स्पेशल स्टोरी : कोरोना से जंग में आने वाले समय में जल संकट होगा नई चुनौती?
मई- जून में महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्यप्रदेश में गहराता है जलसंकट
जैसे जैसे गर्मी के तेवर तीखे होते जा रहे है कोरोना से जंग लड़ रहे देश में एक नई चुनौती खड़ी होती हुई दिखाई दे रही है। कोरोना संक्रमण से बचने के लिए बार-बार हाथ धोने और सैनिटाइजेशन को सबसे अच्छा विकल्प बताया गया है, लेकिन जैसे जैसे पारा चढ़ता जा रहा है अब इन विकल्पों पर ही ग्रहण लगता हुआ दिखाई दे रहा है इसकी बड़ी वजह गर्मी में जलसंकट का धीमे धीमे विकराल रुप लेना है। अभी जब गर्मी अपने शुरुआती दौर में ही है तब कई इलाकों में जलसंकट की आहट सुनाई देने लगी है।
महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और राजस्थान जैसे राज्य जो इस समय कोरोना से बुरी तरह जूझ रहे है वहां हर साल गर्मी में एक बड़ी आबादी पानी के संकट से जूझती हुई दिखाई देती है। मध्यप्रदेश में भोपाल, इंदौर के साथ बुंदेलखंड के कई जिलों गर्मी के दिनों में लाखों की संख्या में लोग पानी के टैंकरों पर ही निर्भर रहते है इस बार यह समस्या इसलिए और जल्दी बड़ी होती हुई दिख रही है क्यों कि कोरोना से बचने के लिए लोग घरों में बड़ी मात्रा में पानी का उपयोग स्वस्छता के लिए कर रहे है।
एक अनुमान के मुताबिक एक व्यक्ति को अपने दैनिक कार्यो के लिए औसतन 20 लीटर पानी लगता है लेकिन कोरोना काल में यह दोगुना यानि 40 लीटर तक पहुंच गया है। इसके साथ ही कोरोना संक्रमण को खत्म करने के लिए घरों में बड़े पैमाने पर सेनेटाइजेशन का काम चल रहा है जिसमें बड़े पैमान पर पानी का उपयोग हो रहा है।
वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीटयूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल दो लाख लोग जल अनुपलब्धता और स्वछता संबंधी उचित व्यवहार न होने की वजह से मर जाते है। ऐसे में कोरोना जैसी महामारी जिसको रोकने के लिए हायजीन और सेनीटेशन एक अनिवार्य शर्त है, के गर्मी और भयान रूप लेने की संभावना है।
कोरोना और जलसंकट को लेकर जलपुरुष और मैग्सेसे पुरुस्कार विजेता राजेंद्र सिंह का नजरिया जनाने के लिए वेबदुनिया ने उनसे खास बातचीत की । वेबदुनिया से बातचीत में राजेंद्र सिंह कहते हैं कि संकट हाथ धोने या साफ सफाई में खर्च होने वाले पानी से कहीं ज्यादा उन उद्योगों के फिर से खुलने से खड़ा होगा जो लॉकडाउन के चलते अभी बंद पड़े है। जब लॉकडाउन खुलेगा तो इंड्रस्ट्री एकदम से पानी का शोषण और प्रदूषण करेगी और नदियां एक बार तेजी से प्रदूषित होने लगेगी। इसके साथ ही जब एक साथ उद्योग बड़ी मात्रा में चालू होंगे तो निश्चित तौर पर जलसंकट बढ़ेगा।
जलपुरुष राजेंद्र सिंह कहते हैं कि कोरोना के चलते सबसे बड़ा फायदा भारत की नदियों को हुआ है जिनमें एक अनुमान के मुताबिक 50 फीसदी सेे अधिक प्रदूषण कम हो गया है। वह कहते हैं कि लॉकडाउन से हमें यह सीख मिली है कि हम बिना खर्च किए नदियों को ठीक कर सकते है ऐसे में अब हमें आगे भी इस तरह बढ़ने का रास्ता खोजना चाहिए।
वह वेबदुनिया के जरिए केंद्र सरकार का ध्यान इस ओर दिलाना चाहते है कि लॉकडाउन के दौरान देश के नदियों के प्रदूषण में करीब आधी की कमी आई है और सरकार अब प्रदूषण कम करने के लिए इसके लिए कोई रोडमैप बनाए। वह कहते हैं कि औद्योगिक प्रदूषण से बचने का एकमात्र उपाय है कि हमें गांव पर फिर ध्यान देना चाहिए और खेती,बागवानी और गांव के रोजगार पर विशेष ध्यान देना चाहिए।