कोरोना महामारी के चलते हुए लॉकडाउन के अब जब 50 दिन पूरे होने वाले है तब शहर से गांव तक पूरा परिवेश बदला हुआ नजर आ रहा है। लॉकडाउन जो अब तीसरे चरण में पहुंच गया है उससे बड़े – बड़े शहरों और महानगरों में सन्नाटा पसरा हुआ दिखाई दे रहा है वहीं दूसरी ओर गांव गुलजार हो गए है। कोरोना संकट और उसके बाद हुए लॉकडाउन के चलते रोजगार छीनने के कारण बड़ी संख्या में शहर की तरफ से गांव की ओर रिवर्स पलायन हुआ है।
रोजगार की तलाश में शहर की ओर पलायन करने वाली एक बड़ी आबादी अब फिर गांवों की ओर लौटी है, जिन शहरों में वह रोजगार की तलाश में गए थे, वे अब उजड़े और सुनसान हो गए है, ऐसे में रोजगार की तलाश में शहर की ओर गए लाखों मजदूर आज फिर अपनी जड़ों की ओर लौट रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग इसे शहरीकरण पर पहला तमाचा भी कह रहे हैं।
शहरों से गांवों की ओर हो रहे पलायन ने गांधी के उन सपनों को साकार कर दिया है जिसमें वे ग्राम सुराज की बात किया करते थे। गांधी कहते थे कि यदि भारत को जानना है तो गांव की ओर चलो, गांव में ही भारत की आत्मा निवास करती है।
कोरोना संकट के बाद अचानक के अब गांवों में परिवर्तन देखा भी जाने लगा है। इस संकट की घड़ी में जहाँ बड़े-बड़े शहर वीरान पड़े हैं वहीं गांवों की रौनक बढ़ गई है, अब पहले की तरह गांव में फिर चौपाल सजने लगी हैं, चबूतरे चहकने लगे हैं और चौसर की चाले शहरों की भागमभाग को दांव पर लगा रही हैं। चौपालों में भविष्य की चिंता की बैठकें और राय मशविरे फिर होने लगे हैं।
शहरों से गांव में लौटे लोग अब गांव में ही रोजगार तलाश रहे है या उत्पन्न कर रहे हैं। गांव का किसान अपने खेतों में पैदा होने वाली फल, फूल, सब्जियां अब शहरों की मंडियों में न ले जाकर खुद इन्हें आस पास के इलाकों में जाकर बेच रहा हैं। वहीं बड़ी गांव में मजदूर बड़े पैमाने पर मनरेगा के काम में लग गए है।
मध्यप्रदेश में सरकारी आंकड़ों की मानें तो प्रदेश में 80 हजार से अधिक मजदूरों को मनरेगा का तहत गांव में रोजगार उपलब्ध कराया गया है। जिससे इन मजदूरों के परिवारों को आर्थिक संबल मिला है।
गांवों से शहरों की ओर लगातार हो रहे पलायन से कुटीर उद्योग लगभग खत्म होने लगे थे, क्योंकि गांव की आबादी का एक बड़ा हिस्सा रोजगार की तलाश में शहर की ओर पलायन कर गया था। कोरोना संकट में अब वापस गांव की ओर लौटने से कुटीर उद्योग फिर जी उठे हैं। घरों की महिलाएं तेंदूपत्ते से बीड़ी बनाने का काम कर रही है तो पुरूषों के लिए मनरेगा किसी वरदान से कम नहीं साबित हो रहा है।
विदिशा जिले के छपारा गांव के सरपंच गोविंद सिंह का कहना है कि उनके गांव की लगभग आधी आबादी काम की तलाश में भोपाल इंदौर चली गई थी, जो अब लौट आई है। ये लोग अब या तो आसपास के गांवों में काम करने जाते हैं या फिर अपने ही गांव में कुछ काम करते हैं। कुछ परिवार बीड़ी, बांस की डलिया, और सब्जी बेच रहे हैं।
भोपाल से सटे अब्दुल्ला बरखेड़ी पंचायत से मध्यप्रदेश की युवा सरपंच भक्ति शर्मा का कहना हैं कि गांव के लोगों का शहरों से रिवर्स पलायन लगातार जारी है। इन प्रवासी मजूदरों के लौटने से गांव की रौनक अचानक से बढ़ गई है। हम इनके साथ बातचीत कर लगातार ऐसी योजना बनाने का प्रयास कर रहे हैं जिससे कि इन्हें गांव में ही रोजगार उपलब्ध हो सके और इन्हें फिर रोजगार की तलाश में शहरों की ओर न भागना पड़े। भक्ति शर्मा कहती हैं कि कोरोना संकट के समय उनके गांव की कुछ महिलाएं मास्क बनाकर भोपाल की स्वयंसेवी संस्थाओं को भेज रहीं हैं ताकि इस महामारी से मिलकर लड़ा जा सके।
मैग्सेसे पुरूकार विजेता राजेंद्र सिंह वेबदुनिया से बातचीत में कहते हैं कोरोना जैसे बड़े खतरे से बचने का एक मात्र उपाय है कि सरकार को अब अपना पूरा ध्यान विकेन्द्रीकृत अर्थव्यवस्था (ड्रिसेट्रालाइज इकोनॉमी) को बढ़ावा देने पर लगाना चाहिए है। वह कहते हैं कि आज गांव की इकोनॉमी का कोई सम्मान ही नहीं है। आज जो इकोनॉमी है वह सैंट्रलाइज और मल्टीनेशनल की है। जिसके चलते ही हमें कोरोना संकट में बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ा है ।
वह कहते हैं अब सरकार को ऐसी नीतियां बनानी होगी जिससे कि गांव में रोजगार के नए साधन उपलब्ध है, कुटीर उद्योग एक बार फिर जिंदा हो जिससे की बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिल सके। आज जरुरत गांव को मजबूत बनाने की है और इसके लिए हमारी सरकारों और नीति निर्माताओं को आगे आना होगा।
शहरों से पलायन कर गांव पहुंचे लाखों प्रवासी मजदूरों का दबर आखिरकार लंबे समय तक गांव की अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है ऐसे में सरकार को गांव को ध्यान में रखकर जल्द से जल्द किसी बड़ी नीति का एलान करना होगा।