Why do people commit suicide: बॉलीवुड के आर्ट डायरेक्टर नितिन देसाई द्वारा स्टूडियो में फांसी पर लटककर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लेना, तमिलनाडु में पुलिस के डीआईजी द्वारा गोली मारकर खुदकुशी करना... पुणे में एसीपी द्वारा पत्नी और भतीजे को गोली मारने के बाद खुद के जीवन को समाप्त करना... पिता के डांटने पर 9 साल की बच्ची का फंदे पर झूल जाना... कर्ज में दबे भोपाल के व्यक्ति द्वारा दो बच्चों की हत्या कर पत्नी के साथ खुदकुशी करना... प्रेम संबंधों में असफल होने पर युवतियों द्वारा जहर खाकर जान देना... परिजनों से अनबन या प्रताड़ना से तंग आकर नवविवाहिताओं द्वारा जीवन खत्म करना... इन सबके पीछे कारण अलग-अलग हो सकते हैं, आत्महत्या का तरीका भी अलग हो सकता है, लेकिन इन सबमें एक चीज कॉमन होती है, वह है मानसिक तनाव या निराशा।
आत्महत्या करने वालों में 9 साल के बच्चों से लेकर 80 साल तक के बुजुर्ग भी शामिल हैं। खुदकुशी करने वालों में शीर्ष अधिकारी, धर्मगुरु, वैज्ञानिक और बॉलीवुड की चमक-दमक में जीने वाले सितारे भी हैं। पिछले कुछ समय में बॉलीवुड और टेलीविजन की दुनिया से जुड़ी कई हस्तियों ने खुदुकशी कर ली।
नितिन देसाई के अलावा सफलता के शिखर को चूम रहे सुशांत सिंह राजपूत, प्रत्यूषा बैनर्जी, जिया खान, कुशाल पंजाबी, दिशा सालियान, कुणाल सिंह, कुलजीत रंधावा, समीर शर्मा, प्रेक्षा मेहता, सेजल शर्मा समेत कई ऐसे नाम हैं, जिन्होंने अपने जीवन को समाप्त कर लिया। नितिन देसाई के बारे में कहा जा रहा है कि वह आर्थिक तंगी के चलते फंदे पर झूल गए।
आत्महत्या का मुख्य कारण मानसिक तनाव और निराशा ही होता है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में हर साल में करीब 7 लाख लोग आत्महत्या कर लेते हैं। इनमें 77 फीसदी आत्महत्या के मामले निम्न और मध्यम आय वर्ग के लोगों में होते हैं। ज्यादातर लोग कीटनाशक (जहरीला पदार्थ), फांसी पर लटककर और गोली मारकर खुदुकशी करते हैं। कोरोना महामारी के बाद पूरी दुनिया में आत्महत्या के मामलों इजाफा देखने को मिला है।
क्यों करते हैं लोग आत्महत्या : जहां तक आत्महत्या के कारणों का सवाल है तो सबसे ज्यादा 33.2 फीसदी लोग पारिवारिक समस्याओं के कारण खुदकुशी करते हैं। इसमें सामाजिक और आर्थिक कारण प्रमुख रूप से हो सकते हैं। दूसरे नंबर पर 18.6 फीसदी लोग स्वास्थ्यगत कारणों से आत्महत्या करते हैं। वैवाहिक कारणों से 4.8 फीसदी लोग खुदकुशी करते हैं तो प्रेम में असफल होने पर 4.6 फीसदी लोग मौत को गले लगा लेते हैं। इसके अलावा बेरोजगारी, परीक्षा में फेल होना, गरीबी आदि के चलते भी लोग खुदकुशी कर लेते हैं।
वरिष्ठ अभिभाषक, सामाजिक कार्यकर्ता और मनोविज्ञानी अनिल त्रिवेदी कहते हैं कि आत्महत्या के कई कारण होते हैं। ये कारण मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आर्थिक भी होते हैं। कई बार बच्चे भी आत्महत्या कर लेते हैं। जो बच्चे जीवन का अर्थ नहीं जानते, जीवन क्या है, संघर्ष क्या है, वह भी यदि तनाव में आकर जीवन को समाप्त कर ले तो हमें सोचना चाहिए कि नई सभ्यता में हम मनुष्य को लाकर कहां खड़ा कर रहे हैं। आत्महत्या की प्रवृत्ति उन लोगों में ज्यादा होती है, जो अन्तर्मुखी होते हैं। हम तेज गति से चलने वाला समाज तो बना रहे हैं, लेकिन इस तरह के लोगों के मन में क्या चल रहा है, उसे जानना हमने बंद कर दिया है।
हम अकेलेपन की ओर जा रहे हैं : त्रिवेदी कहते हैं कि बच्चों के नंबर कम आएं तो उन अंगुली उठाई जाती है। पीठ थपथपाने वाला समाज और घर खत्म हो रहे हैं। हमने सब चीजों को पैसा आधारित कर दिया है। दरअसल, भारतीय सभ्यता और समाज पैसा आधारित नहीं है। घर-परिवार, नौकरी, स्वास्थ्य आदि के चलते भी लोगों का तनाव बढ़ा है।
मनुष्य सामाजिक प्राणी है, उसके एक-दूसरे के सुख-दुख साझा करने में मजा आना चाहिए, लेकिन धीरे-धीरे यह बात खत्म होती जा रही है। हम अकेलेपन की ओर जा रहे हैं। हमें प्रकृति ने जन्म दिया है। इस जन्म को अप्राकृतिक रूप से छीनने का हक किसी को भी नहीं है। आत्महत्या की घटनाओं से बचना है तो समाज को ताकतवर मनुष्य के निर्माण में सहभागी होना चाहिए। समाज को लोगों का सहारा बनना चाहिए।
महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा आत्महत्याएं : एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक भारत में भी कोरोना के बाद खुदुकशी की दर बढ़ी है। 2019 में 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की, वहीं 2020 में यह आंकड़ा बढ़कर 1,53,052 हो गया। 2021 में यह करीब 10 हजार बढ़कर 1,64,033 हो गया।
राज्यों की बात करें तो महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 13.5 फीसदी लोगों ने आत्महत्या की, जबकि 11.5 फीसदी दर के साथ तमिलनाडु आत्महत्या के मामलों में दूसरे स्थान पर है। मध्यप्रदेश इस सूची में तीसरे स्थान (9.1 फीसदी) पर है। पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तेलंगाना और केरला क्रमश: तीसरे, चौथे, पांचवें और छठे स्थान पर हैं। महाराष्ट्र लगातार तीन साल से (2019-2021) आत्महत्या के मामले में शीर्ष पर बना हुआ है।
आत्महत्या के कई कारण : वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. राम गुलाम राजदान कहते हैं कि यूं तो हर उम्र के लोग आत्महत्या कर लेते हैं, लेकिन 15 से 35 वर्ष के लोगों में आत्महत्या की प्रवृत्ति सबसे अधिक पाई जाती है। आर्थिक समस्या, पारिवारिक कलह, बेरोजगारी, नौकरी का चला जाना, लव अफेयर्स, परीक्षा में फेल होना, किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रताड़ित होना, परिजनों द्वारा अधिक उम्मीदें रखना और उन पर खरा नहीं उतरना आदि ऐसे कारण हैं, जिनके चलते व्यक्ति आत्मघाती कदम उठा लेता है। मनोरोग पीड़ितों का इलाज समय रहते करवाना चाहिए।
अवसादग्रस्त व्यक्ति के लक्षणों की चर्चा करते हुए डॉ. राजदान कहते हैं कि यदि व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव आए या फिर वह निराशा की बात करे या उसके व्यवहार में निराशा दिखाई दे या फिर वह आत्महत्या की बात करे तो उस पर समय रहते ध्यान देना चाहिए। उन्हें अनदेखा नहीं किय परिवार और समाज के लोगों को उसे इस स्थिति से उबरने में मदद करनी चाहिए।
क्या कहते हैं धर्मग्रंथ : हिन्दू धर्मग्रंथों से लेकर कुरान, बाइबिल तक सभी धर्मों के पवित्र ग्रंथ आत्महत्या को पाप मानते हैं। वैदिक विद्वान आचार्य डॉ. संजय देव कहते हैं कि जीवन को किसी भी कारण से समाप्त करना मनुष्य जीवन और ईश्वर का अपमान है। यजुर्वेद के अंतिम अध्याय में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने शरीर का अंत करते हैं, वे घोर अंधकार में जाकर गिरते हैं। यदि कोई समस्या है तो उसका समाधान ढूंढना चाहिए। यदि कोई मुश्किल है तो परिवार, समाज और शासन को भी मदद करनी चाहिए। ऋग्वेद में कहा गया है- मनुर्भव जनया दैव्यं जनम् अर्थात स्वयं मनुष्य बनो एवं दिव्य गुणयुक्त संतान उत्पन्न करो। यदि ऐसा होगा तो न सिर्फ आत्महत्याएं बल्कि अन्य बुराइयां भी समाज में नहीं रहेंगी।
परिजन भी ध्यान रखें : विद्यार्थी आत्मघाती कदम न उठाएं इसके लिए उन्हें और परिजनों को खास ध्यान रखना होगा। डॉ. राजदान कहते हैं कि विद्यार्थी पहले से ही परीक्षा की अच्छी तैयार करें, परीक्षा से डरें नहीं, परीक्षा से पहले अच्छी नींद लें, अभिभावक बच्चों की अच्छे से देखरेख करें, उनके खाने-पीने का ध्यान रखें, जरूरत से ज्यादा अपेक्षा बच्चों पर न थोपें, सिर्फ इतना कहें कि वह अच्छे से अच्छा करे, परसेंटेज को लेकर उस पर कोई दबाव न बनाएं। यदि बच्चे फेल हो भी जाते हैं तो उन्हें समझाएं कि इतने भर से जिंदगी खत्म नहीं हो जाती। बहुत से लोग पढ़ाई में अच्छे नहीं होते, लेकिन आगे जाकर जीवन में बड़ी सफलताएं अर्जित करते हैं। दरअसल, बच्चे बहुत ही संवेदनशील होते हैं, उनके दोस्तों के सामने उन्हें भूलकर भी न डांटें। दोस्तों के सामने कोई ऐसा कमेंट भी नहीं करे, जिससे उन्हें बुरा लगे।
अमेरिका में भी आत्महत्याएं बढ़ीं : अमेरिका में कोरोना के बाद यानी 2020 से 2021 में ही आत्महत्या की दर 37 प्रतिशत बढ़ी हैं। 2021 में यहां 50 हजार से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की। अमेरिका में अपनों को खोने के सदमे से गुजर रहे लोगों के लिए काउंसलिंग कैंपों की संख्या बढ़ी है। इन कैंपों में जाने वाली संख्या में 50 फीसदी तक की वृद्धि देखी गई है।
बेरोजगारी और आत्महत्या : आत्महत्या का एक बड़ा कारण बेरोजगारी भी होती है। ऑस्ट्रेलियाई सांख्यिकी ब्यूरो की श्रम और आत्महत्या दरों से जुड़े आंकड़ों के आधार पर एक स्टडी सामने आई है, जिसके मुताबिक 2004 से 2016 तक 13 वर्षों में बेरोजगारी और अल्परोजगार के परिणामस्वरूप 3000 से अधिक ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने आत्महत्या की। औसतन 230 प्रति वर्ष।
आत्महत्या और ओशो : यदि तुम सचमुच जीवन से ऊब गए हो तो आत्महत्या मत करो। आत्महत्या तुम्हें फिर इसी जीवन में घसीट लाएगी और हो सकता है कि इससे भी अधिक भद्दा जीवन तुम्हें मिले। आत्महत्या तुम्हारे भीतर और भी अधिक गंदगी पैदा कर देगी। जिंदगी जख्मों से भरी होती है। वक्त को मरहम लगाना सीख लो, हारना तो है एक दिन मौत से फिलहाल जिंदगी जीना सीख लो।