पृथ्वी हमारा निवास स्थान है। मनुष्य सहित सभी प्राणी इसी धरती पर जन्म लेते हैं और इसी पर जीवन यापन करते हैं। पृथ्वी हमारे जीवन का आधार है। पृथ्वी से हमें वायु, जल और भोजन प्राप्त होता है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पृथ्वी ने मनुष्य व अन्य सभी प्राणियों को जीवन प्रदान किया है। किन्तु मनुष्य ने पृथ्वी को क्या दिया?
इस प्रश्न का उत्तर यही है कि मनुष्य ने पृथ्वी को कुछ नहीं दिया, अपितु उसे दूषित करने का कार्य किया है। वायु प्रदूषित होकर विषैली हो गई है और जल भी दूषित हो रहा है। स्थिति इतनी भयंकर है कि यमुना सहित अनेक नदियों का जल पीने योग्य नहीं है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के एक अध्ययन के अनुसार 25 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 221 जिलों के कुछ स्थानों का जल आर्सेनिक युक्त पाया गया है।
दूषित पेयजल के सेवन से उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे क्षेत्रों के लोग दूषित जलजनित रोगों की चपेट में आ जाते हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भूजल संकट के कारण देश के लगभग 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को आज भी स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। ऐसे में वे दूषित जल पीने को विवश हैं। देश में लोगों को पर्याप्त जल नहीं मिल पा रहा है।
देश में प्रति व्यक्ति पानी की वार्षिक 1700 घन मीटर से कम उपलब्धता है। अंतरिक्ष से लिए गए आंकड़ों के आधार पर देश में पानी की उपलब्धता का पुनर्मूल्यांकन के अध्ययन के आधार पर आशंका व्यक्त की गई है कि वर्ष 2031 के लिए प्रति व्यक्ति पानी की औसत वार्षिक उपलब्धता घटकर 1367 घन मीटर रह जाएगी, जिससे जल संकट और गंभीर हो जाएगा।
एक रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल वैश्विक जल स्रोत का मात्र 4 प्रतिशत ही उपलब्ध है, जबकि यहां विश्व की कुल वैश्विक जनसंख्या का 18 प्रतिशत भाग निवास करता है। केंद्रीय जल आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2010 में देश में उपलब्ध कुल जल स्रोतों में से 78 प्रतिशत का उपयोग सिंचाई के लिए किया जा रहा था। जल संकट के कारण वर्ष 2050 तक यह दर घटकर लगभग 68 प्रतिशत रह जाएगी। यह शुभ संकेत नहीं है।
उल्लेखनीय है कि देश के लगभग 198 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य क्षेत्र के लगभग आधे भाग की सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं। इसमें से 63 प्रतिशत क्षेत्र में भूमिगत जल से सिंचाई की जाती है, जबकि 24 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई के लिए नहरों के जल का उपयोग किया जाता है। इसमें 2 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई तालाब एवं कुंओं के जल से की जाती है तथा 11 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई के लिए अन्य स्रोत का उपयोग किया जाता है।
इससे स्पष्ट हो जाता है कि भारतीय कृषक आज भी सिंचाई के लिए भूमिगत जल पर निर्भर करते हैं। इसलिए भूजल का अत्यधिक दोहन किया जाता है। इससे भूमिगत जल स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। जल प्राणियों के जीवन का आधार है। जल के बिना कोई भी प्राणी जीवित नहीं रह सकता। सूखे एवं भूमि का जल स्तर नीचे गिरने के कारण अनेक क्षेत्रों में जल संकट व्याप्त हो गया है। इससे निपटने के लिए जल संरक्षण अति आवश्यक है। भीषण गर्मी के समय देश के प्राय: समस्त क्षेत्रों में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जल की समस्या उत्पन्न हो जाती है। तालाब भी शुष्क हो जाते हैं। कुंओं का जल बहुत नीचे उतर जाता है अथवा वे भी सूख जाते हैं।
इसके कारण ग्रामीणों को उपयोग के लिए पर्याप्त जल प्राप्त नहीं होता है। इस समस्या के दृष्टिगत केंद्र सरकार ने अमृत सरोवर योजना प्रारंभ की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 अप्रैल 2022 को आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में इसका शुभारंभ किया था। इस योजना का उद्देश्य देश के प्रत्येक जिले में कम से कम 75 जल निकायों का विकास एवं कायाकल्प करना है। देशव्यापी इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक राज्य के हर जिले में 75 से अधिक तालाबों का निर्माण करवाना है।
अमृत सरोवर योजना से राज्यों को अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त हो सकेंगे। तालाबों का निर्माण होने तथा पुराने तालाबों का जीर्णोद्धार होने से क्षेत्रीय लोगों की जल की समस्या का समाधान हो सकेगा। इससे गर्मी के समय भूजल स्तर को बनाए रखने में सहायता प्राप्त हो सकेगी। इन तालाबों के जल का उपयोग कृषि कार्यों के लिए किया जा सकेगा। इसके अतिरिक्त पशु पालन में भी इस जल का उपयोग हो पाएगा। आवारा पशुओं एवं पक्षियों को भी पीने के लिए जल उपलब्ध हो सकेगा।
इसके अतिरिक्त तालाबों का निर्माण होने से उस स्थान पर सुंदरीकरण होगा। तालाबों के तट पर पीपल, बरगद, नीम, अशोका, सहजन, महुआ, जामुन एवं कटहल आदि के पौधे लगाए जाएंगे। इससे जहां पर्यावरण स्वच्छ होगा तथा हरियाली में वृद्धि होगी, वहीं इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकेगा। इससे ग्रामीण क्षेत्र में अर्थव्यवस्था सुदृढ़ हो सकेगी। इन तालाबों का उपयोग मछली पालन, मखाने एवं सिघाड़े की खेती में भी किया जा सकेगा।
इस योजना के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में 50 हजार से अधिक तालाबों का निर्माण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। प्रत्येक तालाब एक एकड़ क्षेत्र में होगा, जिसमें 10 हजार घन मीटर पानी की धारण करने की क्षमता होगी। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाएगा कि इसमें वर्ष भर जल भरा रहे। इस अमृत सरोवर योजना के माध्यम से ग्रामीण वासियों को मनरेगा योजना के अंतर्गत रोजगार उपलब्ध करवाया जा सकेगा। इससे बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध होगा।
विगत दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमृत सरोवर योजना के अंतर्गत विगत 11 माह में लगभग 40 हजार तालाबों को विकसित करने की उपलब्धि की सराहना की है। उन्होंने ट्वीट में लिखा कि 'बहुत-बहुत बधाई! जिस तेजी से देशभर में अमृत सरोवरों का निर्माण हो रहा है, वो अमृतकाल के हमारे संकल्पों में नई ऊर्जा भरने वाली है। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने एक ट्वीट करके जानकारी दी कि देश में अभी तक 40 हजार से अधिक अमृत सरोवर राष्ट्र को समर्पित किए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि 15 अगस्त 2023 तक 50 हजार अमृत सरोवर बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
उल्लेखनीय है कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को विश्वभर में पृथ्वी दिवस मनाया जाता है। उल्लेखनीय है कि अमेरिका के पर्यावरणविद जेराल्ड नेल्सन ने 22 अप्रैल 1970 को इसका शुभारंभ किया था। वह विस्कॉन्सिन के एक अमेरिकी राजनेता थे. उन्होंने संयुक्त राज्य के सीनेटर और गवर्नर के रूप में कार्य किया। वह पृथ्वी दिवस के संस्थापक थे।
उन्होंने पर्यावरण सक्रियता के एक नए अभियान का प्रारंभ किया था। वर्ष 1969 में सैन फ्रांसिस्को में यूनेस्को सम्मेलन के दौरान 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाने की घोषणा की गई थी। इसके पश्चात से यह दिवस मनाया जा रहा है। अब इसे विश्व के 192 से अधिक देशों में मनाया जाता है। इस अवसर पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें पृथ्वी के समक्ष उत्पन्न समस्याओं को उठाया जाता है तथा इनके समाधान के बारे में चर्चा होती है। आज जब पर्यावरण के समक्ष अनेक प्रकार के संकट उत्पन्न हो गए हैं, ऐसी स्थिति में इसका महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है।
उल्लेख करने योग्य बात यह भी है कि देशभर में पृथ्वी दिवस के उपलक्ष्य में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। इसमें सरकारी स्तर के कार्यक्रम भी हैं तथा पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य कर रही स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यक्रम भी सम्मिलित हैं। नि:संदेश केंद्र सरकार की अमृत सरोवर योजना जल संरक्षण के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करेगी। इससे जल संरक्षण के अभियान को प्रोत्साहन भी मिलेगा। अपनी पृथ्वी को बचाने के लिए हम सबको मिलकर कार्य करना होगा।
(लेखक- माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार वि.वि.- भोपाल में सहायक प्राध्यापक है।)
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