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Ground Report : Unlock ‘इंडिया’ में ‘भारत’ में रहने वाला प्रवासी मजदूर झेल रहा लॉकडाउन की विभीषिका

प्रवासी मजदूरों पर बेरोजगारी के साथ मंडराया भुखमरी का संकट

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विकास सिंह

, सोमवार, 1 जून 2020 (12:50 IST)
कोरोना संकट काल में चार चरणों के लॉकडाउन के बाद आज से देश में अनलॉक -1 की शुरुआत हो गई है। कोरोना के चलते बर्बाद हुई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए आज से कंटेनमेंट इलाके ही केवल लॉक रहेंगे और सब कुछ अनलॉक। 
 
भले ही देश में 76 दिनों के बाद लॉकडाउन खत्म हो गया हो लेकिन इस लॉकडाउन ने ‘इंडिया’ और ‘भारत’ के बीच की खाई को और गहरा कर दिया है। लॉकडाउन के दौरान ‘इंडिया’ में रहना वाला प्रवासी मजदूर अब ‘भारत’ में वापस लौट चुका है और वापस इंडिया में जाने को  तैयार नहीं है।
 
‘भारत’ में लौटा प्रवासी मजदूर अब लॉकडाउन का दंश झेलने को मजबूर है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल में देश में करीब 12 करोड़ लोगों ने अपनी नौकरी गंवा दी है। अप्रैल महीने देश में बेरोजगारी दर रिकॉर्ड 24 फीसदी का आंकड़ा पार कर गई है।
 
रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल महीने में अंसगठित क्षेत्र में काम करने वाले करीब 10 करोड़ लोगों ने अपना रोजगार खो दिया। अंसगठित क्षेत्र में इतने बड़े पैमाने पर रोजगार का संकट होने के बाद ही इनमें काम करने वाले प्रवासी मजदूर कोरोड़ों की संख्या में गांव की ओर पलायन के लिए मजबूर हुए है। 
 
अगर बात मध्यप्रदेश की करें तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुताबिक अब तक सरकार 6 लाख के करीब प्रवासी प्रवासी मजदूर को ला चुकी है। वहीं  के मुताबिक करीब 4 लाख लोग खुद से अपने घरों तक पहुंच चुके है।  
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'वेबदुनिया' लगातार गांव लौटे प्रवासी मजदूरों से बात कर गांवों में उनकी स्थिति और भविष्य को लेकर उनके नजरिए को समझने की कोशिश कर रहा है। इसलिए वेबदुनिया ने एक बार फिर उन प्रवासी मजदूरों से बात की जो लॉकडाउन के दौरान बाहर के राज्यों में फंसे थे लेकिन अब अपने घर लौट आए है। 
 
लॉकडाउन के चलते गुजरात के वलसाड़ में लंबे समय तक फंसे रहने वाले छतरपुर जिले के जयप्रकाश पटेल अब अपने गांव लौट आए है। गांव लौटने पर राहत की सांस लेते हुए जयप्रकाश कहते हैं कि वो 5 सालों से शहर में कमा खा रहे थे, इतने सालों में गांव को इतना याद कभी नहीं किया जितना लॉकडाउन ने कराया। लॉकडाउन में जब फंसा था तो रात- दिन गांव और परिवार को याद आती थी और अपने आंसू भी नहीं रोक पाता था।
 
पंद्रह दिन पहले अपनी जेब से एक हजार रुपया लगाकर गांव लौटे जयप्रकाश कहते हैं कि अभी घर का खर्च कमाए हुए पैसों से ही चल रहा है। गांव में काम तो कुछ नहीं मिल रहा है और मनरेगा को लेकर भी कुछ जानकारी  नहीं मिल पा रही है। गांव में परिवार के साथ नून-रोटी जरूर खा रहे हैं, लेकिन नींद सुकून के साथ आती है ,शहर की जेल से तो ठीक ही है गांव। गांव का एक भी ऐसा घर नहीं होगा,जिस घर से लोग शहर कमाने न जाते हो. लेकिन लॉकडाउन के चलते लगभग सभी लोग गांव वापस आ गए हैं। 
सात दिन पहले हरियाणा के सोनीपत से अपने घर छतरपुर की गौरिहार तहसील लौटे महेंद्रपाल 'वेबदुनिया' से बातचीत में कहते हैं कि जब मैंने दूर से गांव के पहाड़ को देखा तभी मन को सुकून मिला। दो महीने से दस बाई दस के कमरे में रहकर घुटन सी होने लगी थी,राशन और कमरे का खर्च चलाना भी मुश्किल हो गया था। महेंद्रपाल सोनीपत में साइकिल बनाने वाली एक  कंपनी में काम करते थे, लॉकडाउन के चलते मार्च की सैलरी तो मिली लेकिन इसके बाद कंपनी बंद होने से काम और सैलरी दोनों बंद हो गए। 
 
'वेबदुनिया' से बातचीत में महेंद्र पाल कहते हैं कि शहर में भूखे मर रहे थे वहां कोई सुध लेने वाला भी नहीं था, लेकिन गांव में कम से कम अपने लोग तो हैं, भूखे तो नहीं मरेंगे। भविष्य के सवाल पर महेंद्र कहते हैं जब तक कोरोना है हम गांव में रहकर ही गुजारा करेंगे अब शहर जाने का मन नहीं हैं लेकिन भविष्य में गांव में रहकर क्या करेंगे इसका कोई जवाब नहीं दे पाते है। 
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6 साल पहले गांव छोड़कर पूरे परिवार समेत दिल्ली चले गए बबलू जोशी का परिवार भी लॉकडाउन के चलते अब वापस गांव लौट आया है। 'वेबदुनिया' से बातचीत में बबलू कहते हैं मेरे साथ पत्नी, बच्चे और भाई भी दिल्ली में काम करते थे लेकिन दो महीने  के लॉकडाउन ने हमारी कमर तोड़ दी और अंत में गांव ही आने का निर्णय लिया। 
 
एक्सपर्ट का नजरिया - गांव लौटे मजदूरों की स्थिति पर संस्था विकास संवाद से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता राकेश मालवीय  कहते हैं कि अब प्रवासी मजदूर लॉकडाउन की विभीषिका को झेल रहा है। मध्यप्रदेश में प्रवासी मजदूरों की स्थिति काफी संवेदनशील और खराब है। 2011 की जनगणना के मुताबिक प्रदेश में तकरीबन 20 लाख लोग बाहर काम करने गए थे। इन बीस लाख परिवारों में से करीब 54 फीसदी ऐसे थे जिन्होंने अकेले पलायन किया। गांव पर उनके परिवार और बच्चे थे ऐसे में लॉकडाउन के बाद ऐसी परिस्थितियां बनी कि वह आखिर कब तक शहरों में रहते और गांव लौटने को मजबूर हुए।
राकेश मालवीय कहते हैं कि आज प्रदेश में करीब 10 लाख लोग लौट आए है। जिनमें से अब आधे से अधिक लोग (53 फीसदी) कह रहे है कि वह शहरों में काम के लिए नहीं जाएंगे वहीं 24 फीसदी लोग अभी कुछ नहीं तय कर पाए। इसके बाद सवाल यहीं उठ रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में गांव पहुंचे लोग आखिर क्या करेंगे। विकास संवाद ने प्रवासी मजदूरों को लेकर जो त्वरित सर्वे किया है उसमें करीब 91 फीसदी लोग मान रहे है कि वो बेरोजगार के संकट में और 76.5 फीसदी लोग मान रहे है कि वह भुखमरी के संकट में फंस सकते है।  
 
गांव लौटै इन मजदूरों को मनरेगा और कृषि ही बचा सकते है और अब इन दोनों को मजबूत करने की जरूरत है। राकेश मालवीय कहते हैं कि मनरेगा में अभी न्यूनतम मजदूरी 176 रूपए मिलती है जबकि मध्यप्रदेश में कृषि का मजदूरी दर 232 रूपए के आसपास है। इसलिए मनरेगा में केवल काम देने से नहीं बल्कि जरूरत मजदूरी बढ़ाने और उसका समय से भुगतान हो इसको सुनिश्चित किया जाना जरूरी है। इसके साथ वह पीडीएस सिस्टम को को और मजबूत करने पर जोर देते है जिससे लोग भुखमरी के संकट में नहीं फंस पाए। 
 

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