चाँद पर 'वाटर हार्वेस्टिंग' की जरूरत

Webdunia
शनिवार, 26 सितम्बर 2009 (17:12 IST)
- संदीप तिवारी
चाँद पर पानी पाए जाने की संभावनाओं ने न केवल चाँद पर जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के अभियानों के व्यावहारिक होने का रास्ता दिखाया है, वरन यहाँ से अंतरिक्ष यात्री मंगल ग्रह की यात्रा तक जा सकेंगे। यहाँ अगर पानी की हार्वेस्टिंग संभव हुई तो अंतरिक्ष यात्रियों के लिए बहुत कुछ सरल बनाया जा सकता है। नासा इस दिशा में एक माइक्रोवेव उपकरण भी बना रहा है जिसके जर ि ए पानी एकत्र किया जा सके।

पर इसके लिए जरूरी होगा कि हाइड्रोक्स‍िल (जो कि हाइड्रोजन के एक परमाणु और ऑक्सीजन के एक परमाणु से मिलकर बनता है जबकि पानी के लिए हाइड्रोजन के दो परमाणुओं और ऑक्सीजन के एक परमाणु की जरूरत होती है) निरंतर चाँद के वातावरण में उपलब्ध रहें, तभी इन्हें सौर वायु के प्रोटोन्स (हाइड्रोजन आइन्स) के साथ ऑक्सीजन के परमाणु से मिलाया जा सकता है।

यह माना जाता है कि इस तरह से बनने वाले रासायनिक पानी के कण चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले क्रेटर्स में स्थायी रूप से जमा हो जाते हैं। यह स्थान प्लूटो से भी ज्यादा ठंडे माने जाते हैं। क्रेटर्स में जमा हो जाने वाले पानी के कण आसानी से बाहर नहीं आते हैं।

फिलहाल तो चाँद पर बहुत अधिक पानी पाए जाने की संभावना नहीं है और वैज्ञानिकों का कहना है कि चंद्रमा की सतह पर बेसबॉल के बराबर वाले मैदान की मिट्‍टी से एक गिलास भर पानी ही मिल सकता है। पर इसे एकत्र किया जा सका तो यह अंतरिक्ष यात्रियों के पीने के काम आ सकता है। इसे हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के रूप में बाँटकर वापसी की रॉकेट यात्राओं में ईंधन के काम में भी लाया जा सकता है।

ऐसा हो जाने पर उनके लांच की लागत भी कम हो सकती है क्योंकि पृथ्वी से चाँद तक जाने और लौटने के लिए कम ईंधन की जरूरत होगी। और अगर चंद्रमा पर रॉकेट ईंधन का भंडार बन जाता है तो यहाँ से अंतरिक्ष यात्री मंगल ग्रह तक आ-जा सकेंगे। चाँद से मंगल तक जाने के लिए ईंधन की भी कम जरूरत होगी और पृथ्‍वी से मंगल तक जाने की लागत कम आएगी क्योंकि चाँद के धरातल से मंगल के मिशन पर जाने वाले रॉकेटों को कम ऊर्जा की जरूरत होगी और पृथ्‍वी‍ से यात्रा की तुलना में यह यात्रा ज्यादा सरल होगी।

वास्तव में यह स्थिति अंतरिक्ष को जाने वाले ट्रांसकांटिनेंटल रेलरोड जैसी हो जाएगी जैसी यह अभी तक हमारी पृथ्‍वी पर है। टेक्सास में ह्यूस्टन के ल्यूनार एंड प्लेनेटरी इंस्टीट्‍यूट के अध्येता पॉल स्पुडिस का कहना है कि इस स्थिति से सुपरफ्लाइट यात्राओं का मुहावरा ही बदल जाएगा।

पर सवाल तो यह है कि चंद्रमा के धरातल पर बर्फ के छोटे-छोटे आकारों में जमा बर्फ से आप बड़ी मात्रा में पानी कैसे बना सकते हैं? इसका उत्तर भी वैज्ञानिकों ने खोज लिया है और इसके लिए उन्होंने माइक्रोवेव्स की तकनीक को प्रयोग करने का फैसला किया है। इसका इस्तेमाल कैसे प्रयोग होगा, यह 2006 में विकसित एक तकनीक के जरिये किया गया था जिसे नासा के मार्शल स्पेस फ्लाइट सेंटर के एडविन इथ्रिज और अलबामा विश्वविद्यालय के विलियम कॉकलर ने अपनाई थी।

इन दोनों ने अपने प्रयोग के तहत साधारण माइक्रोवेव ओवन का इस्तेमाल करते हुए चाँद की सिमुलेटिड सॉइल (कृत्रिम मिट्‍टी) को गर्म किया जिसे पहले चंद्रमा की सतह के तापमान माइनस 150 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा कर दिया गया था। चंद्रमा जैसी स्थितियों का निर्माण करने के तहत निर्वात में रखकर उन्होंने देखा कि जब इस मिट्‍टी को केवल माइनस 50 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है तब माइक्रोवेव्स का वाटर आइस सीधे ठोस से भाप में बदल गया। इसके बाद भाप हायर प्रेशर पोर्स से निकलकर मिट्‍टी के ऊपर के लो प्रेशर निर्वात के एक बड़े क्षेत्र में फैल गई।

चंद्रमा के धरातल पर इस भाप को मिट्‍टी के ऊपर एक ठंडी मैटल प्लेट रखकर इकट्‍ठा किया जा सकता है। ऊपर उठती पानी की भाप धीरे-धीरे ठंडी होकर बूँदों के रूप में जमा हो जाएगी और आप इन बूँदों को समेट सकते हैं।

चाँद की सूखी मिट्‍टी को ऊँचे तापमान पर गर्म करने से ऑक्सीजन और हाइड्रोजन निकलती हैं जिन्हें रॉकेट ईंधन या अन्य उपयोगों के लिए रखा जा सकता है लेकिन स्पुडिस का कहना है कि इसके लिए सीधे चंद्रमा के पानी से निकालने के बजाय करीब 100 गुना अधिक ऊर्जा खपानी होगी।

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