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सावधान! तब बीमारी के दूसरे दौर ने भारत में ली थी करोड़ों की जान

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संदीपसिंह सिसोदिया

भारत सहित पूरे विश्व में इस जानलेवा बीमारी से बचने के लिए अभूतपूर्व लॉकडाउन जारी है। लेकिन अब खबर आ रही है कि कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन में रियायत मिलने के बाद दुनिया के कुछ सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों में लाखों लोग सैर करने के लिए/जरूरी सामान के लिए बाहर सड़कों पर निकल गए और नतीजा यह हुआ कि भारत समेत कई देशों में रविवार को एक दिन में संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले सामने आए जो चिंता का विषय है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेताया है कि बंद में राहत के दौरान अगर जांच की संख्या को नहीं बढ़ाया गया तो संक्रमण का दूसरा दौर आ सकता है।

उल्लेखनीय है कि इसके पहले भी ऐसा देखा जा चुका है। 1918 में फैले स्पेनिश फ़्लू ने अपने दूसरे दौर में पहले से ज्यादा भयानक कहर ढ़ाया था। भारत में इस खतरनाक बीमारी की शुरुआत बंबई से हुई थी।

बॉम्बे फीवर या बॉम्बे इंफ्लुएंजा : बीमारी के प्रसार और गंभीरता को देखते हुए इसे बॉम्बे फीवर या बॉम्बे इंफ्लुएंजा भी कहा जाता है। बंबई में महामारी इतनी तेजी से फैली कि देखते ही देखते शहर में हाहाकार मच गया।

रिसर्चर डेविड अर्नाल्ड अपने रिसर्च पेपर Death and the Modern Empire : The 1918-19 Influenza Epidemic in India में लिखते हैं कि सिर्फ एक ही दिन में, 6 अक्टूबर 1918 में बंबई में मौतों का आधिकारिक आंकड़ा 768 था। 
उनके मुताबिक भारत में बॉम्बे फीवर या स्पैनिश फ़्लु के 2 दौर आए। पहले संक्रमण ने बच्चों और बुजुर्गों जिनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है को अपनी चपेट में लिया। लेकिन इसका दूसरा दौर बेहद खतरनाक था जिसने 20 से 40 साल के युवाओं को भी नहीं बख्शा। घरों में रहने वाली महिलाएं इस बीमारी का सबसे अधिक शिकार हुईं। इसका बड़ा कारण बीमारों की देखभाल करते समय संक्रमित होने और पर्याप्त भोजन न मिलने से होने वाल कुपोषण रहा।

सिद्धार्थ चंद्रा और ईवा कासन-नूर के रिसर्च पेपर The evolution of pandemic influenza: evidence from India, 1918–19 में इस बात का स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि किस तरह स्पेनिश फ़्लू का दूसरा दौर भी सितंबर-अक्टूबर 1918 में बंबई से शुरू हुआ और एक महीने में यह समूचे भारत से लेकर श्रीलंका तक फैल गया।

तत्कालीन सेनिटेरी कमिश्नर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा- 'संक्रमण के दूसरे और खतरनाक दौर को इतनी जल्दी पूरे भारत में फैलाने में सबसे बड़ी भूमिका रेल की है। जो पहले विश्वयुद्ध से लौट रहे सैनिकों का परिवहन कर रही है।'

इन्हीं शहरों में मृत्यु दर भी सर्वाधिक रही। जहां मुंबई में प्रति हजार मरीजों में 54 मौतें हुईं वहीं मद्रास और कलकत्ता (अब कोलकाता) में यह थोड़ी कम रही। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि किस तरह इस बीमारी के दोनों दौर की शुरुआत मुंबई, मद्रास और कलकत्ता जैसे बड़े शहरों, जो उस समय में विदेश से आने वाले जहाजों के बंदरगाह थे से हुई।

अक्टूबर 1918 में जब संक्रमण का दूसरा दौर फैल रहा था तब मुंबई के अखबारों ने लोगों को घर पर रहने की सलाह दी। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा कि बीमारी मुख्य रूप से मानव संपर्क के माध्यम से नाक और मुंह से संक्रमित स्राव के माध्यम से फैलती है।

तब भी अखबारों में लगातार अपील की जा रही थी कि सभी को उन जगहों से दूर रखना चाहिए जहां भीड़भाड़ होती है और संक्रमण का खतरा होता है जैसे कि मेलों, त्योहारों, थिएटरों, स्कूलों, सार्वजनिक व्याख्यान हॉल, सिनेमा, मनोरंजन दलों, भीड़, रेलवे आदि।

इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च पर इन्फ्लुएंजा महामारी के शताब्दी वर्ष 2018 में ललित कांत और रणदीप गुलेरिया द्वारा प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट Pandemic Flu, 1918: After hundred years, India is as vulnerable में उल्लेख किया गया है तब के स्पेनिश फ़्लू में, वैश्विक मृत्यु का कुल अनुमान 50-100 मिलियन था। भारत में इस दौरान लगभग 10-20 मिलियन मौतें में हुई जो दुनिया में सबसे अधिक मौतों का उच्चतम प्रतिशत (4.39%) था।

एक मॉडल से पता चला है कि अगर 2004 में इसी तरह की महामारी होती है तो दुनिया में लगभग 62 मिलियन मौतें होने की आशंका है। उन्होंने चेताया था कि ऐसी स्थिति में भारत में विश्व में सर्वाधिक मौतें (लगभग 14.8 मिलियन) हो सकती हैं। 

लेख में साफ लिखा है कि 2018 में भी, स्थिति किसी भी तरह से भिन्न होने की संभावना नहीं है। हालांकि, हमें इतिहास को खुद को दोहराने से रोकना चाहिए। अब यह बाजी हमारे हाथ में हैं कि विश्व के शक्तिशाली देशों को घुटनों पर बैठाने वाली इस वैश्विक आपदा में बचने के उपायों को लेकर कितने अनुशासित, सतर्क और सजग रहते हैं।

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