Ahilya bai holkar jayanti

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

WHO द्वारा पारंपरिक दवाओं के वैश्विक केंद्र के लिए भारत को चुना जाना गर्व की बात : मोदी

Advertiesment
हमें फॉलो करें World Health Organization
, शुक्रवार, 13 नवंबर 2020 (23:48 IST)
नई दिल्ली। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने शुक्रवार को घोषणा की कि वह भारत में पारंपरिक दवाओं के लिए एक वैश्विक केंद्र की स्थापना करेगा, जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्वास जताया कि जिस तरह देश 'दुनिया की फार्मेसी' के तौर पर उभरा है, वैसे ही डब्ल्यूएचओ का संस्थान वैश्विक स्वास्थ्य का केंद्र बनेगा।

पांचवें आयुर्वेद दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में एक वीडियो संदेश के माध्यम से डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक तेद्रोस अधानोम गेब्रेसस ने यह घोषणा की। इसी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने जयपुर और जामनगर के दो आयुर्वेद संस्थानों को वीडियो कॉन्फ्रेंस से देश को समर्पित किया।

गुजरात के जामनगर स्थित आयुर्वेद अध्यापन एवं अनुसंधान संस्थान (आईटीआरए) और जयपुर का राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान (एनआईए) देश में आयुर्वेद के प्रमुख संस्थान हैं। आयुष मंत्रालय के अनुसार आईटीआरए, जामनगर को संसद में कानून पारित करके राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का दर्जा दिया गया है, वहीं जयपुर स्थित आयुर्वेद संस्थान को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने ‘डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी’ संस्थान का दर्जा दिया है।

गेब्रेसस ने एक वीडियो संदेश में कहा, मुझे यह घोषणा करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि हम भारत में डब्ल्यूएचओ का एक वैश्विक परंपरागत औषधि केंद्र खोलने के लिए सहमत हो गए हैं ताकि परंपरागत और पूरक दवाओं के अनुसंधान, प्रशिक्षण और जागरुकता को मजबूत किया जा सके।

उन्होंने कहा, यह नया केंद्र डब्ल्यूएचओ की पारम्परिक चिकित्सा रणनीति 2014-2023 को क्रियान्वित करने के डब्ल्यूएचओ के प्रयासों में मदद करेगा। इस रणनीति का उद्देश्य स्वस्थ और सुरक्षित विश्व के लिए देशों को नीतियां बनाने और उसमें पारम्परिक चिकित्सा की भूमिका को मजबूती देना है।

डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने कहा कि आयुर्वेद जैसी पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली एकीकृत जनकेंद्रित स्वास्थ्य सेवाओं और सुविधाओं में अहम भूमिका निभा सकती हैं, लेकिन इनकी ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। गेब्रेसस ने आयुष्मान भारत के तहत सरकार की प्रतिबद्धता के लिए और स्वास्थ्य संबंधी उद्देश्यों की पूर्ति के लिहाज से पारंपरिक दवाओं के साक्ष्य आधारित संवर्द्धन के लिए मोदी की प्रशंसा की।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आयुर्वेद भारत की विरासत है जिसके विस्तार में पूरी मानवता की भलाई समाई हुई है और देश के परंपरागत ज्ञान से दूसरे देशों को समृद्ध होते देखकर प्रत्येक भारतीय प्रसन्न होगा। उन्होंने कहा कि यह सम्मान की बात है कि डब्ल्यूएचओ ने पारम्परिक दवाइयों के वैश्विक केन्द्र की स्थापना के लिए भारत को चुना है।

उन्होंने कहा, अब भारत से दुनिया के लिए इस दिशा में काम होगा। भारत को यह बड़ी जिम्मेदारी देने के लिए मैं डब्ल्यूएचओ और उसके महानिदेशक का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। मोदी ने कहा, मुझे विश्वास है कि जिस तरह भारत दुनिया की फार्मेसी के रूप में उभरा है, उसी तरह पारंपरिक दवाओं का यह केंद्र वैश्विक स्वास्थ्य का केंद्र बनेगा।

मोदी ने कहा कि भारत के पास आरोग्य से जुड़ी कितनी बड़ी विरासत है लेकिन यह ज्ञान ज्यादातर किताबों में, शास्त्रों में और थोड़ा-बहुत दादी-नानी के नुस्खों तक सीमित रहा। उन्होंने कहा, इस ज्ञान को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुसार विकसित किया जाना आवश्यक है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि देश में अब हमारे पुरातन चिकित्सीय ज्ञान-विज्ञान को 21वीं सदी के आधुनिक विज्ञान से मिली जानकारी के साथ जोड़ा जा रहा है, नया अनुसंधान किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि तीन साल पहले ही हमारे यहां अखिल भारतीय आयुर्वेदिक संस्थान की स्थापना की गई थी। उन्होंने कहा कि आज आयुर्वेद एक विकल्प नहीं बल्कि देश की स्वास्थ्य नीति का प्रमुख आधार है।

मोदी ने बताया कि लेह में राष्ट्रीय सोवा-रिगपा अनुसंधान संस्थान और सोवा-रिगपा से संबंधित अन्य अध्ययनों के विकास के लिए काम चल रहा है। उन्होंने कहा कि गुजरात और राजस्थान के दोनों संस्थान भी इसी विकास प्रक्रिया का विस्तार हैं।

दोनों संस्थानों को उन्नयन के लिए बधाई देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी अब और अधिक जिम्मेदारी है और उम्मीद है कि वे आयुर्वेद के लिए ऐसा पाठ्यक्रम तैयार करेंगे जो अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करते हों। मोदी ने शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी से आयुर्वेद भौतिकी और आयुर्वेद रसायनशास्त्र जैसे विषयों में नए मार्ग तलाशने को कहा।

प्रधानमंत्री ने स्टार्टअप और निजी क्षेत्र से भी वैश्विक प्रवृत्तियों तथा मांगों का अध्ययन करने और इस क्षेत्र में उनकी सहभागिता सुनिश्चित करने को कहा।
 
उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस के दौरान आयुर्वेद उत्पादों की मांग पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ गई और पिछले साल की तुलना में इस साल सितंबर में आयुर्वेद दवाओं के निर्यात में करीब 45 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना से मुकाबले के लिए जब कोई प्रभावी तरीका नहीं था तो भारत के घर-घर में हल्दी, अदरक, काढ़ा जैसे रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले उपाय बहुत काम आए।
उन्होंने कहा, यह दर्शाता है कि दुनिया में आयुर्वेदिक समाधान और भारतीय मसालों पर विश्वास बढ़ रहा है। अब तो कई देशों में हल्दी से जुड़े विशेष पेय पदार्थों का भी प्रचलन बढ़ रहा है। दुनिया के प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल भी आयुर्वेद में नई आशा और उम्मीद देख रहे हैं।(भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

अयोध्या में दिव्य दीपोत्सव के मौके पर रोशनी से जगमगाएंगे घाट...