बहुत हो गई ब्लॉग-चर्चा, गुरु गंभीर बातें, अब फुरसत से कुछ बतियाते हैं, गपियाते हैं। आज चलते हैं, फुरसतिया के ब्लॉग पर। जनाब फुरसतिया को बड़ी फुरसत है, फुरसत से बैठे लिखते रहते हैं, और फुरसत वाले पढ़ते रहते हैं। वैसे भी उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई पढ़े-न-पढ़े, क्योंकि उनके ब्लॉग की पंचलाइन ही है -
हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहे।
ठीक पहचाना आपने, हम बात कर रहे हैं, फुरसतिया अनूप शुक्ला जी की। आज हमारी ब्लॉग-चर्चा में उनके ब्लॉग से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ।
फुरसतिया कानपुर निवासी हैं और वहीं से अपना ब्लॉग संचालित करते हैं। उनका ब्लॉग काफी पुराना है, जब ब्लॉग की दुनिया बननी शुरू ही हुई थी। सन 2004 में उन्होंने लिखना शुरू किया। अभिव्यक्ति में हिंदी ब्लॉग पर छपे रवि रतलामी के एक लेख ने फुरसतिया का रास्ता खोला।
फुरसतिया सचमुच फुरसतिया ही हैं। कहते हैं कि वे मौज-मजे के लिए लिखते हैं। किसी विषय विशेष पर नहीं, जो जी को भाता है, उस पर लिखते हैं। अपने समकालीन ब्लॉगरों के बारे में, उनका परिचय, जन्मदिन की बधाइयाँ और, और भी बहुत कुछ।
अनूप जी कहते हैं कि वे जिन लेखकों के सानिध्य में और जिन लेखकीय प्रभावों के साथ बड़े हुए, उनका लिखना भी उसी से प्रेरित है। श्रीलाल शुक्ल का उपन्यास ‘राग दरबारी’ वे ब्लॉग के माध्यम से उपलब्ध करवा रहे हैं। उसका काफी हिस्सा अब तक प्रकाशित हो चुका है।
अनूप जी सचमुच अपनी मौज में लिखते हैं, और उनकी लेखन शैली में भी वह मौज, वह मस्ती नजर आती है। उनकी सबसे ताजातरीन पोस्ट ज्ञानदत्त जी को जन्मदिन की बधाई दे रही है। एक बानगी :
फुरसतिया सचमुच फुरसतिया ही हैं। कहते हैं कि वे मौज-मजे के लिए लिखते हैं। किसी विषय विशेष पर नहीं, जो जी को भाता है, उस पर लिखते हैं। अपने समकालीन ब्लॉगरों के बारे में, उनका परिचय, जन्मदिन की बधाइयाँ और, और भी बहुत कुछ।
पाण्डेयजी उन ब्लागरों में हैं जो एक बार ब्लागिंग को नमस्ते कहकर वापस आए हैं। और अब ऐसे आए हैं कि धाँस के लिख रहे हैं। उनकी वापसी की बात हालाँकि पुरानी हो गई है और अब तो लोग यही जानते हैं कि अगर ज्ञानजी की पोस्ट नहीं आई तो लगता है नेट पर कुछ लोचा है।
आज हमारे प्रिय , पसंदीदा ब्लॉगर पाण्डेयजी का जन्मदिन है। मैं उनको अपनी तरफ़ से और अपने तमाम दोस्तों , घर परिवार के तरफ़ से इस अवसर पर मंगलकामनाएँ करता हूँ। शुभकामना प्रेषित करता हूँ।
कामना है वे शतायु हों। चुस्त, दुरुस्त बने रहें। अलमस्त लेखन करते रहें।
और उनकी वे कामनाएँ भी पूरी हों लगातार अवधी बोलने की इच्छा पूरी हो। उनकी शिराघात पर साइट बनाने का काम पूरा हो।
वे हमेशा आलोक पुराणिक की संगति में हमारे लिए प्रात:पठनीय, तरोताजा लेखन करते रहें।
भाषा की मौज और रवानगी की यह छोटी-सी बानगी भर है। ऐसे ढेर के ढेर लेखन से उनका ब्लॉग भरा पड़ा है।
WD
प्रेम और क्रोध पर देखिए फुरसतिया जी का विशद विमर्श -
आचार्य शुक्लजी ने लिखा है- गुस्सा बहुत फ़ुर्तीला मनोविकार है। हमें उनकी बात पर यकीन सा होता दिखता है। गुस्सैल लोगों की फ़ुर्ती देखकर चकित रह जाना पड़ता है। लोग जरा-जरा सी बात पर गुस्सा करके फ़ुर्ती से दूसरे की इज्जत उतार देते हैं। अमेरिका को इराक पर गुस्सा आया और उसने फ़ुर्ती से उसे पटरा कर दिया।
क्रोध का सम्बंध केवल पटरा करने से ही नहीं है। प्यार करने से भी है। प्यार करने वाले भी इसे जताने के लिए इस्तेमाल करते हैं। नायक लोग नायिकाऒं के गुस्से को हसीन कहते पाए गए हैं। यह सुनने वाली कुछ नायिकाएँ इस पर विश्वास कर लेती हैं और गाहे-बगाहे हसीन दिखने का प्रयास करती हैं।
लोग अपना प्रेम भी गुस्से के माध्यम से इसलिए प्रकट करते हैं क्योंकि वे फ़ुर्ती से इसे प्रकट करना चाहते हैं। जरा सी देर हो जाने पर कोई दूसरा प्रेम-प्रकट कर जाएगा। और प्रेम गली तो आपको पता ही है कि संकरी होती है। इसमें दो नहीं समा सकते।
इसके बाद और पढ़ने के लिए तो खुद फुरसत निकालकर फुरसतिया जी के ब्लॉग पर जाना होगा। इंटरनेट और हिंदी ब्लॉगिंग के भविष्य के बारे में बात करते हुए अनूप जी काफी उत्साहित और आशान्वित नजर आते हैं। वे कहते हैं कि हिंदी ब्लॉगों और ब्लॉग लिखने वालों की संख्या बहुत तेजी के साथ बढ़ रही है। शुरू-शुरू में हिंदी ब्लॉगों की संख्या मात्र 30 के आसपास थी। फिर इस संख्या को 30 से 100 होने में तीन साल लग गए। लेकिन अब तो धड़ाधड़ ब्लॉग बन रहे हैं, नए-नए लोग ब्लॉग की दुनिया से जुड़ रहे हैं। ब्लॉग और ब्लॉग के माध्यम से हिंदी लेखन का भविष्य काफी उज्जवल है। तरह-तरह के पेशों से जुड़े हुए लोग ब्लॉग की दुनिया में आ रहे हैं और बहुत कुछ विविधतापूर्ण यहाँ लिखा जा रहा है।
अनूप जी कहते हैं कि वैसे तो ब्लॉग में काफी कुछ लिखा जा रहा है, लेकिन अधिकांश कुछ निजी किस्म की बातें, विचार और अनुभव हैं। इनका और भी विस्तार होना चाहिए और तरह-तरह की नए कलेवर वाली चीजें भी आनी चाहिए। डायरी, यात्रा वृतांत, संस्मरण और विज्ञान-इतिहास आदि से संबंधित विषयों पर भी भरपूर लेखन होना चाहिए। पत्रकारिता के बारे में भी लिखा जाना चाहिए।
अनूप जी कहते हैं कि ब्लॉग की जो ताकत है, वही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी है। जो उसका सामर्थ्य है, वही सबसे बड़ी सीमा भी है। आपकी कही हर बात, अच्छी या बुरी, सकारात्मक या नकारात्मक तत्काल अभिव्यक्त होती है और उस पर तत्काल प्रतिक्रिया भी हो जाती है। यह हमेशा ही बहुत सकारात्मक नहीं होता। लेकिन यही ब्लॉग की खासियत है और यही ब्लॉग की कमजोरी है।
इतना सब पढ़ने के बाद भी आप फुरसतिया के लिए फुरसत नहीं निकालें, ये तो हो ही नहीं सकता। फुरसत से पढ़ें उन्हें, ताकि वे और भी फुरसत से लिखें, अपनी मौज में, अपने प्रवाह में।