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मनमर्जियां : फिल्म समीक्षा

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समय ताम्रकर

अपराध और हिंसा पर फिल्म बनाना फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप का कम्फर्ट ज़ोन है, इससे बाहर निकलते हुए उन्होंने रोमांटिक फिल्म 'मनमर्जियां' बनाई है। ये अच्छी बात है कि निर्देशक के रूप में उन्होंने अपनी सरहदें लांघी हैं। 
 
'मनमर्जियां' 1999 में प्रदर्शित फिल्म संजय लीला भंसाली की फिल्म 'हम दिल दे चुक सनम' का अनुराग वर्जन है। यह पहली बार है जब अनुराग ने अपनी फिल्म नहीं लिखी है। इसे कनिका ढिल्लो ने लिखा है और उन्होंने कई फिल्मों से प्रेरणा ली है। जब वी मेट, वो सात दिन और हम दिल दे चुके सनम जैसी फिल्मों की याद आती है। 
 
कहानी अमृतसर में सेट है। विक्की (विक्की कौशल) और रूमी (तापसी पन्नू) एक दूसरे को बेहद चाहते हैं। प्यार के साथ फ्यार भी उनके लिए बहुत मायने रखता है। एक दिन दोनों की चोरी पकड़ी जाती है। रूमी कहती है कि वह विक्की से ही शादी करेगी और यदि विक्की तैयार नहीं हुआ तो वह किसी से भी शादी कर लेगी। जिम्मेदारी के नाम विक्की घबरा जाता है और वह रूमी के घर शादी की बात करने ही नहीं पहुंचता। आखिरकार रूमी लंदन के बैंकर रॉबी (अभिषेक बच्चन) के साथ अरेंज मैरिज के लिए तैयार हो जाती है। 
 
विक्की इस शादी के खिलाफ है। वह रूमी के साथ भाग जाता है, लेकिन उसका लापरवाह स्वभाव फिर आड़े जाता है। उसे पता ही नहीं कि रूमी को लेकर कहां जाना है? क्या करना है? इससे खफा होकर रूमी घर लौट आती है, पर विक्की के प्रति उसकी मोहब्बत में कोई कमी नहीं आती। 
 
शादी के ठीक एक दिन पहले फिर रूमी और विक्की भागने का प्लान बनाते हैं, लेकिन विक्की फिर दगा देता है और रूमी की शादी रॉबी से हो जाती है। रॉबी यह जानते हुए कि रूमी से शादी कर लेता है कि विक्की उसका बॉयफ्रेंड है। शादी के बाद भी विक्की को रूमी भूला नहीं पाती। अपनी मनमर्जी चलाती है जिससे इस यह प्रेम त्रिकोण बेहद जटिल हो जाता है। 
 
फिल्म की कहानी नई नहीं है, लेकिन अनुराग कश्यप का ट्रीटमेंट इस फिल्म को अलग बनाता है। रूमी और विक्की के कन्फ्यूजन को वे काफी हद तक दिखाने में सफल रहे हैं। उन्होंने अपनी बात कहने के लिए दर्जन भर गानों का सहारा लिया है और इस रोमांटिक फिल्म को म्यूजिकल भी बनाया है। 
 
फिल्म कुछ जुदा होने की कोशिश करती है। प्यार को काला या सफेद के बजाय ग्रे कहती है। 'जमाना है बदला, मोहब्बत भी बदली, घिसे पिटे वर्जन नू, मारो अपडेट' कहते हुए 'प्यार' और 'फ्यार' के बीच की लाइन को 'ब्लर' भी करती है, लेकिन इन बातों को हौले से छूती है। 
 
रूमी और विक्की के कैरेक्टर्स के जरिये बताया गया है कि प्यार और फ्यार के लिए शादी जरूरी नहीं है। बिना शादी के ही जब सब ठीक चल रहा है तो शादी कर मामले को क्यों उलझाया जाए? लेकिन समाज इस तरह के रिश्ते को पसंद नहीं करता है। रूमी और विक्की पर दबाव बनाया जाता है कि इस रिश्ते पर शादी की मुहर लगाई जाए। 
 
निर्देशक और लेखक ने युवा पीढ़ी के प्यार को लेकर कन्फ्यूज़न को दर्शाने की कोशिश की है, लेकिन कहीं-कहीं वे खुद भी कन्फ्यूज नजर आए। इसके साथ ही फिल्म की लंबाई (157 मिनट) भी बहुत ज्यादा है इस कारण कई बार फिल्म ठहरी हुई लगती है। 
 
स्क्रिप्ट में इस बात की कमी खलती है कि यदि रूमी का परिवार और विक्की का भी परिवार शादी के लिए राजी है तो विक्की क्यों बार-बार शादी के नाम पर भाग जाता है? विक्की और रूमी के बारे में सब कुछ जानते हुए भी रॉबी क्यों रूमी से शादी करने के लिए तैयार हो जाता है? 
 
स्क्रिप्ट की खामियों को काफी हद तक अनुराग कश्यप अपने निर्देशन के बल पर ढंक लेते हैं। उन्होंने फिल्म को बेहद अच्छे से शूट किया है। दो एक जैसी दिखने वाली लड़कियों के डांस, कहवा पीते खामोश लड़के और‍ स्क्रिप्ट में गानों को गूंथ कर फिल्म को देखने लायक बनाया है। उन्होंने रूमी और विक्की के प्यार को आक्रामकता के साथ दिखाया है। कई जगह फिल्म दोहराव का शिकार भी हुई है। 
 
कनिका ढिल्लो के संवाद अच्छे हैं। 'डिस्कशन अच्छी चीज होती है' जैसे कुछ बेहतरीन संवाद सुनने को मिलते हैं। फिल्म में एक अच्छा सीन लिखा गया है। रूमी जो खुले में सुट्टा लगाने से परहेज नहीं करती है, शादी के बाद अपने प्रेमी से चोरी-छिपे मिलने जाती है। इस पर उसका पति कहता है कि गाड़ी से जाया करो, मुंह छिपाकर चोरी से नहीं। शायद यहीं पर उसकी सोच अपने पति और खुद के प्रति बदलती है। 
 
फिल्म का सबसे चमकदार पहलू रूमी का किरदार है। इतना बिंदास महिला पात्र बहुत ही कम हिंदी फिल्म में देखने को मिला है। अपनी शर्तों पर जीने वाली, डॉमिनेटिंग, इच्छाओं को खुल कर व्यक्त करने वाली रूमी दरअसल इस फिल्म की हीरो है।

तापसी पन्नू ने यह किरदार निभाया है और यह उनके करियर का बेहतरीन अभिनय है। रूमी की आक्रामकता, बिंदासपन, छटपटाहट, प्यार, फ्यार को उन्होंने बेहतरीन तरीके से जिया है। हर सीन में वे अन्य कलाकारों पर भारी पड़ी हैं। 
 
विक्की कौशल का अभिनय भी बेहतरीन है, हालांकि कई बार लगता है कि उनके किरदार को लेखक और निर्देशक ने फिल्म के बीच भूला दिया है। अभिषेक बच्चन का निर्देशक ने चतुराई के साथ उपयोग किया है। वे अभिषेक के अभिनय की रेंज जानते हैं, इसलिए उन्होंने अभिषेक को ऐसे सीन नहीं दिए जहां वे अनकम्फर्टेबल महसूस करें। उन्हें कम संवाद दिए गए हैं। 
 
अमित त्रिवेदी का संगीत शानदार है और फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाने में अहम योगदान देता है। 
 
मनमर्जियां एक अच्छी और औसत फिल्म के बीच झूलती रहती है, लेकिन अंत में यह बात कहने में कामयाब रहती है कि वही करो जो आपका दिल कहे।  
 
बैनर : ए कलर येलो प्रोडक्शन, इरोस इंटरनेशनल, फैंटम फिल्म्स 
निर्माता : आनंद एल. राय 
निर्देशक : अनुराग कश्यप 
संगीत : अमित त्रिवेदी 
कलाकार : तापसी पन्नू, अभिषेक बच्चन, विक्की कौशल
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 37 मिनट 16 सेकंड 
रेटिंग : 3/5 

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