नई दिल्ली। जिस आम बजट को लेकर आम लोगों और नौकरी-पेशा व्यक्तियों से लेकर वित्तीय विश्लेषकों को बड़ी उत्सुकता के साथ प्रतीक्षा रहती है, देश के संविधान में इसका उल्लेख 'बजट' नहीं बल्कि 'वार्षिक वित्तीय वक्तव्य' के रूप में किया गया है।
संविधान की धारा 112 में यह व्यवस्था दी गई है कि सरकार हर साल संसद के समक्ष अपने सालाना आय-व्यय का पूरा लेखाजोखा पेश करेगी, जिसे 'वार्षिक वित्तीय वक्तव्य' कहा जाएगा। इसी वक्तव्य को हम 'आम बजट' के नाम से जानते हैं।
वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामले विभाग में 'बजट डिवीज़न' द्वारा तैयार बजट मैनुअल के अनुसार वर्तमान में केन्द्रीय बजट 14 विभिन्न दस्तावेजों के जरिए पेश किया जाता है, इसमें कुछ तो संविधान के प्रावधान के तहत है, जबकि कुछ दस्तावेज विवरण अथवा स्पष्टीकरण के तौर पर रखे जाते हैं।
यूं तो देश में बजट प्रणाली की शुरुआत 7 अप्रैल, 1860 को हो गई थी। तत्कालीन प्रथम भारतीय वित्त सदस्य जेम्स विल्सन ने बजट भाषण पढ़ा था। आजादी के बाद देश के पहले वित्तमंत्री आरके षणमुगम चेट्टी ने 26 नवंबर, 1947 को पहला बजट पेश किया। देश में पंचवर्षीय व्यापक सामाजिक आर्थिक विकास कार्यक्रमों को सालाना योजना में तब्दील कर बजट के जरिए सुधार शुरू किए गए।
देश में मौजूदा वित्तीय वर्ष का समय एक अपैल से 31 मार्च तक है। इस वित्त वर्ष की शुरुआत देश में 1867 से हो गई थी। इससे पहले भारत में वित्तीय वर्ष एक मई से 30 अपैल तक होता था। यह जानकारी एके झा समिति की वित्तीय वर्ष में बदलाव पर तैयार रिपोर्ट में दी गई। यह समिति 1984 में बनी थी।
समिति ने हालांकि अपनी रिपोर्ट में दक्षिण-पश्चिम मानसून के अर्थव्यवस्था पर होने वाले असर को देखते हुए वित्तीय वर्ष की शुरुआत जनवरी से करने की सिफारिश की थी। पर समिति ने यह भी कहा था कि इसके और भी कई फायदे हैं, इसके बावजूद यदि यह बदलाव स्वीकार्य नहीं हो तो यही बेहतर होगा कि मौजूदा अप्रैल से मार्च के वित्तीय वर्ष को ही जारी रखा जाए।
सरकार ने वित्तीय वर्ष में बदलाव की सिफारिश को स्वीकार नहीं किया। बजट नीतियों में बदलाव, आंकड़ा संग्रह गड़बड़ाने तथा कानूनों में कई तरह के संशोधनों को देखते हुए वित्तीय वर्ष में बदलाव की सिफारिश को टाल दिया गया।
देश का पहला बजट भी 26 करोड़ रुपए के घाटे का बजट था। पहले बजट में कुछ राजस्व कमाई 171 करोड़ और खर्च 197 करोड़ रुपए रहने का अनुमान पेश किया गया था। (भाषा)