Chhath Pooja : छठ पूजा का पर्व भारतीय समाज में विशेष महत्त्व रखता है। कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व विशेष रूप से सूर्य देवता और छठी मैया की उपासना के लिए समर्पित है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सबसे पहले सीता मैया ने छठ पूजा का अनुष्ठान किया था। इस लेख में जानेंगे कैसे माता सीता से इस परंपरा की शुरुआत हुई और इस महापर्व का पौराणिक महत्व क्या है।
छठ पूजा का महत्व | Importance of Chhath Puja
छठ पूजा एक मात्र ऐसा पर्व है जिसमें सूर्य देवता की उपासना की जाती है। सूर्य देव जीवनदायिनी ऊर्जा के स्रोत हैं और हिंदू धर्म में इन्हें विशेष रूप से सम्मानित किया गया है। इस पर्व में व्रती (व्रत करने वाले) सूर्य भगवान को उगते और अस्त होते समय अर्घ्य अर्पित करते हैं, जो जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाता है। छठ पूजा मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में मनाई जाती है, लेकिन इसका महत्व पूरे भारत में फैला हुआ है।
माता सीता ने की थी पहली छठ पूजा | Chhath Puja Initiated by Goddess Sita
छठ पूजा के पौराणिक इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका माता सीता की मानी जाती है। रामायण के अनुसार, जब भगवान श्रीराम और माता सीता वनवास से अयोध्या लौटे, तब उन्होंने भगवान सूर्य की आराधना करने का निर्णय लिया। सीता जी ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन पवित्र सरयू नदी के तट पर बैठकर छठ व्रत का संकल्प लिया और सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया। इस अनुष्ठान से प्रसन्न होकर सूर्य देवता ने उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया और उनकी समृद्धि के लिए आशीर्वाद दिया। ऐसी मान्यता है कि यहीं से छठ पूजा की शुरुआत हुई।
छठ पूजा का अनुष्ठान | Rituals of Chhath Puja
छठ पूजा के अनुष्ठान चार दिनों तक चलते हैं और इसमें विशेष परंपराओं का पालन किया जाता है:
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नहाय-खाय: इस दिन व्रती पवित्र नदी में स्नान कर सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं।
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खरना: दूसरे दिन व्रती रात में उपवास रखकर गुड़ की खीर बनाते हैं और इसे भगवान को अर्पित करते हैं।
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संध्या अर्घ्य: तीसरे दिन अस्त होते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है।
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प्रातः अर्घ्य: चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन होता है।
छठ पूजा का पौराणिक महत्व | Mythological Importance of Chhath Puja
छठ पूजा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व अपार है। इसे "सूर्य षष्ठी व्रत" भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है। सूर्य देवता की उपासना से स्वास्थ्य लाभ भी होता है और व्रत रखने वालों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह पर्व न सिर्फ भगवान सूर्य की आराधना के लिए है बल्कि पृथ्वी और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का भी अवसर है।
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