ओएनजीसी चाहती है कच्चे तेल दाम में वृद्धि
नई दिल्ली , सोमवार, 25 फ़रवरी 2013 (17:46 IST)
नई दिल्ली। सार्वजनिक क्षेत्र की तेल उत्खनन एवं उत्पादन कंपनी तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) चाहती है कि उसे उसके कच्चे तेल का दाम 60 डॉलर प्रति बैरल अथवा इससे अधिक मिले, ताकि कंपनी को अपनी विकास परियोजनाओं के लिए संसाधन जुटाने में समस्या नहीं हो।ओएनजीसी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक सुधीर वासुदेव से आगामी बजट से उम्मीद के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, हम अपने कच्चे तेल के लिए बेहतर प्राप्ति चाहते हैं। हम प्रति बैरल कच्चे तेल के लिए 60 डॉलर अथवा इससे अधिक दाम चाहते हैं। इससे हमें अपनी परियोजनाओं के लिए संसाधन जुटाने में आसानी होगी। दरअसल, महंगे पेट्रोलियम पदार्थों से आम उपभोक्ता को सुरक्षा देने के लिए ओएनजीसी, ऑयल इंडिया लिमिटेड और प्राकृतिक गैस कारोबार क्षेत्र की गेल इंडिया पेट्रोलियम पदार्थों की रिफाइनिंग और बिक्री करने वाली कंपनियों इंडियन ऑयल कार्पोरेशन, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन और भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड को कच्चे तेल की सस्ते दाम पर आपूर्ति करके मदद करती हैं।ओएनजीसी ने चालू वित्त वर्ष में दिसंबर तक के नौ महीनों में 37108 करोड़ रुपए की मदद इन कंपनियों को दी है। यह मदद रिफाइनिंग कंपनियों को सस्ता कच्चा तेल देकर की गई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में जहां कच्चे तेल का दाम 110 डॉलर प्रति बैरल के आसपास चल रहा है, वहीं ओएनजीसी ने पिछले नौ महीनों के दौरान करीब 47 डॉलर प्रति बैरल के दाम पर इन कंपनियों को कच्चा तेल बेचा।ओएनजीसी सीएमडी चाहते हैं कि उन्हें कम से कम 60 डॉलर प्रति बैरल का दाम मिले। अप्रैल से दिसंबर 2012 के नौ महीनों में कंपनी ने 61090 करोड़ रुपए का कारोबार कर 17537 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ कमाया है। हालांकि एक साल पहले कंपनी ने इसी अवधि में 19479 करोड़ रुपए का मुनाफा अर्जित किया था। पेट्रोलियम पदार्थों के मूल्य नियंत्रण के कारण खुदरा कंपनियों को होने वाले नुकसान की भरपाई की मौजूदा व्यवस्था में पिछले कुछ वर्षों से तेल उत्खन्न कंपनियों पर बोझ बढ़ता जा रहा है। सरकार ने 2003.04 से पेट्रोलियम पदार्थों की उनके अंतरराष्ट्रीय मूल्य से कम दाम पर बिक्री से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए तीन पक्ष, सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियां और उसके बाद कम से कम बोझ उपभोक्ता पर डालने की नीति अपनाई थी, लेकिन यह बोझ मुख्य तौर पर सरकार और तेल उत्खनन कंपनियों पर ही बढ़ता चला गया।वर्ष 2009-10 में जहां 46051 करोड़ रुपए के कुल नुकसान में 57 प्रतिशत सरकार और 31 प्रतिशत तेल उत्खनन कंपनियों ने वहन किया वहीं वर्ष 2011-12 में यह अनुपात और बढ़कर 1,38,541 करोड़ रुपए की कुल अंडर रिकवरी में 60 प्रतिशत सरकारी खजाने से पूरा किया गया जबकि 40 प्रतिशत ओएनजीसी, ऑयल और गेल के खाते में आया।चालू वित्त वर्ष के दौरान पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री पर तेल कंपनियों को नुकसान 1,50,000 करोड़ रुपए से अधिक रहने का अनुमान लगाया गया है। एक बैरल 140 लीटर के आसपास होता है। ओएनजीसी देश में कच्चे तेल का उत्पादन करने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम 113 डॉलर प्रति बैरल के आसपास चल रहा है, लेकिन ओएनजीसी को घरेलू बाजार में 60 डालर का भाव भी नहीं मिल पाता। (भाषा)