ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोवीशील्ड को लेकर उठ रहे हर सवाल का एक्सपर्ट एक्सप्लेनर
ICMR के पूर्व सांइटिस्ट डॉक्टर रमन गंगाखेडकर से बातचीत
देश में एक ओर कोरोना महामारी की दूसरी लहर की चपेट में है तो दूसरी ओर कोरोना वायरस से बचाने वाली एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोवीशील्ड सवालों के घेरे में आ गई है। कोवीशील्ड वैक्सीन को लेकर संदेह इसलिए उठ रहा है कि फ्रांस, जर्मनी और स्पेन समेत कई यूरोपीय देशों का एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। इन देशों ने वैक्सीन पर रोक लगाने का कारण बताते हुए कहा है कि वैक्सीन का डोज लेने के बाद कुछ लोगों में ब्लड क्लॉट्स का बनाना बताया है।
भारत में एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोवीशील्ड को इस्तेमाल हो रहा है और यूरोप के देशों में इस पर रोक लगाने के बाद कोवीशील्ड वैक्सीन का डोज ले चुके लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठ रहे है वहीं सोशल मीडिया पर भी वैक्सीन को लेकर कई तरह के मैसेज वायरल हो रहे है।
वेबदुनिया ने कोवीशील्ड वैक्सीन को लेकर उठ रहे सवाल और फैलाए जा रहे भ्रम को लेकर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के महामारी विज्ञान प्रभाग के प्रमुख रहे पद्मश्री डॉक्टर रमन गंगाखेडकर से एक्सक्लूसिव बातचीत की।
वेबदुनिया से बातचीत में डॉक्टर रमन गंगाखेडकर कहते हैं एस्ट्राजेनेका को विश्व के खासकर यूरोप के कुछ देशों में वैक्सीन का डोज लेने के बाद थ्रोम्बोएम्बोलिज्म (खून के अंदर थक्के जमने) की कथित शिकायत के बाद रोक लगा दी है। जिन देशों ने वैक्सीन पर रोक लगाई है वहां पर 50 लाख से अधिक लोगों को वैक्सीन की डोज लग चुकी है। ऐसे में अब जो कथित रुप से शिकायत की बात आई है वह मात्र 37 लोगों में आई है।
वहीं अगर भारत की बात की जाए तो देश में अब तक ढाई करोड़ से अधिक लोगों को वैक्सीन लग चुकी है और कहीं भी कोई शिकायत नहीं मिली है। ऐसे में कोवीशील्ड वैक्सीन को लेकर संदेह उठाकर हम दूसरों के डाटा पर भरोसा कर रहे है अपने डेटा पर नहीं। यूरोप के देशों में 50 लाख लोगों में से मात्र 37 लोगों में थ्रोम्बोएम्बोलिज्म (खून के अंदर थक्के जमने) जैसी किस्म की बीमारी दिख रहे है वह वैक्सीन से होना काफी कठिन है। आमतौर पर ये बीमारी उन लोगों में दिखाई देती है जो ज्यादा चलता नहीं है या जिसकी उम्र ज्यादा हो गई है। अभी वैक्सीनेशन में बुजुर्गो को प्राथमिकता मिल रही है और उनमें यह बीमारी उम्र बढ़ने के साथ होना आम बात है।
कोवीशील्ड वैक्सीन जिसको सरकार ने सभी पैरामीटर पर खतरे उतरने के बाद ही इस्तेमाल की मंजूरी दी है,ऐसे में सरकार कोई भी रहे वह कभी लोगों की जान से खिलवाड़ करने की परमीशन नहीं देगी। इसलिए ऐसे में दूसरों की बातों पर भरोसा कर केवल हम भ्रम के शिकार बन रहे है। अभी कोवीशील्ड को लेकर चारों तरफ ऐसा माहौल बन गया है कि लोग मुझे लगातार वाट्सअप मैसेज और फोन कर पूछ रहे है कि मैंने कोवीशील्ड वैक्सीन लगवाई है क्या मेरी जान खतरे में पड़ सकती है।
वैक्सीन के खतरे से ज्यादा फायदा- 'वेबदुनिया' से बातचीत में डॉक्टर रमन गंगाखेडकर कहते हैं कि हमें यह समझना चाहिए कि हमें कोविशील्ड और कोवैक्सीन जो मिल रही है उसको हमको जल्द से जल्द लगवाना है। वैक्सीन लगने वाले हर व्यक्ति को यह भी याद रखना होगा कि वैक्सीन मुझे मौत से बचाएगी इंफेक्शन से नहीं। वह कहते हैं कि वैक्सीनेशन के बाद भी इंफेक्शन के चांस है। अगर 100 लोगों को वैक्सीन लग चुकी है तो उसमें 80 से 90 फीसदी लोगों को सीवियर इंफेक्शन नहीं होगा और मौत नहीं होगी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इन 80 लोगों को इंफेक्शन नहीं होगा, इंफेक्शन के चांस रहेंगे लेकिन बहुत माइल्ड है।
यूरोप में भी एस्ट्राजेनेका को क्लीन चिट- उधर यूरोपीय संघ की औषधि नियामक संस्था यूरोपियन मेडिकल एजेंसी ने गुरुवार को एस्ट्राजेनेका के कोरोना वैक्सीन को क्लीन चिट देते हुए कहा कि इस टीके से खून के थक्के जमने का खतरा नहीं है और इसके इस्तेमाल के फायदे खतरे से ज्यादा हैं। एजेंसी के प्रमुख एमर कुक ने कहा, 'हमारी वैज्ञानिक राय यह है कि यह टीका लोगों को कोविड-19 से बचाने में सुरक्षित और प्रभावी है।'