Crazxy movie review: चक्रव्यूह में फंसा अभिमन्यु

समय ताम्रकर
शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2025 (13:11 IST)
1984 में अमिताभ बच्चन स्टारर मूवी ‘इंकलाब’ रिलीज हुई थी, जिसका एक गाना बहुत लोकप्रिय हुआ था- ‘अभिमन्यु चक्रव्यूह में फंस गया है तू’। शायद इसी गाने से लेखक और निर्देशक ‍गिरीश कोहली ने प्रेरणा लेकर ‘क्रेजी’ फिल्म बनाई है ‍जिसकी हम बात करने जा रहे हैं। इस गाने का इस्तेमाल भी ‘क्रेजी’ में किया गया है और फिल्म का लीड कैरेक्टर अभिमन्यु, एक चक्रव्यूह में फंस जाता है। 
 
पेशे से डॉक्टर अभिमन्यु एक गलत ऑपरेशन कर देता है और अदालत के बाहर हुए सेटलमेंट के अनुसार वह पांच करोड़ रुपये पार्टी को देने के ‍लिए ‍निकलता है, लेकिन इसी बीच उसकी बेटी का अपहरण हो जाता है और उससे पांच करोड़ रुपये फिरौती मांगी जाती है। फिल्म के शुरुआत के 10 मिनट में ही ये सब बातें सामने आ जाती हैं और फिर सारा समय गुत्थी को सुलझाने में जाता है। 
 
फिल्म मात्र 93 मिनट की है, लेकिन ‍स्क्रिप्ट में पर्याप्त मसाला नहीं है। पंचर टायर बदलने से लेकर तो वीडियो कॉल के जरिये अभिमन्यु द्वारा जूनियर से सर्जरी करवाने तक जैसी अनावश्यक बातों के जरिये फिल्म को खींचा गया है। 
 
फिल्म के अंत पर दर्शकों की ‍निगाह लगी रहती है कि अभिमन्यु की बेटी के अपहरण की क्या कहानी है और अंत ऐसा है जिस पर यकीन करना मुश्किल है। नि:संदेह इमोशनल एंगल क्लाइमैक्स में दर्शकों को कनेक्ट करता है, लेकिन लॉजिक के तराजू पर बात कमजोर हो जाती है। 
 
अभिमन्यु का ‍किरदार कंफ्यूज करता है। एक ओर उसे लापरवाह दिखाया गया है जो गलत ऑपरेशन करता है। तो दूसरी ओर उसे मरीजों के लिए इतना चिंता करने वाला बताया है कि वह वीडियो कॉल के जरिये सर्जरी गाइड करता है। फिल्म में उसे ज्यादातर समय भला इंसान बताया गया है, तो बेटी के साथ वह गलत व्यवहार क्यों करता है इस पर फिल्म में जो कारण बताया गया है वो इसलिए गले नहीं उतरता क्योंकि फिल्म उसे अच्छे व्यक्ति के रूप में पेश करती है।

 
पूरी फिल्म में एक ही एक्टर है। टीनू आनंद, शिल्पा शुक्ला सहित सारे कलाकारों की ‍सिर्फ आवाज ही सुनाई गई है। यह काम एक प्रयोग के बतौर किया गया है, इससे ज्यादा इसका महत्व नहीं है। इससे फिल्म थोड़ी उबाऊ हो जाती है। आखिर कितनी देर तक आप सोहम शाह को कार चलाते हुए देख सकते हैं? फिल्म के अंत में ही अभिमन्यु की बेटी की झलक देखने को मिलती है। 
 
गिरीश कोहली का लेखन की बजाय बतौर ‍निर्देशक काम बेहतर है। उन्होंने शॉट अच्छे लिए हैं। अभिमन्यु की परेशानी को दर्शक महसूस करते हैं, लेकिन बतौर लेखक वे इसमें थोड़े थ्रिलिंग मोमेंट जोड़ने में कामयाब होते तो फिल्म की कमियों को दर्शक इग्नोर कर सकते थे। 
 
सोहम शाह उम्दा कलाकार हैं। पूरी फिल्म में केवल वे ही हैं। कई दृश्यों में उन्हें बिना संवाद के सिर्फ एक्सप्रेशन के जरिये ही काम चलाया है और अपना काम बेहतरीन तरीके से किया है। टीनू आनंद सिर्फ अपनी आवाज के जरिये ही जगह बना लेते हैं। 
 
ऐसी फिल्मों में गानों की गुंजाइश कम होती है, लेकिन गीतों का इस्तेमाल समझदारी से किया गया है। गानें उम्दा हैं। तकनीकी रूप से फिल्म उच्च स्तर की है और सिनेमाटोग्राफी शानदार है। 
 
क्रेजी जैसी फिल्म महंगे दामों के टिकट खरीद कर सिनेमाघर में देखना महंगा सौदा है, इसे ओटीटी प्लेटफॉर्म पर देखना बेहतर है। 

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