छठ लोकपर्व के विभिन्न अवसरों पर छठ पूजा में व्रत से जुड़े हर कार्य के लिए अलग-अलग गीतों को गाए जाने का प्रचलन है। व्रत करने वाली महिलाओं के अनुसार हर कार्य से जुड़े गीत का अपना महत्व है। गेहूं धोने से लेकर व्रत के दौरान दउरा उठाने और अर्घ्य देने तक में इन गीतों से सूर्य देवता और छठ माता से गुहार लगाई जाती है। कोई पुत्र की कामना करता है तो कोई मांग के सिंदूर की।
छठ गीत को सुनकर पता चलता है कि व्रती मायके से ससुराल तक की सुख-शांति के लिए छठ माता से प्रार्थना करती है...सभवा में बइठन के बेटा मांगिला, गोड़वा दबन के पतोह ए दीनानाथ, रूनकी झुनकी बेटी मांगिला पढ़ल पंडितवा दामाद ए दीनानाथ...ससुरा में मांगिला अनधन सोनवा नईहर में सहोदर जेठ भाई...।
घटवा के आरी-आरी रोपब केरवा...
शुरुआत होती है छठ घाट की सफाई से। घाट की घास को काटना, मकड़ी का जाला हटाना और वहां फूल-पौधे लगाने के दौरान ये गीत गाती हैं- घटवा के आरी- आरी रोपब केरवा, बोअब नेबूआ... कोपी-कोपी बोलेले सूरुज देव सुनअ सेवक लोग, मोरे घाटे दुबिया उपज गईले मकरी बसेरा लेले, वितनी से बोलेले सेवक लोग सुनअ ऐ सुरुज देव, रउआ घाटे दुबिया छटाई देहब मकड़ी भगाई देहब..।
ले ले अईह हो भईया केरा के घवदिया
उसके बाद होती है फल और अन्य सामग्री की खरीदारी। इसके लिए व्रती अपने भाई से ये गीत गाकर गुहार लगाती हैं, मोरा भईया जायेला महंगा मुंगेर लेले अईह हो भईया गेहूं के मोटरिया, अबकी के गेहूआं महंग भईले बहिनी, छोड़ी देहू ये बहिनी छठी के बरतिया, नाही छोड़ब हो भईया छठीया बरतिया लेले अईह हो भईया केरा के घवदिया। पटना के हाट पर नरियल, नरियल कीनबे जरूर, हाजीपुर केरवा बेसहबे, अरघ देबे जरूर...।
मरबो रे सुगवा धनुख से
व्रत के दिन अर्घ्य से पहले दउरा सजाने के समय व्रती गाती हैं - केरवा जे फरेला घवद से ओहपर सूग्गा मेडराय, मरबो रे सुगवा धनुख से सुगा गिरे मुरछाई...कांच ही बांस के बहंगियां, बहंगी लचकत जाए, होई न बलमजी कहरिया बहंगी घाटे पहुंचाई... चार ही चक्का के मोटरवा, मोटरवा बईठी ससुर जी, पेनी हाली-हाली धोतिआ पियरिया अरघ की बेर भईल...।
चार पहर हम जल-थल सेईला...
व्रत के दिन अर्घ्य देते समय सूर्य देव को प्रसन्न करने के लिए घाट पर बैठी महिलाएं कई गीत गाती हैं। इनमें -सोने के खड़उआं ये दीनानाथ तिकल लिलाल, हाथ सटकुनिया ये दीनानाथ दुअरिया लेले ठाढ़, सबके डलियवा ये दीनानाथ लिहल मंगाय, बाझिन डलियवा ये दीनानाथ पड़ले तवाय...जोड़े-जोड़े सुपवा तोहे चढ़इबो हो, मईया खोल ना हे केवडि़या हे दर्शनवा देहू न...डोमिन बेटी सूप लेले ठाढ़ बा, उग हो सुरुज देव अरघ के बेर, भोरवे में नदिआ नहाइला अदित मनाईला, बाबा फूलवा अछतवा चढ़ाइला सबगुन गाईला हो, बाबा अंगने में मांगिला अंजोर ई मथवा नवाईला हो...गोड़ खड़उआ ये अदितमल सोहे तिलक लिलार, हथवा में सोहे सब रंग बाती तोहे अरघ दिआय...सात ही घोड़वा सुरुज देव दस असवार, बरती दुअरिया छठिअ मईया करीले पुकार...प्रमुख हैं।
सुहाग, संतान की कामना-
सुहागिन व्रत के दौरान ये गीत गाकर संतान और सुहाग की कामना करती है- हम तोहसे पुछिले बरतिया करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी, हमरो जे बेटवा कवन अइसन बेटवा जे उनके लागी, करीले छठ बरतिया से उनके लागी, अमरूदिया के पात पर उगेले सुरुज देव झांके-झुके, ये करेलू छठ बरतिया से झांके-झुके...।
इस तरह छठ के गीत गा कर व्रती मायके से ससुराल तक और संतान की कामना से सभी के सुख-शांति के लिए छठ माता से प्रार्थना की जाती है।