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रसातल को जाती कांग्रेस और भाजपा का जश्न

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विभूति शर्मा

केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के दो साल पूरे होने पर उसके लिए इससे बेहतर तोहफा कोई और नहीं हो सकता था। 26 मई को सरकार के दो साल पूरे होने के पहले ही 19 मई को आए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने पार्टी को दोहरे उत्साह के साथ खुशियां मनाने का अवसर उपलब्ध करा दिया।
 
आपको याद होगा की मोदी सरकार ने देश से कांग्रेस के सफाए की भावना जताते हुए सत्ता संभाली थी और उसकी यही भावना जयघोष में बदलती जा रही है। मोदी का कहना था कि महात्मा गांधी तो आजादी के बाद ही कांग्रेस को भंग कर देना चाहते थे, लेकिन आजादी के आंदोलन के रूप में खड़ी की गई कांग्रेस के नेताओं ने ऐसा करना उचित न समझते हुए इसे सत्ता तक पहुँचने का जरिया बना लिया।
ऐसा हुआ भी और करीब 65 साल तक इन नेताओं ने सत्ता सुख भोगा भी। अब नरेंद्र मोदी की टीम ने कांग्रेस की समाप्ति का बीड़ा उठाया है। इस अभियान में वह अभी तक तो सफल होती हुई भी दिखाई दे रही है। पांच राज्यों के ताज़ा चुनाव परिणामों से लगता है कि मोदी टीम लक्ष्य के काफी करीब पहुँच गई है।
 
समस्या जड़ में : कांग्रेस की समस्या उसकी जड़ में ही है, लेकिन उसे वह देखना भी नहीं चाहती। पिछले 65 सालों से कांग्रेस एक ही परिवार के नेतृत्व के तले जीती आई है और अभी भी उससे दूर नहीं होना चाहती। ढीले नेतृत्व और दिग्भ्रमित नेताओं के कारण पार्टी पिछले कुछ ही सालों में रसातल कि ओर बढ़ गई है। 
 
पांच राज्यों में हार के बाद कांग्रेस नेता यह तो मान रहे हैं कि पार्टी में सर्जरी की जरूरत है, लेकिन आकाओं के डर के साये में यह भी कहते हैं कि सर्जरी सोनिया गांधी और राहुल गांधी ही करेंगे। लगभग पूरा देश मानता है कि राहुल गांधी कांग्रेस को आगे ले जाने में सक्षम नहीं हैं, लेकिन न तो कांग्रेसी और न ही पार्टी अध्यक्ष यानी राहुल की मां सोनिया गांधी इसे मानने को तैयार हैं। अंदरूनी तौर पर भले ही कुछ कांग्रेसी इसे स्वीकारते हैं पर खुलकर कोई सामने नहीं आता। 
 
अघोषित रूप से यही डर कांग्रेस के पतन का कारण बनता जा रहा है। अगले वर्ष उत्तर प्रदेश समेत कुछ बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन ऐसे कोई आसार नजर नहीं आ रहे कि वहां कांग्रेस कुछ बेहतर हासिल कर पाएगी। हां, अभी से कुछ सर्जरी की जाती है तो अवनति पर रोक की आशा की जा सकती है।
 
पांच राज्यों असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी के विधानसभा चुनाव परिणामों से यह साफ झलक रहा है कि कांग्रेस आईसीयू में वेंटिलेटर पर पहुंच गई है। उसकी सांसें कर्नाटक, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे कुछ ही राज्यों ने थाम रखी हैं। उत्तराखंड में तो उसकी सांसें उखड़ने भी लगी हैं। कितनी अजीब बात है कि कभी पूरे देश पर राज करने वाली कांग्रेस अब केवल सात प्रतिशत आबादी पर राज करने वाली पार्टी बनकर रह गई है। 
 
दूसरी ओर अपेक्षाकृत नई पार्टी भाजपा अब देश की आधी आबादी पर राज करने वाली पार्टी बन गई है। स्वाभाविक रूप से यह भाजपा के लिए जश्न मनाने का मौका है। केंद्र में दो साल पूरे होने के साथ इन पांच राज्यों में अपनी सफलता का भी। ऊपरी तौर पर तो भाजपा को असम के अलावा कहीं बड़ी सफलता नहीं मिली है, लेकिन अंदरूनी तौर पर देखा जाए तो इन राज्यों में पार्टी के लिए खोने को कुछ नहीं था जो भी मिला वह लाभ ही है। असम में तो छप्पर फाड़कर मिला है। पश्चिम बंगाल में तीन और केरल में एक सीट मिलना भी उसके लिए उपलब्धि है। 

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