Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

आज के शुभ मुहूर्त

(दशमी तिथि)
  • तिथि- मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30 तक, 9:00 से 10:30 तक, 3:31 से 6:41 तक
  • व्रत-भ. महावीर दीक्षा कल्याणक दि.
  • राहुकाल-प्रात: 7:30 से 9:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

महामारी से भगवान बुद्ध ने इस तरह बचाया था लोगों को

हमें फॉलो करें Motivational Story buddha

अनिरुद्ध जोशी

, बुधवार, 1 अप्रैल 2020 (18:03 IST)
अंगुत्तर निकाय धम्मपद अठ्ठकथा के अनुसार वैशाली राज्य में तीव्र महामारी फैली हुए थी। मृत्यु का तांडव नृत्य चल रहा था। लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि इससे कैसे बचा जाए। हर तरफ मौत थी। लिच्छवी राजा भी चिंतित था। कोई उस नगर में कदम नहीं रखना चाहता था। दूर दूर तक डर फैला था।
 
 
तब समस्थ लिचछवियों ने एकमत होकर यह तय किया कि अब इस महामारी से तो भगवान ही बचा सकते हैं। तब उन्होंने गौतम बुद्ध को वैशाली आने का निमंत्रण भेजा। वहां के लोगों का विश्वास था कि बुद्ध के आने और उनके दर्शन करने से महामारी समाप्त हो जाएगी। बुद्ध ने इस निमंत्रण को स्वीकार कर लिया।
 
भगवान बुद्ध का किसी सम्राट की तरह स्वागत किया गया। वैशाली संघ ने बुद्ध के आवास के लिए कुटागारशाला और आठ उद्यान समर्पित कर दिए। बुद्ध के कारण नगर की सभी तरह की गतिविधियां रूक गई। भगवान बुद्ध ने यहां रतन सुत्त का उपदेश दिया जिससे लोगों के रोग दूर हो गए। 
 
भगवान की उपस्थिति में मृत्यु का नंगा नृत्य धीरे-धीरे शांत हो गया था। मृत्यु पर तो अमृत की ही विजय हो सकती है। फिर जल भी बरसा था सूखे वृक्ष पुन: हरे हुए थे; फूल वर्षों से न लगे थे फिर से लगे थे फिर फल आने शुरू हुए थे। लोग अति प्रसन्न थे। भगवान ने जब वैशाली से विदा ली थी तो लोगों ने महोत्सव मनाया था उनके हृदय आभार और अनुग्रह से गदगद थे। 
 
फिर किसी भिक्षु ने भगवान से पूछा था। भंते यह चमत्कार कैसे हुआ? भगवान ने कहा था। भिक्षुओं बात आज की नहीं है। मैं पूर्वकाल में शंख नामक ब्राह्मण होकर प्रत्येक बुद्धपुरुष के चैत्यों की पूजा किया करता था। और यह जो कुछ हुआ है उसी पूजा के विपाक से हुआ है। जो उस दिन किया था वह तो अल्प था अत्यल्प था लेकिन उसका ऐसा महान कल हुआ है, बीज तो होते भी छोटे ही हैं। पर उनसे पैदा हुए वृक्ष आकाश को छूने में समर्थ हो जाते हैं। थोड़ासा त्याग भी अल्पमात्र त्याग भी महासुख लाता है। थोड़ीसी पूजा भी थोड़ासा ध्यान भी जीवन में क्रांति बन जाता है। और जीवन के सारे चमत्कार ध्यान के ही चमत्कार हैं। तब उन्होंने ये गाथाएं कही थीं-
 
मत्‍तासुखपरिच्‍चागा पस्‍से चे विपुलं सुखं।
चजे मत्‍तासुखं धीरो संपस्‍सं विपुलं सुखं ।।241।।
परदुक्‍खूपदानेन यो अत्‍तनो सुखमिच्‍छति।
वेरसंसग्‍गसंसट्ठे वेरा से न परिमुच्‍चति ।।242।।
 
अर्थात थोड़े सुख के परित्याग से यदि अधिक सुख का लाभ दिखायी दे तो धीरपुरुष अधिक सुख के खयाल से अल्पसुख का त्याग कर दे। दूसरों को दुख देकर जो अपने लिए सुख चाहता है, वह वैर में और वैर के चक्र में फंसा हुआ व्यक्ति कभी वैर से मुक्त नहीं होता।
 
इस घटना से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें विपरित परिस्थिति में अपनी सभी तरह की गतिविधियां छोड़कर भगवान की शरण में हो जाना चाहिए। शांतिपूर्वक बैठकर ध्यान करना चाहिए।

ओशो के प्रवचनों से साभार

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

2 अप्रैल 2020 के शुभ मुहूर्त