नई दिल्ली। सुक्र कुंडल का आधा वेतन गुड़गांव से ऑटो से आने में खर्च हो गया है और अब वह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के बाहर दो दिनों से खड़ा है ताकि अपने घर असम लौटने के लिए एक ट्रेन टिकट पाने की खातिर पंजीकरण करा सके।
कतार लंबी और घुमावदार है और कुंडल से पहले कतार में खड़े एक व्यक्ति को कोकराझार जाने के लिए ट्रेन का टिकट मिल गया है, जो गुड़गांव में सफाईकर्मी है और यह ट्रेन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से नहीं बल्कि पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से रवाना होगी।
पंजीकरण संख्या मिलने के बाद वह कुछ किलोमीटर दूर अंबेडकर नगर स्टेडियम में मेडिकल जांच कराने के लिए बस में सवार होगा। वहां भी उसे कतार में लगना पड़ेगा। अगर सब ठीक रहा तो वह एक और कतार में लगेगा ताकि पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के अंदर जा सके और श्रमिक विशेष रेलगाड़ी पकड़कर अपने घर के लिए रवाना हो सके।
ट्रेन में सवार होने की अनिश्चितता के बीच पंक्तियों में खड़े रहना काफी थकान भरा काम है। कतार में सैकड़ों लोग खड़े हैं और उनके बीच कोई सामाजिक दूरी नहीं है।
मई की दोपहर में गर्मी को मात देकर सैकड़ों लोग काउंटर तक पहुंचने की उम्मीद में हैं। 30 वर्षीय कुंडल का धैर्य अभी बना हुआ है, लेकिन परिवार से मिलने से पहले संभवत: उसके पास रुपए नहीं बचें।
उसने कहा कि मेरे पास महज 2500 रुपए हैं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि इतनी लंबी लाइन होगी और मुझे इतना लंबा इंतजार करना होगा। मुझे नहीं पता था कि मुझे पुरानी दिल्ली से ट्रेन पकड़ना पड़ेगी। यहां पहुंचना कठिन था।
कुंडल गुड़गांव में एक पेइंग गेस्ट होटल में काम करता है और उसने 6 हजार रुपए कमाए, लेकिन 25 किलोमीटर की दूरी तय करने में 3 हजार रुपए खर्च हो गए।
उसने कहा कि मेरी नौकरी चली गई और अब रहने के लिए कोई जगह नहीं है। इसलिए मैं कहीं नहीं जा सकता। मेरी केवल यही उम्मीद है कि मुझे टिकट मिलेगा। मेरे बच्चे मुझे रोज फोन करते हैं और कहते हैं कि मैं कब घर आऊंगा।
लाखों श्रमिक पैदल या साइकिल से घरों के लिए लौट रहे हैं जिस दौरान उनमें से कई मौत का शिकार बन रहे हैं या वे जख्मी हो रहे हैं। इसके अलावा मुंबई एवं अन्य स्थानों पर रेलवे स्टेशनों पर लंबी-लंबी लाइनें लगी हुई हैं। (भाषा)