कांग्रेस के समय से जारी, पंडित दीनदयाल अंत्योदय योजना केंद्र सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है। जाहिर सी बात है कि सरकार की बहुत सी आकांक्षाएं इस योजना से जुड़ी है, फिर चाहे वह जनता के हित की आकांक्षा हो या फिर पार्टी के हित की।
वैसे योजना कोई भी हो, जनता और सरकार के हित को समानांतर लेकर चलती है। अगर योजना से जनता का हित होगा, तो चुनाव में सरकार का हित होगा वरना योजना ठंडे बस्ते में तो सरकार ठंडे बस्ते में।
लगता है भारतीय जनता पार्टी इस गणित को बेहतर तरीके से जानती और समझती है। तभी तो वह जनता में योजनाओं के प्रति जागरुकता पैदा कर, अपनी चुनावी योजना को भुनाने में लगी हुई है। चाहे असंगठित श्रमिक सम्मेलन के जरिए शिवराज सरकार द्वारा चप्पल, साड़ी, पानी की कुप्पी और चेक का वितरण हो या फिर रमन सरकार का मोबाइल बांटना।
हाल ही में रमन सकार अंत्योदय योजना के अंतर्गत कुकर का वितरण कर रही है। अब इस हिसाब से अंत्योदय योजना किसका अंत और किसका उदय है, ये समझना जरा मुश्किल है। या तो सरकार जनता को समझाने में लगी है कि अंत ही उदय है, या फिर खुद यह समझ चुकी है कि चुनावी साल में पार्टी ने अपने कार्यकाल के अंत में जो कुछ कर दिया वही उदय का कारण बन सकता है।
अब देखिए ना, पिछड़े आदिवासी क्षेत्र जो पार्टी के लिए सबसे बड़ा वोटबैंक है, को सबसे पहले इस योजना का लाभ दिया जा रहा है। क्योंकि खुद पर भरोसा होते हुए भी सरकार अच्छी तरह से समझती और मानती है कि इनका उदय नहीं किया तो पार्टी का अंत जरूर हो सकता है।
शायद यही कारण है कि अम्मा यानि जयललिता की तर्ज पर अब बाकी सरकारें भी घरेलू सामान का वितरण कर वोट बैंक जुटाने का प्रयास कर रही हैं, जिसमें छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ताजा उदाहरण है। बहरहाल ये चुनावी साल है, आगे आगे देखिए होता है क्या...