वैश्विक महामारी Corona से उपजे Lockdown का एक स्याह पक्ष ऐसा भी है, जो धीरे-धीरे सामने आ रहा है। समाज का एक वर्ग ऐसा भी है जिसे अब कोरोना से ज्यादा डर भूख का सता रहा है। दरअसल, रोज कमाकर खाने वाले इस वर्ग को जब काम ही नहीं मिल रहा है तो मजदूरी की उम्मीद भी बेमानी है। जब मजदूरी ही नहीं मिलेगी तो घर में चूल्हा जलने का सामान भी कहां से आएगा।
दरअसल, यह कहानी मध्यप्रदेश के एक ऐसे ही मजदूर परिवार की है जो उम्मीदों का पहाड़ सिर पर उठाए रोजी-रोटी की तलाश में जिला मुख्यालय छतरपुर पहुंचा था। मगर नियति का क्रूर मजाक देखिए कि तनसु अहिरवार और उसकी पत्नी संगीता लॉकडाउन में मजदूरी से भी हाथ धो बैठे।
हालात इतने बदतर हुए कि अपने कलेजे के टुकड़ों को बासी-सूखी रोटी नमक के पानी में भिगोकर खिलाने की नौबत आ गई। यह परिवार एक निर्माणाधीन साइट पर मजदूरी कर अपना जीवन यापन करता है, लेकिन लॉकडाउन के बाद से यहां काम बंद हो गया है।
लॉकडाउन के चलते पिछले एक माह से मजदूरी नहीं मिल रही है। बचा-खुचा राशन था वह हफ्ते भर में खत्म हो गया। कुछ समय तक आसपास के लोगों ने सहयोग किया मगर एक समय वह भी आया जब उन्होंने भी हाथ ऊपर कर दिए। धीरे-धीरे हालात बुरी वक्त के लिए बचाई गई सूखी रोटियों को नमक के पानी से खाने तक पहुंच गए।
तीन मासूम बच्चों की मां संगीता अहिरवार ने बताया कि लॉकडाउन के बाद न तो काम मिला और न ही अब खाने को कुछ बचा है। कुछ बची हुई सूखी रोटियों और नमक से ही बच्चों का पेट भर रहे हैं।
इन्होंने की मदद : जब इस मामले की मामले की जानकारी स्थानीय समाजसेवी सुंदर रैकवार को लगी तो उन्होंने अपने घर से खाना बनवाकर इनके पास तक पहुंचाया। फिर रैकवार ने शहर के युवा समाजसेवी सुऐब खान से संपर्क किया। खान ने मदद का हाथ बढ़ाते हुए महीने भर का राशन- आटा, दाल, चावल, तेल, मसाले, नमक, शक्कर, चाय, बिस्किट, नमकीन आदि इस मजदूर परिवार के घर पहुंचाया।
इस संबंध में जब भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष और नगरपालिका अध्यक्ष पति पुष्पेंद्र प्रताप सिंह से बात की तो उन्होंने इसे दुखद बताते हुए तत्काल हरसंभव मदद की बात कही और अपने लोगों से उसे राशन भी भिजवाया साथ ही शासन-प्रशासन से जरूरी मदद दिलाने का भरोसा भी दिलवाया।
तनसु और संगीता अहिरवार मात्र उदाहरण हैं। ऐसे ही कई और परिवार भी हो सकते हैं जो इस माहौल में दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं। सबसे अहम बात तो यह है कि इस परिवार के पास गरीबी रेखा का राशनकार्ड भी नहीं है ताकि उसे सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सके।