Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

पानीपत : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें पानीपत : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

, शनिवार, 7 दिसंबर 2019 (14:51 IST)
258 वर्ष पहले पानीपत की तीसरी लड़ाई सदाशिव राव भाऊ और अहमद शाह अब्दाली के बीच लड़ी गई थी। दोनों के इसके पीछे मकसद थे। 
 
मराठों के बढ़ते साम्राज्य से परेशान होकर नजीब उद्दौला अफगानिस्तान के बादशाह अब्दाली से मदद मांगता है कि यदि वह मराठों को पराजित कर दे तो पूरे हिन्दुस्तान पर उसका कब्जा हो सकता है। जब अब्दाली उसकी बात मान कर भारत आ पहुंचता है तो उसे रोकने के लिए अन्य राजाओं के साथ सदाशिव युद्ध करने का फैसला करता है। 
 
इस घटना को लेकर आशुतोष गोवारीकर ने 'पानीपत' नामक फिल्म बनाई है। फिल्म में दिखाया गया है कि उस समय क्या परिस्थितियां थीं। क्यों अब्दाली को रोका जाना जरूरी था। क्यों सदाशिव के लिए लड़ना जरूरी था। किस तरह से इस युद्ध के हालात पैदा हुए। किस तरह से सदाशिव ने युद्ध की तैयारियां की। रणनीति बनाई। 
 
चंद्रशेखर धवलीकर, रंजीत बहादुर, आदित्य रावल और आशुतोष गोवारीकर ने मिलकर यह कहानी लिखी है। नाटकीय प्रभाव पैदा करने के लिए कल्पना का भी इस्तेमाल किया। 
 
भारतीय इतिहास का यह एक ऐसा युद्ध है जिसके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते हैं इसलिए इतिहास के पन्नों से निकाल कर इसे फिल्म का रूप दिया गया है। 
 
फिल्म में पूरी कहानी पार्वती बाई (कृति सेनन) के जरिये बताई गई है जो कि सदाशिव राव भाऊ की पत्नी है। शुरुआत में सदाशिव की बहादुरी को लेकर सीन गढ़े गए हैं ताकि दर्शकों के मन में एक वीर की छवि अंकित हो। 
 
इसके बाद अब्दाली से युद्ध के पहले की तैयारियों पर आधी से ज्यादा फिल्म खर्च की गई है। इस दौरान कई किरदार सामने आते हैं। कई घटनाएं घटित होती हैं। यह हिस्सा लंबा जरूर है, लेकिन रोचक भी है। इसके बाद क्लाइमैक्स में युद्ध दिखाया गया है। यह युद्ध ऐसा नहीं दिखाया गया है कि दर्शक वाह कहें, लेकिन बुरा भी नहीं है। 
 
फिल्म की लंबाई थोड़ा परेशान करती है। आशुतोष गोवारीकर लंबी फिल्म बनाने के लिए जाने जाते हैं। यहां पर भी उन्होंने कुछ दृश्यों को बेवजह लंबा खींचा है जिससे कई दृश्यों का प्रभाव कम हो गया है। 
 
फिल्म के मुख्य कलाकारों का अभिनय औसत है जिससे कई दृश्यों में वो बात नहीं बन पाई जो अच्छे कलाकारों के होने से बनती है। भव्यता जरूर नजर आती है, लेकिन सेट का नकलीपन भी जाहिर होता रहता है। 
 
एकाध गाने को छोड़ दिया जाए तो फिल्म का संगीत खास नहीं है। इन राजा महाराजाओं को गाते और नाचते देखना जमता नहीं है। इससे बचा जाना था। 
 
निर्देशक के रूप में आशुतोष गोवारीकर ने फिल्म को सरल तरीके से पेश किया है। फिल्म में कई किरदार हैं। कई जगहों के नाम है। कई घटनाएं हैं। यह सब याद रखना आसान नहीं होता। दर्शकों के लिए कन्फ्यूजन पैदा करता है, लेकिन आशुतोष का प्रस्तुतिकरण एकदम सरल होने के कारण दर्शकों के लिए मुश्किल पैदा नहीं होती। 
 
फिल्म की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कुछ खामियों के बावजूद भी यह फिल्म दर्शकों की रूचि अंत तक बनाए रखती है। 
 
अर्जुन कपूर को उनकी स्टार वैल्यू से कहीं बड़ा किरदार निभाने को मिला है। उनके पास बेहतरीन मौका था, लेकिन वे इसे भुना नहीं पाए। एक्टिंग में उनकी अपनी सीमाएं हैं और यहां भी वे इसे तोड़ नहीं पाए। सदाशिव राव भाऊ कम और अर्जुन कपूर ज्यादा लगे।
 
कृति सेनन अपनी एक्टिंग से प्रभावित करती हैं। उन्होंने अपने किरदार को अच्‍छे से स्क्रीन पर पेश किया है। संजय दत्त का काम औसत है। उनके तीखे तेवर नजर नहीं आते। 
 
पद्मिनी कोल्हापुरे और जीनत अमान जैसी अभिनेत्रियों को लंबे समय बाद स्क्रीन पर देखना अच्‍छा लगा। मोहनीश बहल, मिलिंद गुनाजी, सुहासिनी मुले, नवाब शाह सहित सपोर्टिंग कास्ट का काम अच्‍छा है। 
 
कुल मिलाकर भारतीय इतिहास के इस महत्वपूर्ण चैप्टर को फिल्म के रूप में देखा जा सकता है। 
 
 
निर्माता : सुनीता गोवारीकर, रोहित शेलातकर
निर्देशक : आशुतोष गोवारीकर
संगीत : अजय-अतुल
कलाकार : अर्जुन कपूर, कृति सेनन, संजय दत्त, पद्मिनी कोल्हापुरे, मोहनीश बहल, कुणाल कपूर, सुहासिनी मुले, ज़ीनत अमान
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 53 मिनट 22 सेकंड 
रेटिंग : 3/5 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Bigg Boss 13 : खींचातानी में टूटी रश्मि देसाई की अंगुली, बोलीं- छोड़ दूंगी शो