Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

लॉकडाउन का एक माह, थम सी गई जीवन की रफ्तार, लोगों की बेचैनी एवं चिंता बढ़ी

हमें फॉलो करें लॉकडाउन का एक माह, थम सी गई जीवन की रफ्तार, लोगों की बेचैनी एवं चिंता बढ़ी
, शनिवार, 25 अप्रैल 2020 (13:53 IST)
नई दिल्ली। एक महीने से ऊपर का वक्त हो गया है जब जीवन की रफ्तार थम सी गई है और लोग जीवन में अच्छे-बुरे अनुभवों का सामना कर रहे हैं। परिवार, दोस्तों और सहयोगियों के साथ रिश्तों में फिर से सामंजस्य बिठाया जा रहा है और रोज जब अब उनकी आंखे खुलती हैं तो भारतीय समाज की जड़ों में व्याप्त समानता और असमानताओं से सामना होता है तथा अपने और दूसरों का फर्क करीब से महसूस होता है।
 
कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के प्रयास में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से 24 मार्च शाम को देशव्यापी बंद की घोषणा के एक दिन बाद से भारत में लॉकडाउन लागू है। उसके बाद से अब तक गुजरे दिनों में, 1.3 अरब भारतीय, केंद्रीय स्थानों और दूरस्थ कोनों में बसे अमीर और गरीब, सभी ने दुनिया भर में फैली महामारी के डर का सामना किया है।
 
3 मई तक बढ़ाए गए बंद की बेचैनी से कोई भी अछूता नहीं है, न तो शानदार कोठियों में रह रहे रईस कारोबारी, न घरों में बंद मध्यम वर्ग और न ही किराये के छोटे-छोटे घरों में दिहाड़ी मजदूर।
 
webdunia
भय की यह स्थिति भले ही सबके लिए सामान्य हो लेकिन इनके बीच की असमानताओं का फर्क भी तुरंत देखने को मिला। बंद लागू होते है जहां लाखों लोग अपने घरों में कैद रहने पर मजबूर हो गए वहीं प्रवासी और दिहा़ड़ी मजदूर जो अपने घरों से मीलों दूर फंसे हुए थे, उनका भविष्य अनिश्चितताओं मे घिर गया जहां न उनके पास पैसा है, न खाना और न नौकरी।
 
ज्यादातर मध्यम एवं ऊपरी वर्ग के परिवार अपने करीबियों के साथ इतना समय बिताने को एक चुनौती की तरह देख रहे हैं और कई उनके बिना अलग-थलग पड़ अवसाद झेल रहे हैं।
 
जीवन के नए तरीके के अनुकूल ढलना, घरेलू सहायक-सहायिकाओं की मदद के बिना घर का सारा काम करना, घर से बाहर निकलने के लिए तैयार होने की जरूरत से मिली मुक्ति और दिन भर घर के अंदर रहना आम-खास सभी के जिंदगी का हिस्सा बन गया है।
 
webdunia
गुड़गांव के पारस अस्पताल की क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक प्रीति सिंह के मुताबिक, इस लॉकडाउन ने लोगों को जरूरत और इच्छाओं के बीच फर्क करना सिखाया है और उन्हें “अपनी जरूरतों को प्राथमिकता देने’’ में मदद की है।
 
सिंह ने कहा, ‘इसने लोगों को एहसास कराया है कि कोई भी व्यक्ति अल्पतम जरूरतों के साथ और दुनिया में व्याप्त वस्तुवाद के बिना भी गुजारा कर सकता है।‘
 
बंद के इन दिनों को लोग जीवन भर याद रखेंगे और इसने सामजिक दूरी बनाए रखने की जरूरत के मद्देनजक सामाजिक संवाद, त्योहारों का जश्न और यहां तक कि शोक मनाने के नये तरीके भी सीखे हैं। कई लोगों ने माना कि यह उनकी ताकतों को फिर से आंकने और कई बार छिपी हुए प्रतिभाओं को सामने लाने की भी अवसर है। (भाषा)
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

चीन ने covid 19 के तीसरे टीके के लिए क्लिनिकल परीक्षण की मंजूरी दी