नई दिल्ली। कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देशव्यापी बंद के दौरान मौत के 300 से ज्यादा ऐसे मामले सामने आए हैं, जो प्रत्यक्ष तौर पर तो कोरोना वायरस संक्रमण से जुड़े नहीं हैं, लेकिन इससे जुड़ीं अन्य समस्याएं इनका कारण हैं।
शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में यह खुलासा किया है। अध्ययन में 2 मई तक हुए मौतों के मामलों को ही शामिल किया गया है। इसके बाद भी कई लोगों की मौतें लॉकडाउन या कोरोना वायरस से जुड़ी समस्याओं के कारण हुई हैं।
शोधकर्ताओं के समूह में पब्लिक इंटरेस्ट टेक्नोलॉजिस्ट तेजेश जीएन, सामाजिक कार्यकर्ता कनिका शर्मा और जिंदल ग्लोबल स्कूल ऑफ लॉ में सहायक प्रोफेसर अमन शामिल हैं। इस समूह का दावा है कि 19 मार्च से लेकर 2 मई के बीच 338 मौतें हुईं हैं, जो लॉकडाउन से जुड़ी हुई हैं।
अध्ययन के अनुसार आंकड़े बताते हैं कि 80 लोगों ने अकेलेपन से घबराकर और संक्रमित पाए जाने के भय से खुदकुशी कर ली। इसके बाद मरने वालों का सबसे बड़ा आंकड़ा है प्रवासी मजदूरों का। बंद के दौरान जब ये अपने घरों को लौट रहे थे तो विभिन्न सड़क दुर्घटनाओं में 51 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई।
विड्रॉल सिम्टम्स (शराब नहीं मिलने से) से 45 लोगों की मौत हो गई और भूख एवं आर्थिक तंगी से 36 लोगों की जान गई। शोधकर्ताओं ने एक बयान में कहा कि संक्रमण से डर से, अकेलेपन से घबराकर, आने-जाने की मनाही से बड़ी संख्या में लोगों ने आत्महत्याएं की हैं।
बयान में कहा गया कि उदाहरण के तौर पर विड्रॉल सिम्टम्स से ठीक तरह से निपट नहीं पाने से 7 लोगों ने ऑफ्टर शेव लोशन अथवा सैनिटाइजर पी लिया जिससे उनकी मौत हो गई। पृथक केंद्रों में रह रहे प्रवासी मजदूरों ने संक्रमण के भय से, परिवार से दूर रहने की उदासी जैसी हालात में आत्महत्या कर ली अथवा उनकी मौत हो गई।
इस समूह ने समाचार पत्रों, वेब पोर्टलों और सोशल मीडिया की जानकारियों को मिलाकर ये आंकड़े तैयार किए हैं।
उल्लेखनीय है कि देश में कोविड-19 से 56,000 से अधिक लोग संक्रमित हुए है जिनमें से 1,800 लोगों की मौत हो गई है। (भाषा)