देश के उद्योग जगत ने केन्द्र सरकार के आगामी बजट में वित्तीय अनुशासन बनाए रखने की पुरजोर वकालत करते हुए कहा है कि सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश, स्थिर ब्याज दर परिवेश और निम्न कर ढाँचे के साथ बढ़ते वित्तीय घाटे की चुनौती का मुकाबला किया जा सकता है।
मनमोहन सरकार की दूसरी पारी का पहला बजट छह जुलाई को पेश होना है। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी यह बजट ऐसे समय पेश करने जा रहे हैं, जब वैश्विक वित्तीय संकट का असर घरेलू अर्थव्यवस्था की रफ्तार पर अंकुश लगाए हुए है। उद्योग जगत मंदी से उबरने के लिए कर रियायतों और वित्तीय प्रोत्साहनों की माँग कर रहा है। दूसरी तरफ सरकार को जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए अधिक संसाधनों की दरकार बनी हुई है।
वैश्विक मंदी के असर को दूर रखने के लिए सरकार पिछले वित्त वर्ष में तीन प्रोत्साहन पैकेज दे चुकी है, परिणामस्वरुप केन्द्र का वित्तीय घाटा 2.5 प्रतिशत के बजट अनुमान से बढ़ता हुआ 6.0 प्रतिशत पर पहुँच गया।
राजस्व घाटे का बजट अनुमान 1.0 प्रतिशत था, लेकिन वर्ष की समाप्ति पर यह 4.4 प्रतिशत हो गया। चालू वित्त वर्ष में स्थिति और गंभीर बनी हुई है, ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार वित्तीय जबावदेही और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) कानून दरकिनार कर सकती है।
इस कानून के मुताबिक केन्द्र सरकार को 2008-09 तक अपना राजस्व घाटा पूरी तरह समाप्त करना था, जबकि वित्तीय घाटा तीन प्रतिशत के दायरे में लाना था।
वाणिज्य एवं उद्योग मंडल एसोचैम ने वित्तीय अनुशासन बरतने की पुरजोर वकालत करते हुए कहा कि सरकार सार्वजनिक उपक्रमों की 10 प्रतिशत इक्विटी बेचकर भी वित्तीय अनुशासन बनाए रखने में सफल हो सकती है।
उद्योग मंडल ने तीन सूत्रीय सिफारिश करते हुए कहा है कि केन्द्रीय उपक्रमों में विनिवेश, स्थिर ब्याज दर और निम्न कर दर प्रशासन के जरिये आगामी बजट में वित्तीय अनुशासन यानी वित्तीय घाटे को बढ़ने से रोका जा सकता है।