Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

ए सेंचुरी इज़ नॉट इनफ में सौरव गांगुली ने खोले अपने राज

हमें फॉलो करें ए सेंचुरी इज़ नॉट इनफ में सौरव गांगुली ने खोले अपने राज

समय ताम्रकर

मेरा मानना है कि भारतीय क्रिकेट को हम दो हिस्सों में बांट सकते हैं। एक सौरव गांगुली के कप्तान बनने के पहले का हिस्सा और दूसरा बाद का। पहले भी भारतीय टीम जीतती थी, लेकिन वो उस शेर की तरह थी जो शिकार में दांत और नाखून का इस्तेमाल नहीं करता था। सौरव के कप्तान बनने के बाद भारतीय टीम ऐसा शेर बन गई जो दांत और नाखून का आक्रामक तरीके से उपयोग कर शिकार को दबोचने लगा। विरोधियों के हलक से जीत छिनने लगा। सौरव ने भारतीय क्रिकेट खिलाड़ियों में आक्रामक तरीके से जीतने की जो आदत डाली उसका असर हम आज तक देख सकते हैं। सौरव की ये बातें हम उनके द्वारा लिखी गई किताब 'ए सेंचुरी इज़ नॉट इनफ' में महसूस कर सकते हैं। दादा ने अपने क्रिकेटीय जीवन की शुरुआत से लेकर अंत तक की अधिकांश बातें साझा कर बताया कि उनके दिमाग में क्या चल रहा था। क्या उनकी प्लानिंग थी। कैसे उन्होंने विकट परिस्थितियों पर काबू पाया? कैसे उन्होंने भारतीय टीम को ईंट दर ईंट रख मजबूत दीवार बनाया? 
 
'क्लाइम्बिंग टू द टॉप
इस पुस्तक को उन्होंने तीन भागों में बांटा है। पहले हिस्से 'क्लाइम्बिंग टू द टॉप' में उन्होंने लिखा है कि किस तरह से उन्होंने टीम में स्थान बनाया और बतौर खिलाड़ी अपनी स्थिति मजबूत की। हालांकि शुरुआत उस चैप्टर से की है कि किस तरह से संन्यास लेने का फैसला उन्होंने किया। इसके बाद उन्होंने 1992 का वो ऑस्ट्रेलिया दौरा याद किया है जब उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम में चुना गया था। सौरव लिखते हैं कि तब ज्यादातर भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी ये मानते थे कि वे टीम में चुनने योग्य ही नहीं है। इसलिए उनके साथ वैसा ही बर्ताव किया गया। वे बल्लेबाज थे, लेकिन वे अपने टीम को बैटिंग प्रेक्टिस करने के लिए पूरे टूर पर सिर्फ गेंदबाजी ही करते रहे। सीनियर बल्लेबाज दिलीप वेंगसरकर उनके रूम पार्टनर थे और उनसे घबराकर सौरव सिर्फ रात में ही रूम में आया करते थे। सौरव को एक बार संजय मांजरेकर ने अपने रूम पर बुलाकर डांट पिला दी। सौरव को आज तक समझ नहीं आया कि संजय ने ऐसा क्यों किया? 
 
सचिन के साथ वे ज्यादातर समय बिताते थे जो कि उनके हम उम्र थे। ऑस्ट्रेलिया टूर के बाद सौरव को बाहर का रास्ता दिखा दिया और लगभग चार वर्ष बाद उन्होंने भारतीय टीम में वापसी की। सौरव ने लिखा है कि किस तरह से उन्होंने अपने आपको मानसिक रूप से मजबूत किया क्योंकि यह उनके लिए अंतिम अवसर था। उन्होंने पहले ही टेस्ट में शानदार शतक बनाया और कप्तान अज़हरुद्दीन ने उन्हें बेशकीमती घड़ी उपहार में दी।
 
इस दौरे पर सौरव को वेस्टइंडीज के पूर्व खिलाड़ी डेसमंड हैंस ने सकारात्मकता और वॉरसेस्टर के साइकोलॉजिस्ट मार्क क्रेग ने दबाव से निपटने के बारे में उपयोगी सलाह दी और ये सलाहें सौरव ने पूरे क्रिकेट जीवन में गांठ बांध कर रखी। सौरव ने एक अच्छे किस्से का वर्णन किया कि जब उन्होंने पहला शतक बनाया तो सचिन का व्यवहार उनके प्रति बदल गया। वे आगे रह कर सौरव से बात करने लगे। सौरव ने तब यह बात सीखी कि आप जब बड़ा काम करते हो तभी लोगों का ध्यान आपकी ओर जाता है। सौरव ने किताब के इस भाग में ईमानदारी के साथ लिखा है कि वे देशभक्त हैं, लेकिन जब भारतीय टीम में स्थान पाने की कोशिश कर रहे थे तब यह चाहते थे कि भारत हार जाए ताकि उन्हें टीम में आने का अवसर मिल सके। 
 
बिकमिंग ए लीडर 
किताब के दूसरे भाग को सौरव ने 'बिकमिंग ए लीडर' नाम दिया है। इसमें उन्होंने अपने कप्तान बनने और टीम को मजबूत बनाने की योजना का खुलासा किया है। यह भाग भी पहले भाग की तरह मजेदार है और कई नई बातें पता चलती हैं। सचिन ने कप्तानी से इनकार कर दिया और सौरव को कप्तान बना दिया गया। सौरव ने तब ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों से सीखा कि जीत कैसे छिनी जाती है और वही फॉर्मूला अपने खिलाड़ियों के साथ आजमाया। सौरव लिखते हैं कि कप्तान तो वे थे, लेकिन उन्होंने एक कोर ग्रुप बनाया था जिसमें द्रविड़, सचिन, कुम्बले और श्रीनाथ शामिल थे। सभी महत्वपूर्ण निर्णय ये मिलकर लेते थे। ऑस्ट्रेलिया से भिड़ंत को सौरव ने खासा महत्व दिया और ऐतिहासिक कोलकाता टेस्ट में वीवीएस लक्ष्मण द्वारा बनाए गए 281 रनों की पारी को उन्होंने अपने द्वारा देखी गई सर्वश्रेष्ठ पारी बताया। इसके अलावा उन्होंने चार अन्य पारियों का भी जिक्र किया है। उस दौर में सौरव के दिमाग में चल रही हलचल का वर्णन बहुत बढि़या तरीके से किया गया है। टीम को विजेता बनाने के लिए उन्होंने कैसे-कैसे निर्णय लिए। सहवाग, ज़हीर, हरभजन, युवराज, कैफ जैसे खिलाड़ियों पर विश्वास जताया और परिणाम हासिल किए। 
 
गिविंग अप इज़ नॉट एन ऑप्शन  
किताब के इस तीसरे हिस्से में सौरव ने उन बातों का जिक्र किया है जब न केवल उनसे कप्तानी छिन ली गई थी बल्कि टीम से भी बाहर कर दिया था। ग्रेग चैपल ने उनके खिलाफ षड्यंत्र रच दिया था और अपने लोग ही बेगाने हो गए थे। सौरव ने हिम्मत नहीं हारी। एक विज्ञापन भी किया जिसमें वे कहते हैं 'मेरा नाम सौरव गांगुली, भूले तो नहीं'। खाली स्टेडियमों में अनजान खिलाड़ियों के बीच शानदार प्रदर्शन कर अपना खोया स्थान हासिल किया और फिर शान से रिटायर हुए। यहां आईपीएल का भी जिक्र किया है कि किस तरह से इस स्पर्धा में मालिकों का दबदबा रहता है। शाहरुख और अपने संबंधों पर भी बात की है।  
 
चौंकाने वाले खुलासे 
सौरव ने कुछ चौंकाने वाले खुलासे भी किए हैं। 2003 में जब दिसम्बर में भारतीय टीम को ऑस्ट्रेलिया दौरा करना था तब सौरव बिना किसी को बताए चार-पांच महीने पहले ऑस्ट्रेलिया पहुंच गए। वहां पर ग्रेग चैपल की मदद से ऑस्ट्रेलिया के उन मैदानों पर गए जहां भारत का मैच होना था। सौरव ने हर मैदान के पिच का अध्ययन किया। ग्राउंड की लंबाई-चौड़ाई नापी। चैपल की मदद से रणनीति बनाई। चैपल ने उन्हें सात दिनों में इतना प्रभावित कर लिया कि सौरव ने उन्हें भारतीय टीम का कोच बनाने की ठानी। सौरव के अनुसार उन्हें सुनील गावस्कर और ग्रेग के भाई इयॉन चैपल ने ऐसा करने से रोका, लेकिन वे नहीं माने। 
 
पाकिस्तान के 2004 के दौरे का भी उन्होंने वर्णन किया है। वे पाक की मेजबानी से खूब खुश हुए। एक रात वे कबाब का मजा लेने के लिए दोस्तों के साथ सुरक्षा को धता बता कर निकल लिए। बाद में पहचान लिए गए। अगली सुबह परवेज मुशर्रफ ने फोन लगा कर उनसे आइंदा ऐसा न करने को कहा। किस गेंदबाज को खेलने में उन्हें कठिनाई हुई? किस पाकिस्तानी खिलाड़ी ने उन्हें बेहतरीन सलाह दी? रमीज़ राजा का करियर कैसे सौरव ने बरबाद किया? किस भारतीय खिलाड़ी पर उन्हें सबसे ज्यादा भरोसा था? स्टीव वॉ को टॉस के लिए क्यों इंतजार कराया था? अपने पहले दौरे पर वे मैदान में ड्रिंक्स लेकर क्यों नहीं गए थे? आईपीएल में कप्तान होने के बावजूद वे किस क्रम पर बल्लेबाजी करेंगे इसका फैसला कौन करता था? जैसी कई बातों को उन्होंने उजागर किया है। 
 
क्या है खास 
यदि आप इस लाइन तक पहुंच गए हैं तो यह दर्शाता है कि आपको इस किताब, क्रिकेट और सौरव में रूचि है। जिन्होंने सौरव को करियर की शुरुआत से देखा है उनके लिए यह किताब उन लम्हों को फिर से जी लेने वाली बात है। जो विराट से पहले के क्रिकेट को नहीं जानते हैं उन्हें यह किताब पढ़ कर कई नई बातें पता चलेंगी। सौरव की याददाश्त की दाद देनी पड़ेगी। उन्हें होटल के कमरों के रंग तक याद है। किताब को इस तरह लिखा गया है मानो हम सौरव के दिमाग में बैठे हैं और सौरव द्वारा लिए गए निर्णयों के साक्षी बने हैं। सौरव की कई सीखें आपके जीवन में भी काम आ सकती हैं। सौरव की किताब पढ़ कर लगता है कि यह खेल मैदान की बजाय दिमाग में खेला जाता है। जीत उसी के हिस्से में आती है जो ज्यादा दृढ़ रहता है। किताब सरल भाषा में है और इस तरह लिखी गई है कि रूचि बनी रहती है। 
 
काश ये भी होता...  
सौरव ने पर्सनल लाइफ के बारे में ज्यादा नहीं बताया है। एक चैप्टर इस बारे में भी रखा जा सकता था। फोटोग्राफ्स भी कम है। यदि इनकी संख्या बढ़ाई जाती तो यह उनके फैंस के लिए और भी बेहतर होता। कुछ लोगों को आपत्ति हो सकती है कि सौरव ने अपनी तारीफ कुछ ज्यादा ही की है, लेकिन यही तो सौरव की 'दादागिरी' है। गौतम भट्टाचार्य के साथ मिलकर सौरव ने इस किताब को लिखा है। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

धोनी और कर्स्टन नहीं चाहते थे विराट कोहली बनें टीम इंडिया का हिस्सा