुर भी बन सकता है सिंगापुर जिसके पास जो कुछ होता वो उसकी कद्र नहीं करता। हम भाग्यशाली हैं कि हमारे पास पानी है और शायद यही वजह है कि हम उसका बेजा इस्तेमाल करने में भी सबसे आगे हैं। ये भी जान लीजिए कि देश के कई हिस्से ऐसे भी हैं, जो बुरी तरह पानी की किल्लत से जूझते दिखाई पड़ते हैं। मध्यप्रदेश का बुरहानपुर एक ऐसा ही शहर है।
 
पानी के मामले में बुरहानपुर से भी बुरे हालात सिंगापुर के थे। वही सिंगापुर जो दुनियाभर  में अपनी संपन्नता के लिए ही नहीं जाना जाता, बल्कि उसकी एक पहचान पानी की किल्लत से जूझकर स्वयं को पानी के लिए आत्मनिर्भर बनाने की भी है।
 
मुझे 'जल दिवस' के अवसर पर एक कार्यक्रम में अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था। इसी कार्यक्रम में जल संरक्षण की शपथ भी दिलवाई गई। तब मन में एहसास था कि शपथ तो अपनी जगह ठीक है लेकिन जल के महत्व को यदि हर बच्चे और हर घर तक  नहीं पहुंचाया गया तो आने वाला समय बहुत दुखदायी हो सकता है। फिर तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर हो जैसी कल्पना भी बेमानी नहीं लगती।
 
जब हम फास्ट फूड कल्चर को दुनिया के दूसरे देशों से सीख सकते हैं, अपने पहनावे को उनसे उधार ले सकते हैं, यहां तक कि उनकी भाषा भी ज्यादा महत्वपूर्ण मालूम पड़ती है तो कुछ अच्छी बातें विदेशों से क्यूं न सीखी जाए?
 
बिना किसी प्राकृतिक स्रोत के यदि सिंगापुर जल संरक्षण के मामले में आत्मनिर्भर बन सकता है, तो हम क्यूं नहीं? दरअसल, पानी का महत्व वही समझ सकता है, जो इसकी किल्लत से जूझ रहा हो। मैं बुरहानपुर को यदि इस दिशा में पहल करने के आदर्श शहर के  रूप में देखता हूं, तो इसकी कई वजह है। हाल के दिनों में नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ  सिंगापुर के वैज्ञानिक डॉ. शैलेष खर्कवाल के साथ कई शहरों की यात्रा हुई। खासतौर पर  बुरहानपुर की यात्रा मेरे लिए अहम थी।
 
बुरहानपुर में ही 'बिन पानी सब सून' के महामंत्र ने जन्म लिया था। दरअसल, रहीम ने अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा यहीं बिताया। यहां रहकर ही उन्होंने अपनी ज्यादातर रचनाओं को जन्म दिया। जहां जल की कमी होती है, वहीं इसके महत्व को समझा जा सकता है। बुरहानपुर की भौगोलिक स्थिति कुछ इस तरह की है कि वहां वर्ष के ज्यादातर समय ही पानी की किल्लत रहती है।
 
रहीम ने आज से करीब 400 साल पहले बुरहानपुर में वैज्ञानिक पद्धति से जल संरक्षण का प्रयोग किया था। इस पर मैं पहले भी विस्तार से लिख चुका हूं। 'कुंडी धारा' या 'खूनी  भंडारा' के नाम से इसे जाना जाता है और 400 साल बाद ये आज भी बुरहानपुर में पानी  के एक महत्वपूर्ण स्रोत के तौर पर काम कर रहा है।
 
डॉ. शैलेष न सिर्फ सिंगापुर में जल वैज्ञानिक के तौर पर काम कर रहे हैं बल्कि वे सिंगापुर के आम निवासी के तौर पर भी वहां की चुनौतियों को देख रहे हैं। वे चाहते हैं कि आदर्श ग्राम या स्मार्टसिटी जैसे प्रोजेक्ट्स में जब तक सिंगापुर के इस मॉडल को शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक बात नहीं बनेगी। घरों में पानी के दबाव से लेकर वेस्ट वॉटर मैनेजमेंट तक सिंगापुर ने बहुत काम किया है। सबसे महत्वपूर्ण है यह रहेगा कि स्कूली शिक्षा में ही जल संरक्षण के प्रति जागरूकता को शामिल कर लेना। यह बचपन से ही पानी के प्रति सम्मान को बढ़ा देता है। यही सबसे महत्वपूर्ण बात है कि हम पानी को कितना सम्मान देते हैं। हमारी वैदिक परंपरा में तो जल को देवता ही माना गया है।  इस परंपरा को दोबारा समझने की जरूरत है।
 
सच पूछिए तो हम पानी के मामले में सिंगापुर से बहुत आगे हैं लेकिन आने वाले समय में बहुत मुमकिन है कि हमारी चुनौतियां तो सिंगापुर जैसी हो जाएं लेकिन तकनीक के मामले में हम शायद उतने समृद्ध न हो पाएं। आज से ही यदि 'पानी गए न ऊबरे, मोती मानस चून' के महत्व को समझ लें तो शायद जल देवता का सच्चा सम्मान हो पाएगा।
 
'तकनीक और स्कूली शिक्षा में जल संरक्षण का समावेश आज हमारी सबसे बड़ी जरूरत है।' 

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरूर पढ़ें

तमिलनाडु में नीट की वजह से क्यों हो रही हैं आत्महत्याएं

ऑनलाइन सट्टेबाजी और फैंटेसी गेम्स की लत से जूझ रहे भारतीय

नागपुर हिंसा के पीछे की सोच को समझना होगा

ड्रग सेंसस कराने की जरूरत क्यों पड़ी पंजाब सरकार को?

ट्रंप बोले, अमेरिका लेने जा रहा ग्रीनलैंड

सभी देखें

समाचार

ओडिशा में ट्रैक्‍टर पलटने से एक ही परिवार के 3 लोगों की मौत

छत्तीसगढ़ के CM साय बोले- नक्सलवाद का होगा खात्मा, बस्तर बनेगा सबसे विकसित क्षेत्र

भाजपा सरकार में भ्रष्टाचार और अन्याय चरम पर : अखिलेश यादव

अगला लेख
More