विज्ञान पर धार्मिक मान्यताएँ भारी

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नई दिल्ल ी। चंद्रमा की वैज्ञानिक पड़ताल के लिए भारतीय चंद्रयान के जाने को लेकर दुनियाभर के वैज्ञानिकों की उत्सुकता के बावजूद पृथ्वी के इस एकमात्र उपग्रह के बारे में देश में धार्मिक मान्यताओं के बदलने के आसार नहीं है।

प्रख्यात ज्योतिषी के एन. राव ने कहा कि भारतीय चंद्र अभियान के निष्कर्षों का धर्म और ज्योतिष पर पड़ने वाले कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम डॉ. मुफ्ती मोहम्मद मुकर्रम अहमद ने भी इस बारे में कहा कि वैज्ञानिक खोज का कोई असर मजहबी मान्यता पर नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा हमें इसका कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हम तो विज्ञान को नहीं मानते। हम पैगम्बर को मानते हैं। हम शरीयत की नकल पर चलते हैं और इसमें अकल को नहीं मानते।

अपनी बात पर बल देने के लिए उन्होंने कहा कि अकल तो धोखा खा सकती है। उन्होंने कहा कि विज्ञान के साथ उनका कोई टकराव नहीं है, लेकिन यदि कभी टकराव होता है तो हम कुरान को मानेंगे।

ज्योतिर्विद समीर उपाध्याय ने भी इससे सहमति जताते हुए कहा कि भारतीय ज्योतिष में गणना का आधार ही चंद्रमा है अत: ऐसे किसी वैज्ञानिक परीक्षणों का कोई प्रभाव हमारे ज्योतिष पर नहीं पड़ने जा रहा है।

चंद्रमा पर मनुष्य ने हालाँकि जुलाई 1969 में कदम रखा, लेकिन इसकी पूजा प्राचीन काल से होती रही है और मिस बेबीलोन भारत चीन और दुनिया के विभिन्न हिस्सों विशेष तौर पर कुछ अफ्रीकी और अमेरिकी समूहों में यह विशेष रूप से उल्लेखनीय स्थान रखता है।

हिन्दू सहित कुछ समाजों में भोजन को कुछ खास दिनों में चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है ताकि वह उसकी किरणों को सोख सके। इस बारे में उपाध्याय ने कहा शरद पूर्णिमा को चंद्रमा धरती के सबसे करीब होता है कि उस दिन दूध की बनी चीजों और कुछ औषधि को आवेशित करने का दिन होता है। उन्होंने कहा कि चंद्रमा की किरणों से आवेशित यह भोजन और औषधियाँ मनुष्य के मनोभाव में विशिष्ट परिवर्तन लाती हैं।

चंद्रमा के साथ कई कहानियाँ और अंधविश्वास भी जुड़े हैं। मनोविकारों या पागलपन को चंद्रमा से जोड़कर भी देखा जाता है और अंग्रेजी का शब्द ल्युनेटिक शायद इसी की उपज है। मध्य अफ्रीका में परंपरा है कि माँ अपने नवजात बच्चे को पहली पूर्णमासी की रात चंद्रमा की रोशनी से नहलाती है।

राव ने कहा कि भारतीय परंपरा में चंद्रमा वाहन, मन, कला, संन्यास और विज्ञान का स्वामी है। उन्होंने बताया कि भगवान कृष्ण का जन्म कृष्णपक्ष में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था और यह भी चंद्रमा से जुड़ा है। मान्यताओं के अनुसार 27 नक्षत्र चंद्रमा की पत्नियाँ हैं, जिनमें रोहिणी उनकी सबसे पसंदीदा है।

इमाम मुकर्रम अहमद ने कहा कि इस्लाम भी चंद्रमा कैलेंडर पर आधारित है और सभी त्योहार चाहे वह रोजा हो या शबे-बारात चाँद के दिखने से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि कुरान में चाँद देखने और दुआ करने का उल्लेख है।

उपाध्याय ने बताया कि हिन्दू धर्म में पंचांग का आधार ही चंद्रमा हैं, जिसे निरयण पद्धति कहा जाता है। भारतीय ज्योतिष में इसे सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। बारह महीनों का नाम भी चंद्र पर आधारित है।

इतिहास के जानकारों का कहना है कि चंद्रमा का उस समय ज्यादा महत्व प्राप्त था, जब मनुष्य शिकार से अपना जीवन यापन करता था लेकिन कृषि के विकास के साथ सूर्य ने ज्यादा महत्व हासिल कर लिया। ईसाई धर्म हालाँकि चंद्रमा को महत्व नहीं देता, लेकिन इसका ईस्टर संडे पहली पूर्णमासी के बाद पहले रविवार को मनाया जाता है।

चीन में नववर्ष चंद्रमा पर आधारित है जबकि यहूदी पासोवर हमेशा पूर्णमासी को मनाया जाता है। फेंग शुई में भी चंद्रमा का महत्व है, जिसमें अमावस्या के चंद्रमा को कुन और पूर्णमासी के चंद्रमा को कियान कहा जाता है।

उपाध्याय ने कहा कि चंद्रमा पर धरती से मिलती जुलती चीजे हैं। उन्होंने वराहमिहिर के सूर्य सिद्धांत के हवाले से बताया कि चंद्रमा पृथ्वी से ही अलग हुआ हिस्सा है और शायद यही करण है कि उसे पृथ्वी का भाई मानकर बच्चों को मामा से पहले चंदामामा कहना सिखाया जाता है।

उन्होंने कहा कि वेदों में कहा गया है चंद्रमा मनसो जात: यानी यह मन का प्रतीक है। भारतीय ज्योतिष में मनोभाव, संवेदनशीलता, सुख, मानसिक विकारों का कारक माना गया है। चंद्रमा को हृदय, मस्तिष्क, अंडकोश और महिलाओं में गर्भाशय, नेत्र और कफ से जुड़े रोग का कारक माना जाता है।

अंकशास्त्र में चंद्रमा दो का प्रतिनिधित्व करता है यानी जिन लोगों का जन्म दिन 2, 12, 20 आदि ऐसे अंकों की तारीख पर हो जिसमें दो हो, वे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भावनात्मक होते हैं। (भाषा)

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