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उत्तराखंड बना सांप्रदायिकता की प्रयोगशाला, पुरोला कांड ने बढ़ाया तनाव

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हिमा अग्रवाल

, गुरुवार, 22 जून 2023 (08:03 IST)
Communalism in Uttarakhand: उत्तराखंड के एक छोटे से उपनगर पुरोला में हुए सांप्रदायिक उत्पात ने पूरे देश को चौंकाया है। यहां की घटना ने लोगों को सोचने पर विवश किया है। एक गैर सांप्रदायिक घटना को लेकर जिस तरह से उबाल आया वह खतरे की घंटी है क्योंकि ऐसी कुछ घटनाएं पूर्व में भी हुई हैं जिनको लेकर सांप्रदायिक द्वेष के विस्तार की कोशिशें दिखाई देती हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री जिन शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं वह भी न केवल पद की गरिमा के खिलाफ हैं बल्कि आपत्तिजनक भी हैं।
 
उत्तराखंड देवभूमि है। देश भर से यहां लाखों तीर्थयात्री आते हैं। सनातन धर्म के अनुयायियों की आस्था देवभूमि से जुड़ी हैं और शायद इसलिए कट्टर या कथित हिंदूवाद की ऐसी नफरत भरी फसल बोई जा रही है जिसकी राजनीतिक उपज पूरे देश में फल दे सके। यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार दिनेश का। वह मानते हैं कि देवभूमि को सांप्रदायिकता की प्रयोगशाला ही नहीं बल्कि एक ऐसा ब्रॉडकास्ट सेंटर है, जहां से एक समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाई जा सके।
 
पुरोला में क्या हुआ : पुरोला की मूल घटना समझ लीजिए। पुरोला में हिन्दू-मुस्लिम तनाव की शुरुआत 26 मई से हुई थी। एक 14 साल की किशोरी के कथित अपहरण की कोशिश हुई जिसे लेकर अफवाहों का दौर चला। एक स्थानीय समूह ने इसे लव जिहाद का मामला बताकर प्रचारित किया जबकि आरोपियों में एक हिंदू और दूसरा मुस्लिम युवक था। हिंदू महिलाओं को मुस्लिमों द्वारा लुभाने, बहकाने और शोषण करने को लव जिहाद कहा जाता है।
 
दक्षिणपंथी समूह इस शब्द का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि अदालतें और केंद्र सरकार इसे आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं देती हैं। लेकिन, यहां तो जिन दो युवकों पर आरोप लगा उनमें एक हिंदू और एक मुसलमान था। इस घटना के बाद पुरोला में स्थानीय लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए और वहां के मुस्लिम दुकानदारों को खदेड़ना शुरू कर दिया। उन्हें धमकाया गया। मुस्लिम किरायेदारों से घर-दुकान खाली कराने के लिए मालिकों पर दवाब बनाया गया। महापंचायत की घोषणा हुई, लेकिन उसके आयोजन से ठीक पहले हाईकोर्ट के नोटिस के बाद महापंचायत पर रोक लगा दी। फिलहाल तनाव पसरा हुआ है।
 
कथित लव जिहाद की अन्य घटनाएं : स्थानीय लोग बताते हैं कि पुरोला ही नहीं बल्कि आराकोट, गोचर, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी सहित अनेक स्थानों पर ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें मुस्लिम लोग हिदू किशोरियों और युवतियों को धोखा देकर या बहला-फुसलाकर ले जा रहे थे, लेकिन पकड़े गए और बहुत सारी बच्चियां लापता हैं। लोगों ने ये घटनाएं केवल सुनी हैं या सोशल मीडिया पर पढ़ी हैं लेकिन पुलिस थानों में केस दर्ज नहीं हैं जबकि लोकल और क्षेत्रीय मीडिया रोज ऐसी किसी घटना को सुर्खियां बनाकर विस्तार दे रहा है। आए दिन लव जिहाद पर फ्रंट पेज पर सुर्खियों में कोई ना कोई खबर होती है। इन सब का परिणाम पुरोला में दिखा जब स्थानीय लोग जब एक संगठन के आह्वान पर सड़कों पर आ गए। 
 
असल समस्या क्या है? : यमुनोत्री के इलाकों में ह्यूमैन ट्रैफिकिंग की समस्या बहुत पुरानी है। देहरादून और सहारनपुर के बदनाम इलाकों में यहां की महिलाएं देखी जाती रहीं हैं बल्कि देश भर के रेड लाइट इलाकों में यहां से लड़कियां/महिलाएं ले जाती रही हैं। इस तरह की रिपोर्ट्स प्रकाशित होती रहीं हैं। पेशेगत मजबूरी में अपना नाम मेंशन न करने की शर्त के साथ एक बड़े क्षेत्रीय समाचार पत्र के स्थानीय संपादक इसकी वजह गरीबी बताते हैं।
रोजगार न होने से बहुत लोग पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन कर गए हैं और जो हैं वह मुश्किल से जीवनयापन कर पाते हैं। ऐसे में बहुत से परिवारों की लड़कियां बाहरी क्षेत्रों में ले जाई जाती रहीं हैं जिनमें से कुछ बहुत संपन्न परिवारों में बहू या सास हैं तो कुछ गलत हाथों में चली जाती हैं। देश के उन राज्यों में यहां से लड़कियां सहमति/असहमति से ले जाई जाती रहीं हैं या चुपचाप परिवार की सहमति से ब्याह दी जाती हैं, जहां कुल आबादी में महिलाओं की संख्या बहुत कम हैं। 
 
लैंड जिहाद क्या और क्यों : इसी क्रम में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी अपने भाषणों और वक्तव्यों में बार-बार लव जेहाद और लैंड जेहाद जैसे शब्दों का प्रयोग किया जिनकी कोई विधिक मान्यता नहीं है। मुख्यमंत्री लगातार बोलते रहे- लव जिहाद नहीं होने देंगे… हम लैंड जिहाद नहीं होने देंगे। मुख्यमंत्री ने यह बार-बार कहा कि हम वन क्षेत्र में गैर कानूनी तरीके से बनाए गए धर्मस्थलों को गिराएंगे… जहां पर मजार है उसे भी गिराएंगे..
 
मुख्यमंत्री धामी ने बार-बार अपने भाषण में 'मजार' शब्द का प्रयोग किया लेकिन कभी किसी अन्य धार्मिक स्थल का नाम नहीं लिया। मुख्यमंत्री धामी के लैंड जिहाद के बयान के बाद वन विभाग का एक सर्वे सामने आया जिसमें स्पष्ट रूप से यह पता चला कि जंगलों में अवैध रूप से बनाए गई इमारतों में 300 मंदिर, 35 मजारें और दो गुरुद्वारे हैं। बाद में इस रिपोर्ट को दबा दिया गया, लेकिन मजारें तोड़े जाने के वीडियो अपलोड हुए और यह समझाने की कोशिश हुई कि जिहादियों से रक्षा सिर्फ भाजपा और उसकी सरकारें हीं कर सकती हैं।
 
रेलवे की जमीनों पर कब्जे : लगातार यह खबरें आ रहीं हैं कि मुस्लिमों की आबादी बढ़ रही है और रेलवे की पटरियों के दोनों तरफ रेलवे की जमीन पर मुस्लिम झोंपड़ियां लगातार बढ़ रही हैं। पिछले वर्ष हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अवैध कॉलोनी का मसला सुर्खियों में रहा। रेलवे की जमीन पर अवैध रूप से हजारों लोगों ने मकान बना लिए हैं। इनमें अधिकांश मुस्लिम लोग हैं। पिछले साल जब रेलवे ने कार्रवाई शुरू की तो आंदोलन हुआ। फिलहाल यह मामला न्यायालय में हैं। सवाल उठता है कि जब रेलवे की जमीन पर कब्जे हुए तब विभागीय अधिकारी क्या कर रहे थे? क्यों कभी किसी सरकार में ऐसे अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती? पर ऐसे मामले वोटों के लिए नफरत की खेती जैसे हैं।
 
हरिद्वार के वायरल वीडियो : पुरोला में मुस्लिम कारोबारी जहां पलायन कर रहे हैं, वहीं हरिद्वार से भी भगाए जा रहे हैं। पिछले दिनों एक स्ट्रीट वेंडर को वहां से धर्म के ठेकेदारों ने इसलिए भगा दिया क्योंकि वह मुस्लिम था। आरोप था कि वह हिंदू बनकर दुकान चला रहा था, लेकिन आधार कार्ड से उसकी सच्चाई सामने आई। स्थानीय लोगों में उसे चुन्नू के नाम से जानते थे। हिंदू धार्मिक स्थलों के प्रबंधन देखने वाले निकाय के प्रबंधन के पदाधिकारी उज्ज्वल पंडित के मुताबिक आधार कार्ड पर उसका नाम चुन्नू और पिता का नाम मौहम्मद मुनीर था।
Communalism in Uttarakhand
हालांकि सालों से ठीया लगा रहा वह शख्स वहां से विदा हो रहा था तो उसके आसपास के लोगों की आंखों में आंसू थे। यानी वहीं काम कर रहे हिंदुओं को उससे कोई परेशानी नहीं थी। इसी तरह अभी हाल में गंगा में स्नान करते कुछ मुस्लिम युवकों को वहां से दौड़ाया गया। ऐसे वीडियो भी वायरल हुए हैं लेकिन बाद में इस पर सफाई आई कि युवक महिला के साथ स्नान करते हुए अश्लील हरकते कर रहा था जिसकी वजह से उन्हें हटाया गया, जबकि वायरल वीडियो में भगाने वाला युवक यह कहते हुए सुना जा रहा है कि गंगा घाटों पर सिर्फ हिंदू ही आ सकते हैं।
 
उत्तराखंड बना प्रयोगशाला : उत्तराखंड पिछले आठ-नौ सालों से सांप्रदायिक उन्माद फैलाने के लिए वैमनस्य फैलाने वालों की प्रयोगशाला बन गया है। यहां तरह-तरह के प्रयोग हुए हैं। कुछ घटनाएं हुईं और मीडिया ने उसे विस्तार दिया। राजनीतिक दल और संगठनों ने इसमें आहुति डाली। अफवाहों का बाजार गर्म हुआ और उबाल आ गया पुरोला में। भाजपा के लिए यह मनमाफिक पिच है जिस पर उन्हें बैटिंग करने का खुला मौका मिला। वैसे भी अपने कोर एजेंडे पर खेलना और विस्तार देना कोई राजनीतिक दल नहीं छोड़ता।
 
भाजपा इस तरह की पिच पर हमेशा बहुत बढ़िया खेलती है। पहले दूसरे राजनीतिक दल ऐसी घटनाओं का मुखर विरोध करते थे लेकिन अब उनके सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पकड़ लेने के बाद बैलेंसिंग पावर निस्तेज हो गई। समरसता और सौहार्द के स्वर मंद हो गए। अगर यही स्थिति रही तो 2024 तक भाजपा इस पिच पर धुआंधार बल्लेबाजी करते दिख सकती है क्योंकि देवभूमि उत्तराखंड हिंदुओं की आस्था का केंद्र है जहां छोटी चारधाम यात्रा को लाखों श्रद्धालु आते हैं और यहां की खबरों का लाभ पूरे देश में मिलेगा जिसे भाजपा क्यों छोड़ना चाहेगी।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala
 

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