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महंगाई की मार, 2000 तक रुपए बढ़ गया एक सामान्य परिवार का बजट...

हमें फॉलो करें महंगाई की मार, 2000 तक रुपए बढ़ गया एक सामान्य परिवार का बजट...

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, गुरुवार, 24 जून 2021 (13:54 IST)
कोरोनावायरस (Coronavirus) काल में एक तरफ जहां लोगों को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझना पड़ा, वहीं लोगों के काम-धंधे चौपट होने से आर्थिक रूप से भी काफी नुकसान उठाना पड़ा है। पेट्रोल से लेकर अन्य रोजमर्रा की वस्तुओं के बढ़ते दामों ने आम आदमी को पूरी तरह तोड़कर रख दिया है। अनुमान के मुताबिक एक आम मध्यमवर्गीय परिवार का घर खर्च 2000 रुपए प्रतिमाह तक बढ़ गया है।
 
यूं तो अन्य घरेलू सामान के दाम भी बढ़े हैं, लेकिन सबसे ज्यादा आम आदमी का बजट बिगाड़ा है खाद्य तेल और दालों ने। खाद्य तेल पिछले साल के मुकाबले लगभग दोगुने भाव पर बिक रहे हैं। कुछ समय पहले तक स्थिति यह थी कि सोया तेल के दाम दोगुने से भी ज्यादा हो गए थे। हालांकि अभी कुछ नरमी देखने को मिल रही है। दालों में भी पिछले वर्ष की तुलना में 30 से 35 रुपए तक अंतर आ गया। 
 
एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले सुरेन्द्र आर्य कहते हैं कोरोना काल का सबसे बड़ा नुकसान परिवार को यह हुआ कि आय तो घट गई, लेकिन खर्चे बढ़ गए। खाद्य तेल के पिछले साल की तुलना में डबल हो गए। जो दाल पिछली बार 85 रुपए में किलो के भाव से खरीदी थी, इस बार 125 रुपए के भाव से खरीदी। पेट्रोल पर लगने वाला खर्च भी बढ़ गया। हालात यह हैं कि परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। 
 
खेरची किराना व्यवसायी रितेश पोरवाल कहते हैं कि निश्चित ही गत वर्ष की तुलना में दामों में इजाफा हुआ है। तेल के दाम एक वक्त 170-175 तक पहुंच गए थे, लेकिन फिलहाल सोया तेल में थोड़ी नरमी देखने को मिल रही है। अभी सोया तेल 134 रुपए प्रति लीटर के भाव से बिक रहा है, जबकि तुअर दाल 115 एवं मूंग दाल 110 रुपए प्रति किलो के भाव से बिक रही है।
 
हाउस वाइफ श्रीमती दक्षा शर्मा कहती हैं कि इस दौर में पिछली बचत भी महंगाई की भेंट चढ़ गई। क्योंकि पति से मिलने वाले घर खर्च में बहुत कम बढ़ोतरी हुई, जबकि महंगाई तुलनात्मक रूप से ज्यादा बढ़ी। ऐसे में बहुत खींचतान कर घर चल पा रहा है। पति की भी अपनी मजबूरी है क्योंकि उनके वेतन में तो कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है, उल्टा पेट्रोल का खर्च और बढ़ गया।     
 
एक निजी बैंक में गनमैन की नौकरी कर रहे रिटायर्ड फौजी धीरेन्द्र सिंह बताते हैं कि निश्चित ही कोरोना काल में खर्चे बढ़े हैं। किराना, पेट्रोल तो बढ़ा ही है बच्चों की ऑनलाइन क्लास के चलते इंटरनेट का खर्च अतिरिक्त बढ़ गया है। इसके साथ ही दवाइयों आदि का भी खर्च बढ़ गया है। 
 
पेट्रोल पर इस तरह बढ़ा बजट : एक सर्वे के अनुसार, दो पहिया वाहन चालक औसतन एक माह में 15 लीटर पेट्रोल खर्च करता है। दिल्ली में फरवरी 2020 में पेट्रोल के भाव 71.96 रुपए थे जो जून 2021 में बढ़कर 97.50 रुपए हो गए। इस तरह जो व्यक्ति पहले पेट्रोल पर 1079 रुपए खर्च करता था, अब वह 1462 रुपए खर्च करता है। इस तरह उसके बजट पर सीधे-सीधे 383 रुपए का अतिरिक्त भार बढ़ गया है।
 
मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर की ही बात करें तो मार्च 2020 में पेट्रोल 79.92 रुपए प्रति लीटर था, अब पेट्रोल पर करीब 105.98 रुपए प्रति लीटर है। पहले एक व्यक्ति प्रतिमाह 1199 रुपए पेट्रोल पर खर्च करता था, अब 1587 रुपए खर्च करता है। यहां पेट्रोल  की वजह से प्रति व्यक्ति करीब 390 रुपए का भार पड़ा है।

बसों का किराया भी बढ़ा : दूसरी तरफ बसों का किराया भी बढ़ गया है। यह भी अतिरिक्त खर्च के रूप में जुड़ गया है। एआईसीटीएल की बसों का इंदौर से भोपाल का किराया 350 रुपए था, जो अब बढ़कर 435 रुपए हो गया है। इसमें 85 रुपए का अंतर आ गया। इंदौर से बुरहानपुर का किराया 100 रुपए बढ़कर 280 से 380 रुपए हो गया है। इसके साथ ही अन्य रूटों पर भी किराया बढ़ गया है। निजी बस ऑपरेटरों ने भी कमोबेश अपने किराए में वृद्धि की है। 
 
...और इस पर ये कुतर्क : पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक मैसेज काफी चल रहा है- 'मैं मध्यमवर्गीय परिवार से हूं। मैंने 2013 में 30 लाख का होम लोन 20 साल के लिए 12% की ब्याज दर पर लिया था। मेरी 2013 में EMI थी- 33,033, जबकि आज मेरी उसी होम लोन पर ब्याज दर रेट 6.7% है, आज मेरी EMI है 22,722 मतलब मुझे नेट प्रति महीना 10,311 रुपए का फायदा है। यानी 1 लाख 23 हजार 7 सौ 32 रुपए सालाना फायदा। अब मैं 2-4 रुपए पेट्रोल बढ़ने पर रोऊं या 1 लाख 23 हजार 732 रुपए सालाना बचत के मजे लूं।
 
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या महंगाई से जूझ रहे सभी भारतीयों ने होम लोन ले रखा है? क्या सभी की हैसियत 30 लाख रुपए लोन लेने की है? और सबसे बड़ी बात जो 10-15 हजार रुपए मासिक कमा रहा है क्या वह 20-30 लाख रुपए का लोन ले सकता है या फिर बैंकें ऐसे व्यक्तियों को लोन देंगी? ऐसे में यह महंगाई को जस्टीफाई करने के कुतर्क से ज्यादा कुछ नहीं है। क्योंकि वास्तविकता इसके उलट है।

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