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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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Happiness Index: अब होगा मध्‍यप्रदेश का अपना हैप्‍पीनेस इंडेक्‍स, हम ही तय करेंगे कितने खुशहाल हैं हम

IIT kharagpur के साथ मिलकर बन रहा मप्र का हैप्‍पीनेस इंडेक्‍स, 2024 में होगा लॉन्‍च

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नवीन रांगियाल

अब तक वैश्‍विक स्‍तर पर जो हैप्‍पीनेस इंडेक्‍स जारी किया जाता रहा है, उसी आधार पर हमें यह पता चलता रहा है कि हम कितने खुश हैं या हमारा प्रदेश कितना खुशहाल है। यानी हम कितने खुशहाल देश हैं या कितने नाखुश ये International Happiness Index के आंकड़ें तय करते हैं। हालांकि अब भी राष्‍ट्रीय स्‍तर पर हमें इन्‍हीं आंकड़ों पर निर्भर रहना होगा, लेकिन खुशी की बात यह है कि अब प्रदेश स्‍तर पर मध्‍यप्रदेश का अपना हैप्‍पीनेस इंडेक्‍स Happiness Index होगा।

जी हां, मध्‍यप्रदेश शासन अपने आनंद मंत्रालय की मदद से राज्‍य का Happiness Index तैयार कर रहा है। बता दें कि देश में आनंद मंत्रालय स्‍थापित करने वाला पहला प्रदेश भी मध्‍यप्रदेश ही है।

क्‍या होगा इंडेक्‍स बनने से?
यह हैप्‍पीनेस इंडेक्‍स बन जाने के बाद पूरे प्रदेश के शहरों और जिलों में सर्वे होगा, जिससे यह तथ्‍य सामने आ सकेगा कि खुशहाली के मामले में हम किस स्‍तर पर हैं। कुल मिलाकर हमारी खुशी को मापने का पैमाना मध्‍यप्रदेश सरकार तैयार कर रही है।

दरअसल, मध्‍यप्रदेश शासन पहले से ही साल 2016 से आनंद मंत्रालय संचालित कर रहा है। जिसका मकसद निराशा और अवसाद में डूबे लोगों को खुशहाल और अपने जीवन के प्रति उत्‍साहित करना और इसके साथ ही प्रदेश में बढ़ती आत्‍महत्‍याओं को रोकना है। यह विभाग इस दिशा में काम कर रहा है, अब प्रदेश सरकार अपना खुद का हैप्‍पीनेस इंडेक्‍स ला रही है।
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आईआईटी खडगपुर के साथ कर रहे काम
इस बारे में चर्चा करते हुए राजधानी भोपाल में स्‍थित राज्‍य आनंद संस्‍थान के सीईओ अखिलेश अर्गल ने खासतौर से वेबदुनिया को बताया कि मध्‍यप्रदेश सरकार का आनंद मंत्रालय प्रदेश का हैप्‍पीनेस इंडेक्‍स बनाने पर काम कर रहा है। कोविड के वजह से काम रुक गया था। श्री अर्गल ने बताया कि इसके लिए विभाग आईआईटी खडगपुर के साथ मिलकर काम कर रहा है।

2024 में शुरू होगा हैप्‍पीनेस इंडेक्‍स
सीईओ श्री अर्गल के मुताबिक राज्‍य के हैप्‍पीनेस इंडेक्‍स की पूरी तैयारी कर ली गई है। इसके लिए डोमेन तैयार है, खुशहाली, खुशी और आनंद के बारे में चर्चा और सर्वे करने के लिए सवाल तैयार हैं। हर जिले में 20 हजार लोगों के साथ चर्चा कर सर्वे किया जाएगा। इसलिए हर जिले के लिहाज से अलग-अलग योजनाएं बनाई गई हैं। उन्‍होंने बताया कि चूंकि हम पहले से ही अपना आनंद मंत्रालय चला रहे हैं तो हमें अपना इंडेक्‍स बनाने में कोई परेशानी नहीं आएगी।

क्‍यों जरूरी है अपना हैप्‍पीनेस इंडेक्‍स
दरअसल, हम कितने खुशहाल हैं और कितने नाखुश यह अब तक अंतरर्राष्‍टीय स्‍तर पर तय होता रहा है। आनंद विभाग के सीईओ श्री अर्गल ने बताया कि इंटरनेशनल स्‍तर पर हैप्‍पीनेस का जो इंडेक्‍स आता है, उसे पूरी तरह से सही नहीं माना जा सकता। दरअसल, भारत में खुशी का ‘खुशी का पैरामीटर’ दूसरे देशों के पैरामीटर से अलग होता है। उन्‍होंने बताया कि हमारी स्‍टडी में सामने आया है कि जब विदेशी एजेंसी हमारा हैप्‍पीनेस इंडेक्‍स बनाती है तो भारत में 2 से 3 हजार लेागों से ही बात होती है,वो भी जो लोग ऑनलाइन उपलब्‍ध होते हैं या जो उनकी सर्वे टीम के संपर्क और पहुंच में होते हैं, उन्‍हीं लोगों से बात होती है। ऐसे में पूरे भारत का हैप्‍पीनेस इंडेक्‍स कैसे तय हो सकता है। इसके साथ ही हमारे देश से उनके देश का जीवनस्‍तर,परिवार,शादी और रिश्‍तों आदि के ढांचे अलग हैं।
हमारे यहां परिवार है, वहां सिंगल्‍स की परंपरा है। हमारा सामाजिक ढांचा है, वे अलग तरह से जीते हैं। हम सोशल हैं, वे एकाकी जीवन जीते हैं। हमारे यहां बड़े पैमाने पर शादियां होती हैं,वे पार्टर्नर के साथ रहते है, या उनके यहां लिव- इन कल्‍चर है। हमारे और उनके बीच औसतन आयु में भी अंतर है। ऐसे में कुछ लोगों के साथ सर्वे कर के वे पूरे देश की खुशहाली या नाखुशी के बारे में फैसला नहीं किया जा सकता। इसलिए हमने राज्‍य स्‍तर पर अपना हैप्‍पीनेस इंडेक्‍स लाने की तैयारी की है। कम से कम हम राज्‍य स्‍तर पर इसे लेकर सही जानकारी सामने ला सकेंगे।

खुशी का मंत्रालय : खुशी के लिए क्‍या कर रही मप्र सरकार?
मध्‍यप्रदेश सरकार ने साल 2016 में बढ़ती निराशा, अवसाद और आत्‍महत्‍या के मामलों को देखते हुए आनंद मंत्रालय की शुरुआत की थी। प्रदेश सरकार राजधानी भोपाल में राज्‍य आनंद संस्‍थान चलाती है। ये विभाग खुशी, आनंद, क्षमा, तनाव, संवेदनशीलता और मदद जैसे कई मॉड्यूल पर काम कर रहा है। इसमें ‘अल्‍पविराम’ ‘आनंद उत्‍सव’ ‘जॉय ऑफ गिविंग’ ‘आनंद सभा’ आदि माड्यूल पर काम किया जा रहा है। इन आयोजनों में सब मिलाकर अब तक 20 लाख से ज्‍यादा लोगों की भागीदारी हो चुकी है।
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कैसे काम करते हैं अलग-अलग मॉड्यूल?
अल्‍पविराम और आनंद उत्‍सव है जो सामाजिक समरसता बढ़ाने का काम करता है। इन कार्यक्रमों में पूरे प्रदेश में 10 हजार से ज्‍यादा स्‍थानों पंचायतों पर गावों आयोजन हो चुका है। इसमें करीब 20 लाख लोगों की भागीदारी रही।

जॉय ऑफ गिविंग के तहत हमने आनंदम केंद्र स्‍थापित किए इसमें कपड़े, खिलोने साइकिल, कार, स्‍कूटर या कोई दूसरा सामान रख देते हैं इन केंद्रों में किताबें है जरूरत मंद ले जाते हैं। प्रदेश में इसके तहत 172 केंद्र हैं।

आनंद सभा 9 से 12 साल तक के बच्‍चों के लिए है। जो जीवन कौशल, मदद, आत्‍मविश्‍वास, क्षमा, संवेदनशीलता आदि मॉड्यूल पर काम करता है।

आनंद क्‍लब के तहत राज्‍य सरकार की आनंद संस्‍थान की वेबसाइट पर कोई भी अपना क्‍लब गठित कर सकता है। जिसकी मदद से कोई भी आम नागरिक लोगों के लिए काम कर सकता है। हमारे साथ 400 क्‍लब हैं। 4 हजार सदस्‍यों की संख्‍या है। यह क्‍लब युवाओं के लिए है। हमारा कोई स्‍टाफ नहीं है। ये सारे प्रोग्राम वॉलिटिंयर की मदद से संचालित होते हैं। हमारे साथ इस वक्‍त 75 हजार वॉलिंटेयर हैं।

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