क्योंकि...की 'तुलसी' या बीजेपी की 'स्मृति'
(भीका शर्मा और गायत्री शर्मा)
स्टार प्लस के डेली सोप 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' में तुलसी का किरदार निभाने वाली बहू स्मृति ईरानी अब राजनीति के मैदान में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय सचिव की भूमिका अदा कर रही है। तुलसी के रूप में हर सास की लाडली बहू व हर बहू की हमराज स्मृति ईरानी बीजेपी के लिए जनता के कितने वोट बटोर पाएगी, यह एक अनुत्तरित प्रश्न है। राजनीति व छोटे पर्दे पर भूमिकाएँ निभाने वाली स्मृति ईरानी के जीवन से जुड़े कुछ ऐसे ही प्रश्नों पर हमने की खास मुलाकात स्मृति ईरानी के साथ - प्रश्न : क्या कारण है कि क्योंकि में 'तुलसी' के किरदार ने ही खूब प्रसिद्धि पाई? उत्तर : भाग्य, क्योंकि मेहनत तो सभी करते हैं। बहुत कम है जिनका भाग्य चमकता है। मुझे लगता है कि मैंने मेहनत की और प्रभु ने मुझे अपना आशीर्वाद दिया और इसी के फलस्वरूप तुलसी आप सबकी चहेती बन गई। प्रश्न : क्या कारण है कि राजनीति में आने के बाद भी स्मृति ईरानी तुलसी के किरदार से अब तक बाहर नहीं निकल पाई है? उत्तर : जो किरदार मैंने खुद ही रचा है, उससे अलग मैं कैसे हो सकती हूँ। आज के दौर में किसी भी महिला के लिए राखी सावंत की ग्लैमरस छवि से अलग एक भारतीय बहू की छवि में लगातार 8 सालों तक दर्शकों के दिलों पर राज कर पाना बहुत ही मुश्किल होता है। वो काम मैंने किया है व सफलता का रसास्वादन किया है, जिस किरदार ने मुझे इतनी ऊँचाइयाँ व पहचान दी है भला में उससे अलग कैसे हो सकती हूँ। प्रश्न : तुलसी के 'क्योंकि..' से अचानक चले जाने पर आपके प्रंशसकों की क्या प्रतिक्रियाएँ थी? उत्तर : एक कलाकार होने के नाते मुझे इस बात की खुशी है कि उन्होंने अपना प्रेम एक सीरियल तक ही सीमित नहीं रखा। सीरियल चला तब भी दिया और सीरियल बंद होने के बाद भी दिया। आज भी मैं जहाँ भी जाती हूँ, लोग मुझे सम्मान देते हैं। मेरा आदर करते हैं। |
कोई भी इस बात का सर्मथन नहीं करेगा कि आप बड़ों के साथ दुर्व्यवहार करें। मैं मानती हूँ कि आपका वोट और मीडिया के माध्यम से आपकी उठाई गई आपकी आवाज इन दोनों तरीकों से बेहतर कोई तीसरा तरीका अपना पक्ष प्रस्तुत करने का नहीं हो सकता है। |
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प्रश्न : क्या कारण है कि अधिकांश अभिनेता फिल्मों या सीरियलों में हाथ आजमाने के बाद राजनीति के अखाड़े में उतर आते हैं? उत्तर : ये तो आप उन कलाकारों से पूछिए जिनके लिए राजनीति दूसरा विकल्प है। मैं एक स्वयंसेवक के परिवार में जन्मी और पली-बढ़ी हूँ इसलिए मेरे लिए यह सब कुछ नया या अनोखा नहीं था। प्रश्न : यदि स्मृति ईरानी टीवी कलाकार ना होती तो क्या होती? उत्तर : नि:संदेह मैं एक स्वयंसेवक होती। प्रश्न : निजी जीवन में स्मृति और तुलसी में क्या समानताएँ हैं? उत्तर : जिन संस्कारों की परिभाषा 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' ने लिखी थी उन संस्कारों को हम रोज अपने परिवार में जीते आए थे इसलिए लोगों को मेरे उस किरदार में सहजता अधिक लगी और एक्टिंग कम। अपने परिवार के संस्कारों व परिवेश को देखते व जानते हुए मेरे लिए उस किरदार को निभा पाना उतना मुश्किल नहीं था। 'तुलसी' और 'स्मृति' में फर्क बस इतना था कि उस तुलसी के बाल सफेद थे और मेरे काले हैं। इसी के साथ ही 'क्योंकि..' की 'तुलसी' तो मंदिरा को पचा सकती है लेकिन 'स्मृति' अपने जीवन में ऐसे किसी भी व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं कर सकती।
प्रश्न : आजकल चुनावी सभाओं में चप्पल-जूते उछालना आम बात हो गई है। इसके पीछे क्या कारण हैं, जनता का आक्रोश, दूसरों का अनुसरण या विरोधी पार्टी की साजिश?
उत्तर : इसके पीछे एक ही कारण है और वह यह है कि 'दूसरों की देखादेखी चप्पल उछाल के स्वयं को सुर्खियों में लाना।' जनता द्वारा विरोध करने का केवल यही एक तरीका नहीं है, बल्कि कई तरीके हैं।
कोई भी इस बात का सर्मथन नहीं करेगा कि आप बड़ों के साथ दुर्व्यवहार करें। मैं मानती हूँ कि आपका वोट और मीडिया के माध्यम से आपकी उठाई गई आपकी आवाज इन दोनों तरीकों से बेहतर कोई तीसरा तरीका अपना पक्ष प्रस्तुत करने का नहीं हो सकता है। मुझे तो इन्हीं दो तरीकों पर विश्वास है।
प्रश्न : वेबदुनिया के पाठकों को आप क्या संदेश देना चाहेगी?
उत्तर : आने वाले लोकसभा चुनाव बहुत अहम हैं। आपका एक वोट देश का भविष्य बदल सकता है। जानती हूँ तपती धूप है लेकिन मेरा अनुरोध है कि आप अपने परिवार के साथ घरों से बाहर निकले व मतदान करें।