Maruti 800 story : मारुति 800 (Maruti 800) ने आम आदमी के कार के सपने को पूरा किया है। जानिए मारुति 800 की 40 साल की कहानी। दक्षिण दिल्ली में मारुति सुजुकी इंडिया (MSI) के मुख्यालय के ब्रांड सेंटर में खड़े कई आधुनिक वाहनों के बीच 40 साल पुरानी एक छोटी सफेद कार की मोटर वाहन जगत में अपनी ही चमक है।
यह कोई साधारण कार नहीं बल्कि लोकप्रिय मारुति 800 या एम800 मॉडल की पहली कार है। इसके बाजार में आने के बाद भारत में वाहन उद्योग में क्रांति आ गई।
14 दिसंबर 1983 की वो तारीख : मारुति 800 को 14 दिसंबर, 1983 को जब पेश किया गया भारत तब भी लाइसेंस राज के अधीन था। एम800, 1991 में आर्थिक उदारीकरण का गवाह भी बनी। यह भारत के पुराने से नए दौर में प्रवेश तक के सफर की साक्षी रही।
पद्मिनी और एंबैस्डर का था राज : मारुति 800 (Maruti 800) को आम जन की कार कहा जाता है। इसने हिन्दुस्तान मोटर की एंबैस्डर कार और प्रीमियर पद्मिनी के एकाधिकार को चुनौती देते हुए उस समय भारत के सुस्त पड़े यात्री वाहन बाजार में तहलका मचा दिया था।
लकी ड्रॉ में जीती थी कार : पेश किए जाने के कुछ ही समय में यह लाखों मध्यमवर्गीय भारतीय परिवारों की पहली पसंद बन गई। हरपाल सिंह को 1983 इसकी पहली कार की चाबियां सौंपे जाने के बाद से एम800 के 1986-87 में संचयी रूप से एक लाख कारों का प्रोडक्शन किया। हरपाल सिंह ने 1983 में एक लकी ड्रॉ में इसे जीता था।
उस समय बाज़ार में उपलब्ध अन्य उत्पादों की तुलना में सुजुकी कहीं बेहतर प्रौद्योगिकियों से लैस थी। 1992-93 में इसका संचयी उत्पादन रिकॉर्ड पांच लाख इकाई रहा। इसके बाद 1996-97 तक यह दोगुना होकर 10 लाख इकाई हो गया और 1999 -2000 में 15 लाख इकाई का आंकड़ा पार कर गया।
यह छोटी कार लगातार बाजार में अपनी पकड़ मजबूत करती गई और एम800 का उत्पादन 2002-03 में 20 लाख इकाई और 2005-06 में 25 लाख इकाई के आंकड़े को पार कर गया।
कंपनी ने 18 जनवरी, 2014 से एम800 का उत्पादन पूरी तरह से बंद कर दिया। तब एम800 का संचयी उत्पादन 29.2 लाख इकाई था।
2010 में बड़ा फैसला : इससे पहले एमएसआई ने अप्रैल, 2010 से हैदराबाद, बेंगलुरु, कानपुर और पुणे सहित 13 शहरों में मारुति 800 की बिक्री बंद कर दी थी। घरेलू बाजार में इस मॉडल की कुल 26.8 लाख इकाइयां बिकीं और 2.4 लाख इकाइयों का निर्यात हुआ।
क्या बोले थे चेयरमैन : मारुति सुजुकी इंडिया (एमएसआई) के चेयरमैन आरसी भार्गव ने एक बार कहा था कि जब मौजूदा कार निर्माताओं हिंदुस्तान मोटर्स और प्रीमियर को प्रौद्योगिकी आयात करने की भी अनुमति नहीं थी, एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी की स्थापना इतने कम प्राथमिकता वाले क्षेत्र में की गई और उसे विदेशी हिस्सेदारी लाने को भी कहा गया।
उन्होंने पिछले साल इंटरव्यू में कहा था कि सभी को लगता था कि यह एक राजनीतिक परियोजना थी जो एक तरह से थी भी। दुनियाभर के सभी कार निर्माताओं को भी यही लगता था। जब शुरुआत में सरकार और फिर बाद में मारुति ने सहयोगी व संयुक्त उद्यम भागीदार बनने के लिए कार निर्माताओं से संपर्क किया तो कोई भी 40 प्रतिशत हिस्सेदारी के लिए नकद देने को तैयार नहीं था।
भार्गव ने कहा कि वैश्विक निर्माता केवल इस्तेमाल किए गए उपकरण, डाई और फिक्स्चर की पेशकश कर रहे थे, लेकिन सुजुकी एकमात्र कंपनी थी जो निवेश करने को तैयार हुई। इसके लिए जापान में ओसामु सुजुकी की भी कड़ी आलोचना की गई थी। भले ही अब मारुति 800 उत्पादन अब बंद हो गया है, लेकिन अब भी इसका जिक्र कई लोगों की पुरानी यादों को ताजा कर देता है। इनपुट भाषा