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Runway34 Review रनवे 34 फिल्म समीक्षा: थोड़े झटके, थोड़ा ईंधन कम, लेकिन सहज लैंडिंग

हमें फॉलो करें Runway34 Review रनवे 34 फिल्म समीक्षा: थोड़े झटके, थोड़ा ईंधन कम, लेकिन सहज लैंडिंग

समय ताम्रकर

, शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022 (15:29 IST)
Runway34 Review अजय देवगन द्वारा निर्देशित फिल्म 'रनवे 34' सच्ची घटना से प्रेरित होकर बनाई गई मूवी है जिसमें एक पायलट तमाम नियमों को ताक में रखते हुए खराब मौसम में भारी जोखिम उठाकर प्लेन को जमीन पर उतारता है। काम तो वह सफलतापूर्वक कर देता है, लेकिन फिर उसके खिलाफ जांच बैठती है और मुकदमा चलता है। 
 18 अगस्त 2015 को जेट एयरवेज़ की दोहा-कोच्ची फ्लाइट को खराब मौसम और अनक्लियर विजिबिलिटी के चलते सुबह 5.45 पर लैंड कराया गया था। इसको आधार बनाकर रनवे 34 की कहानी लिखी गई है। कैप्टन विक्रांत खन्ना (अजय देवगन) पर दुबई से कोचीन फ्लाइट ले जाने की जवाबदारी है। फ्लाइट के समय से 15 घंटे पहले तक वह खूब शराब पीता है। फर्स्ट ऑफिसर तान्या (रकुल प्रीत सिंह) के साथ जब वह दुबई से फ्लाइट उड़ाता है तो उसकी हालत ठीक नहीं है। हैंगओवर के कारण वह परेशान है। आंखें लाल हैं। तान्या यह बात नोट कर लेती है, लेकिन कुछ बोलती नहीं है। 
 
कोचिन जब वे पहुंचने वाले होते हैं तो खबर मिलती है कि वहां मौसम बहुत खराब है। वे फ्लाइट को डाइवर्ट करने का कहते हुए बंगलुरू जाने का कहते है, लेकिन तान्या की भी बात अनसुनी करते हुए विक्रांत फ्लाइट को तिरुअनंतपुरम ले जाता है। वहां का मौसम कोचिन से भी ज्यादा खराब हो जाता है। ईधन खत्म हो रहा है। ऐसे में तमाम चेतावनी को नजरअंदाज करते हुए विक्रांत तिरुअनंतपुरम एअरपोर्ट के रनवे 34 पर विमान को उतारता है। इसके बाद उसके खिलाफ जांच चलती है। 
 
रनवे दो भागों में बंटी फिल्म है। इंटरवल के पहले फ्लाइट को उतारने का रोमांच है। इंटरवल के बाद कोर्टरूम ड्रामा है जिसमें एरोप्लेन एक्सीडेंट इनवेस्टिगेशन ब्यूरो के तेजतर्रार नारायण वेदांत (अमिताभ बच्चन) की बारीकी से की गई जांच का सामना विक्रांत और तान्या करते हैं। 
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इंटरवल के पहले वाला भाग अच्छा है। कॉकपिट में बैठे पायलट के सामने पैदा हुई मुसीबतों को अच्छे से दिखाया गया है। किस तरह से विक्रांत और तान्या इससे जूझते हैं और सुरक्षित लैंडिंग करते हैं ये हिस्सा रोमांच पैदा करता है। कुछ दृश्य ऐसा प्रभाव पैदा करते हैं कि दर्शकों को लगता है कि वे खुद विमान में बैठे हैं और समस्या से जूझ रहे हैं। 
 
विक्रांत को बेहद होशियार पायलट बताया गया है, उसे अपने 'फोटोग्राफिक मैमोरी' पर नाज है। सारे आंकड़े उसे याद रहते हैं। हजारों फीट ऊंचाई पर वह कहता है कि यहां पर भावनाएं नहीं केलकुलेशन और मैथ्स चलता है इसलिए उसकी बात पर यकीन हो जाता है। 
 
विमान में बैठे यात्री जरूर 'स्टीरियोटाइप' हैं, पारसी, सिख, मुस्लिम किरदार फिल्मी लगते हैं और यात्री उस समय भी ओवररिएक्ट करते नजर आते हैं जब परिस्थितियां नियंत्रण में होती है। इन दृश्यों को बेहतर किया जा सकता था। 
 
इंटरवल के बाद कोर्टरूम ड्रामा बहुत प्रभावित नहीं करता, जबकि उसमें अमिताभ बच्चन जैसे कलाकार की एंट्री होती है। नारायण को बेहद होशियार और बाल की खाल निकालने वाला बंदा बताया गया है, लेकिन उसकी पूछताछ में वो तीखापन नजर नहीं आता। 
 
विक्रांत की मेडिकल रिपोर्ट के बारे में ज्यादा बात नहीं की गई। वह बंगलुरु में सेफ लैंडिंग के बजाय तिरुअनंतपुरम को क्यों चुनता है, इस पर भी स्थिति को ज्यादा स्पष्ट नहीं किया गया है। कोर्टरूम ड्रामा, लेखन के मामले में मार खा गया, यहां पर थोड़ा ध्यान दिया जाता तो फिल्म अलग स्तर को छू सकती थी। बेहतर ये होता कि कोर्टरूम ड्रामे के साथ फ्लाइट लैंडिंग के कुछ दृश्यों को जोड़ा जाता तो फिल्म में रोमांच बढ़ जाता।  
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एअरलाइंस मालिकों का लालच और पायलट तथा क्रू मेंबर्स के प्रति उनका कठोर व्यवहार को बोमन ईरानी के किरदार के जरिये दर्शाया गया है। ये बहुत प्रभावी भले ही नहीं हो, लेकिन अपनी बात कह देता है। 
 
निर्देशक के रूप में अजय देवगन सीधी लाइन पर चले हैं। उन्होंने फिल्म में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं दिए हैं। स्टीरियो टाइप किरदार और फैमिली ड्रामे के रूटीन हिस्से को छोड़ दिया जाए तो उन्होंने पहले हाफ को रोमांचक बनाया है। अपनी तकनीकी टीम से अच्छा काम लिया है। पहले हाफ का ज्यादातर हिस्सा एक विमान में ही फिल्माया गया है इसके बावजूद बोर नहीं करता। अजय ने फिल्म को तेज गति से दौड़ाया है और ढाई घंटे की फिल्म होने के बावजूद समय का पता नहीं चलता। 
अभिनेता के रूप में अजय ठीक-ठाक रहे हैं। उन्होंने ज्यादा एक्सप्रेशन्स नहीं दिए हैं, जो किरदार पर सूट नहीं करता। अमिताभ बच्चन का किरदार को लेखक ने कमजोर कर दिया है, जिससे वे ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाए। रकुल प्रीत सिंह को जितना भी मौका मिला उन्होंने अपना काम अच्छे से किया। 
 
वीएफएक्स टीम के काम में सफाई है और कई सी‍न रियल लगते हैं। असीम बजाज का कैमरावर्क उम्दा है और एडिटिंग शॉर्प है। 
 
रनवे 34 के सफर में थोड़े झटके हैं, थोड़ा ईधन कम है, लेकिन लैंडिंग सहज है। 
 
निर्माता-निर्देशक : अजय देवगन
कलाकार : अजय देवगन, रकुल प्रीत सिंह, अमिताभ बच्चन 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 28 मिनट 
रेटिंग : 3/5 

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