Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

Merry Christmas 2019: आपने नहीं पढ़ी होगी क्रिसमस की यह रोचक दास्तां

हमें फॉलो करें Merry Christmas 2019: आपने नहीं पढ़ी होगी क्रिसमस की यह रोचक दास्तां
-फ़िरदौस ख़ान
 
क्रिसमस की दास्तां बहुत ही रोचक है। दुनियाभर में मनाए जाने वाला क्रिसमस ईसाइयों के सबसे ख़ास त्योहारों में से एक है। इसे ईसा मसीह के जन्म की ख़ुशी में मनाया जाता है। क्रिसमस को बड़े दिन के रूप में भी मनाया जाता है। क्रिसमस से 12 दिन का उत्सव 'क्रिसमस टाइड' शुरू होता है।
 
 
'क्रिसमस' शब्द 'क्राइस्ट्स और मास' दो शब्दों से मिलकर बना है, जो मध्यकाल के अंग्रेज़ी शब्द 'क्रिस्टेमसे' और पुराने अंग्रेज़ी शब्द 'क्रिस्टेसमैसे' से नक़ल किया गया है। 1038 ईस्वी से इसे 'क्रिसमस' कहा जाने लगा। इसमें 'क्रिस' का अर्थ ईसा मसीह और 'मस' का अर्थ ईसाइयों का प्रार्थनामय समूह या 'मास' है। 16वीं सदी के मध्य से 'क्राइस्ट' शब्द को रोमन अक्षर एक्स से दर्शाने की प्रथा चल पड़ी इसलिए अब 'क्रिसमस' को 'एक्समस' भी कहा जाता है।
 
 
भारत सहित दुनिया के ज़्यादातर देशों में क्रिसमस 25 दिसंबर को मनाया जाता है, क्योंकि इन हिस्सों में 1582 में पोप ग्रेगोरी द्वारा बनाए गए कैलेंडर का इस्तेमाल होता है। इसके हिसाब से 25 दिसंबर को ही क्रिसमस आता है, लेकिन रूस, मिस्र, आर्मेनिया, इथोपिया, गॉर्गिया, यूक्रेन, जॉर्जिया, सर्बिया और कजाकिस्तान आदि देशों में लोग 7 जनवरी को क्रिसमस मनाते हैं, क्योंकि पारंपरिक जूलियन कैलेंडर का 25 दिसंबर यानी क्रिसमस का दिन ग्रैगोरियन कैलेंडर और रोमन कैलेंडर के मुताबिक 7 जनवरी को आता है।
 
 
क़ाबिले-ग़ौर है कि इटली में 6 जनवरी को क्रिसमस मनाया जाता है। यहां 'द फ़ीस्ट ऑफ़ एपिफ़ेनी' नाम से इसे मनाया जाता है। माना जाता है कि यीशू के पैदा होने के 12वें दिन 3 आलिम उन्हें तोहफ़े और दुआएं देने आए थे। हालांकि पवित्र बाइबल में कहीं भी इसका ज़िक्र नहीं है कि क्रिसमस मनाने की परंपरा आख़िर कैसे, कब और कहां शुरू हुई? एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशू का जन्म 7 से 2 ईसा पूर्व के बीच हुआ था। 25 दिसंबर यीशू मसीह के जन्म की कोई ज्ञात वास्तविक जन्म तिथि नहीं है।
 
 
शोधकर्ताओं का कहना है कि ईसा मसीह के जन्म की सही तारीख़ के बारे में पता लगाना काफ़ी मुश्किल है। सबसे पहले रोम के बिशप लिबेरियुस ने ईसाई सदस्यों के साथ मिलकर 354 ईस्वी में 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया था। उसके बाद 432 ईस्वी में मिस्र में पुराने जूलियन कैलेंडर के मुताबिक़ 6 जनवरी को क्रिसमस मनाया गया था। उसके बाद धीरे-धीरे पूरी दुनिया में जहां भी ईसाइयों की तादाद ज़्यादा थी, यह त्योहार मनाया जाने लगा। 6ठी सदी के आख़िर तक इंग्लैंड में यह एक परंपरा का रूप ले चुका था।
 
 
ग़ौरतलब है कि ईसा मसीह के जन्म के बारे में व्यापक स्वीकार्य ईसाई पौराणिक कथा के मुताबिक़ प्रभु ने मैरी नामक एक कुंआरी लड़की के पास गैब्रियल नामक देवदूत भेजा। गैब्रियल ने मैरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्म देगी और बच्चे का नाम 'जीसस' रखा जाएगा। वह बड़ा होकर राजा बनेगा और उसके राज्य की कोई सीमा नहीं होगी। देवदूत गैब्रियल, जोसफ़ के पास भी गया और उसे बताया कि मैरी एक बच्चे को जन्म देगी और उसे सलाह दी कि वह मैरी की देखभाल करे और उसका परित्याग न करे।
 
 
जिस रात को जीसस का जन्म हुआ, उस वक़्त लागू नियमों के मुताबिक़ अपने नाम पंजीकृत कराने के लिए मैरी और जोसफ़ बेथलेहेम जाने के लिए रास्ते में थे। उन्होंने एक अस्तबल में शरण ली, जहां मैरी ने आधी रात को जीसस को जन्म दिया और उसे एक नांद में लिटा दिया। इस प्रकार जीसस का जन्म हुआ। क्रिसमस समारोह आधी रात के बाद शुरू होता है। इसके बाद मनोरंजन किया जाता है। ख़ूबसूरत रंगीन लिबास पहने बच्चे ड्रम्स, झांझ-मंजीरों के ऑर्केस्ट्रा के साथ हाथ में चमकीली छड़ियां लिए हुए सामूहिक नृत्य करते हैं।
 
 
क्रिसमस का एक और दिलचस्प पहलू यह है कि ईसा मसीह के जन्म की कहानी का सांताक्लॉज़ की कहानी के साथ कोई रिश्ता नहीं है। वैसे तो सांताक्लॉज़ को याद करने का चलन चौथी सदी से शुरू हुआ था और वे संत निकोलस थे, जो तुर्किस्तान के मीरा नामक शहर के बिशप थे। उन्हें बच्चों से बहुत प्यार था और वे ग़रीब, अनाथ और बेसहारा बच्चों को तोहफ़े दिया करते थे।
 
 
पुरानी कैथोलिक परंपरा के मुताबिक़ क्रिसमस की रात को ईसाई बच्चे अपनी तमन्नाओं और ज़रूरतों को एक पत्र में लिखकर सोने से पूर्व अपने घर की खिड़कियों में रख देते थे। यह पत्र बालक ईसा मसीह के नाम लिखा जाता था। यह मान्यता थी कि फ़रिश्ते उनके पत्रों को बालक ईसा मसीह तक पहुंचा देंगे।

 
क्रिसमस ट्री की कहानी भी बहुत ही रोचक है। किंवदंती है कि सर्दियों के महीने में एक लड़का जंगल में अकेला भटक रहा था। वह सर्दी से ठिठुर रहा था। वह ठंड से बचने के लिए आसरा तलाशने लगा। तभी उसकी नजर एक झोपड़ी पर पड़ी। वह झोपड़ी के पास गया और उसने दरवाजा खटखटाया। कुछ देर बाद एक लकड़हारे ने दरवाज़ा खोला। लड़के ने उस लकड़हारे से झोपड़ी के भीतर आने का अनुरोध किया। जब लकड़हारे ने ठंड में कांपते उस लड़के को देखा, तो उसे उस लड़के पर तरस आ गया और उसने उसे अपनी झोपड़ी में बुला लिया और उसे गर्म कपड़े भी दिए। उसके पास जो रूखा-सूखा था, उसने लड़के को भी खिलाया।
 
 
इस अतिथि सत्कार से लड़का बहुत ख़ुश हुआ। हक़ीक़त में वह लड़का एक फ़रिश्ता था और लकड़हारे का इम्तिहान लेने आया था। उसने लकड़हारे के घर के पास खड़े फ़र के पेड़ से एक तिनका निकाला और लकड़हारे को देकर कहा कि इसे ज़मीन में बो दो। लकड़हारे ने ठीक वैसा ही किया, जैसा लड़के ने बताया था। लकड़हारा और उसकी पत्नी इस पौधे की देखभाल करने लगे। 1 साल बाद क्रिसमस के दिन उस पेड़ में फल लग गए। फलों को देखकर लकड़हारा और उसकी पत्नी हैरान रह गए, क्योंकि ये फल, साधारण फल नहीं थे बल्कि सोने और चांदी के थे।
 
 
कहा जाता है कि इस पेड़ की याद में आज भी क्रिसमस ट्री सजाया जाता है। मगर मॉडर्न क्रिसमस ट्री की शुरुआत जर्मनी में हुई। उस वक़्त एडम और ईव के नाटक में स्टेज पर फ़र के पेड़ लगाए जाते थे। इस पर सेब लटके होते थे और स्टेज पर एक पिरामिड भी रखा जाता था। इस पिरामिड को हरे पत्तों और रंग-बिरंगी मोमबत्तियों से सजाया जाता था। पेड़ के ऊपर एक चमकता तारा लगाया जाता था। 
 
बाद में 16वीं सदी में फ़र का पेड़ और पिरामिड एक हो गए और इसका नाम हो गया 'क्रिसमस ट्री'। 18वीं सदी तक क्रिसमस ट्री बेहद लोकप्रिय हो चुका था। जर्मनी के राजकुमार अल्बर्ट की पत्नी महारानी विक्टोरिया के देश इंग्लैंड में भी धीरे-धीरे यह लोकप्रिय होने लगा। इंग्लैंड के लोगों ने क्रिसमस ट्री को रिबन से सजाकर और आकर्षक बना दिया। 19वीं सदी तक क्रिसमस ट्री उत्तरी अमेरिका तक जा पहुंचा और वहां से यह पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गया।
 
 
क्रिसमस के मौक़े पर अन्य त्योहारों की तरह अपने घर में तैयार की हुईं मिठाइयां और व्यंजनों को आपस में बांटने और क्रिसमस के नाम से तोहफ़े देने की परंपरा भी काफ़ी पुरानी है। इसके अलावा बालक ईसा मसीह के जन्म की कहानी के आधार पर बेथलेहम शहर के एक गौशाला की चरनी में लेटे बालक ईसा मसीह और गाय-बैलों की मूर्तियों के साथ पहाड़ों के ऊपर फ़रिश्तों और चमकते तारों को सजाकर झांकियां बनाई जाती हैं, जो तक़रीबन 2,000 साल पुरानी ईसा मसीह के जन्म की याद दिलाती हैं।

 
दिसंबर का महीना शुरू होते ही दुनियाभर में क्रिसमस की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। गिरजाघरों को सजाया जाता है। भारत में अन्य मज़हबों के लोग भी क्रिसमस के जश्न में शामिल होते हैं। क्रिसमस के दौरान प्रभु की प्रशंसा में लोग कैरॉल गाते हैं। वे प्रेम और भाईचारे का संदेश देते हुए घर-घर जाते हैं।

 
भारत में ख़ासकर गोवा में कुछ लोकप्रिय चर्च हैं, जहां क्रिसमस बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। इनमें से ज़्यादातर चर्च ब्रि‍टिश और पुर्तगाली शासन के दौरान बनाए गए थे। इनके अलावा देश के कुछ बड़े चर्चों में सेंट जोसफ़ कैथेड्रिल, आंध्रप्रदेश का मेढक चर्च, सेंट कै‍थेड्रल, चर्च ऑफ़ सेंट फ्रांसिस ऑफ़ आसीसि और गोवा का बैसिलिका व बोर्न जीसस, सेंट जोन्स चर्च इन विल्डरनेस और हिमाचल में क्राइस्ट चर्च, सांताक्लॉज बैसिलिका चर्च और केरल का सेंट फ्रांसिस चर्च, होली क्राइस्ट चर्च, महाराष्ट्र में माउंटल मैरी चर्च, तमिलनाडु में क्राइस्ट द किंग चर्च व वेलान्कन्नी चर्च और ऑल सेंट्स चर्च और उत्तरप्रदेश का कानपुर मेमोरियल चर्च शामिल हैं।
 
 
यह हमारे देश की सदियों पुरानी परंपरा रही है कि यहां सभी त्योहारों को मिल-जुलकर मनाया जाता है। हर त्योहार का अपना ही उत्साह होता है- बिलकुल ईद और दिवाली की तरह। क्रिसमस पर देशभर के सभी छोटे-बड़े चर्चों में रौनक़ रहती है।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Egg Cake : क्रिसमस पर बनाएं डिलीशियस एग्ज केक, इस आसान विधि से