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सड़क 2 फिल्म समीक्षा: गड्ढों से भरी आलिया भट्ट और संजय दत्त की सड़क

हमें फॉलो करें सड़क 2 फिल्म समीक्षा: गड्ढों से भरी आलिया भट्ट और संजय दत्त की सड़क

समय ताम्रकर

, शनिवार, 29 अगस्त 2020 (10:59 IST)
Sadak 2 movie review in Hindi :  1991 में रिलीज हुई सड़क कोई ऐसी महान फिल्म नहीं है कि उसका सीक्वल बनाया जाए, लेकिन 21 साल बाद फिल्म निर्देशन में लौटे महेश भट्ट कुछ नया करने का आत्मविश्वास नहीं जुटा पाए और उन्होंने पिछली सफलता को ही वर्तमान में खींचने की चेष्टा की है।  
 
लगा था कि महेश के हाथ कोई ऐसी स्क्रिप्ट लगी है कि जिसके मोह में उन्होंने अपना संन्यास तोड़ दिया, लेकिन सड़क 2 देखने के बाद लगता है कि महेश ने वहीं से सिरा पकड़ने की कोशिश की है जहां से उन्होंने अपनी अंतिम निर्देशित फिल्म 'कारतूस' (1999) में छोड़ा था। 
 
21 साल में नदियों में बहुत पानी बह गया। फिल्म बनाने की विधा और दर्शकों की रूचि में जमीन-आसमान का अंतर आ गया। 
 
ओटीटी के दौर में जहां दर्शक उम्दा फिल्में और वेबसीरिज से रूबरू हो रहे हैं उस दौर में सड़क 2 जैसी फिल्में खालिस मनोरंजन की कसौटी पर भी खरी नहीं उतरती है। सिनेमाघर में भी फिल्म रिलीज होती तो निश्चित रूप से पिटती। 
 
सड़क के किरदार रवि (संजय दत्त) को सड़क 2 में दिखा कर उन्होंने तार जोड़ा है। पूजा अब दुनिया में नहीं रही है और उम्रदराज रवि को जिंदगी जीने का कोई मकसद नजर नहीं आता। जान देने की असफल कोशिश भी वह कर चुका है। 
 
तब उसकी जिंदगी में आती है आर्या (आलिया भट्ट), जो उसकी बेटी समान है। आर्या की अपनी कहानी है। उसकी जान के पीछे कुछ लोग पड़े हैं। रवि को जीने का मकसद मिल जाता है कि आर्या की जान बचाना है। 
 
थोड़े टर्न और ट्वीस्ट स्क्रिप्ट में दिए गए हैं। सौतेली मां, पाखंडी साधु, हृदय परिवर्तित हत्यारा, हाथ का पंजा कटा विलेन,  जैसे किरदारों के जरिये फिल्म में समय-समय पर चौंकाया गया है, लेकिन ये अब स्टीरियो टाइप किरदार नब्बे के दशक की फिल्मों में ही अच्छे लगते हैं।
 
शुरुआत के पन्द्रह-बीस मिनट बोरियत से भरे हैं। फिर थोड़ा रंग चढ़ने लगता है, लेकिन यह असर ज्यादा देर कायम नहीं रहता। उबड़-खाबड़ और हाईवे के बीच सड़क 2 झूलती रहती है और फिर कच्चे रास्ते पर चली जाती है।
 
महेश भट्ट का निर्देशन भी डावांडोल है। उन्होंने आज के दौर में बनने वाली फिल्मों की तरह भी फिल्म को ट्रीटमेंट देने की कोशिश की है, लेकिन समय-समय पर वे अपने 90 के दशक वाले रंग में भी आते दिखे। जब-जब उन पर यह सवारी आई फिल्म दर्शकों का साथ छोड़ती नजर आई और दु:ख की बात यह है कि फिल्म के रनिंग टाइम में इसका अच्‍छा-खासा हिस्सा है।   
 
संजय दत्त से न पहले एक्टिंग होती थी और न ही अब। जवानी में तो स्क्रीन प्रेजेंस के सहारे वे स्टार बन गए, लेकिन अब वो बात भी नहीं रही। फिल्म में उनके किरदार का दबदबा है, लेकिन संजय अपने अभिनय से दबदबा बनाने में चूक गए। 
 
इस बात की शर्त लगाई जा सकती है कि यदि यह महेश भट्ट की फिल्म नहीं होती तो आलिया भट्ट जैसी प्रतिभाशाली हीरोइन यह फिल्म कभी नहीं करती। आलिया के साथ महेश को फिल्म बनानी ही थी तो बेहतर स्क्रिप्ट का चुनाव करना था। एक दोयम दर्जे के रोल में जान फूंकने के अलावा आलिया कुछ नहीं कर सकती थीं। 
 
आदित्य रॉय कपूर 'आशिकी 2' वाले मोड में ही चल रहे हैं या निर्देशक उनसे ऐसी डिमांड करते हैं ये खोज का विषय है। बावजूद इसके वे सड़क 2 में ठीक लगे। जीशू सेनगुप्ता उम्दा कलाकार हैं, लेकिन इस तरह के रोल में वे मिसफिट लगे। मकरंद देशपांडे में सदाशिव अमरापुरकर की झलक दिखाने का प्रयास बचकाना लगा। मकरंद ने बुरी तरह निराश किया। 
 
कभी महेश भट्ट की ज्यादातर फिल्मों का हिस्सा बनने वाले आकाश खुराना, गुलशन ग्रोवर, मोहन कपूर सड़क 2 चेहरे दिखा कर उस दौर की याद ताजा करते रहे। पूजा भट्ट की सड़क वाली क्लिपिंग ही चलाई गई हैं।  
 
संगीत हमेशा से महेश भट्ट की फिल्मों का मधुर रहा है। यहां भी उन्होंने कई गाने फिल्मों में रखे हैं। गाने अच्छे जरूर हैं, लेकिन हिट नहीं। फिल्म को शूट अच्छे से किया गया है और किरदार के हाव-भाव के मुताबिक लाइट्स और शेड का प्रयोग उम्दा है। 
 
कुल मिलाकर यह सड़क गड्ढों से भरी है। 
 
बैनर : विशेष फिल्म्स
निर्माता : मुकेश भट्ट
निर्देशक : महेश भट्ट
कलाकार : संजय दत्त, आलिया भट्ट, आदित्य रॉय कपूर, जीशू सेनगुप्ता, मकरंद देशपांडे, गुलशन ग्रोवर
* डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर उपलब्ध  
रेटिंग : 1.5/5 

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