Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

लूडो : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें लूडो : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

अनुराग बसु उन फिल्मकारों में से हैं जिनका कहानी को पेश करने का तरीका जटिल होता है। वे दर्शकों को सब कुछ आसानी से नहीं परोसते हैं बल्कि चाहते हैं कि दर्शक अपना दिमाग फिल्म में लगाए। कहानी पर उनका प्रस्तुतिकरण हमेशा भारी रहता है, लेकिन केवल इसी वजह से ही फिल्म देखने लायक नहीं बन जाती है। 
 
लूडो में भी अनुराग पहले घंटे में दर्शकों को छकाते रहते हैं। चार-पांच कहानियां साथ में चलती रहती हैं, नए-नए किरदार आते रहते हैं, जो दर्शकों को उलझाते हैं, रोमांच बढ़ता है, लेकिन जैसे-जैसे तस्वीर साफ होने लगती है, फिल्म में रूचि घटने लगती हैं क्योंकि कहानी चिर-परिचित लगती है। उनमें नई बात नजर नहीं आती। 
 
अनुराग ने लूडो के खेल से भी फिल्म को जोड़ा है। लूडो में चार रंगों की चार-चार गोटियां होती हैं, इसी को आधार बना कर उन्होंने कलाकारों को रंग दिए हैं। लेकिन ये जुड़ाव स्वाभाविक नहीं लगता। 
 
बिट्टू (अभिषेक बच्चन) गुंडा है, जिसके कारण उसकी प्रेमिका ने दूसरे से शादी कर ली है। प्रेमिका पर आर्थिक संकट मंडरा रहा है। बिट्टू के पास एक बहुत छोटी लड़की पहुंचती है कि उसका अपहरण कर लो क्योंकि उसके माता-पिता प्यार नहीं करते हैं। बिट्टू उसकी भी मदद करता है ताकि प्रेमिका की भी मदद हो सके। गुंडे बिट्टू में एक अच्छे इंसान की झलक देखने को मिलती है। 
 
आलोक कुमार (राजकुमार राव) पिंकी (फातिमा सना शेख) से एकतरफा प्यार करता है। पिंकी की शादी हो चुकी है, लेकिन आलोक का दीवानापन जारी है। पिंकी के पति को जेल हो जाती है और उसे छुड़ाने के लिए आलोक कानून तक अपने हाथ में ले लेता है। 
 
आकाश चौहान (आदित्य रॉय कपूर) और श्रुति (सान्या मल्होत्रा) का अंतरंग वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो रहा है। श्रुति कि शादी किसी और से होने वाली है। इस वीडियो को हटाने के लिए दोनों जी-तोड़ कोशिश में लगे हुए हैं। 
 
गैंगस्टर सत्तू (पंकज त्रिपाठी) से हर कहानी के तार जुड़े हुए हैं। कहीं ना कहीं सभी का रास्ते एक जगह आकर मिलते हैं। 
 
अलग-अलग कहानियों को साथ में पिरोने का प्रयोग अनुराग बसु अपनी फिल्म 'लाइफ इन ए मेट्रो' में भी कर चुके हैं। लूडो उसी शैली को आगे बढ़ाती है। लूडो की कुछ कहानियां मिलती-जुलती है। जरूरी नहीं है कि हर कहानी मनोरंजक लगे। 
 
इन कहानियों से पाप-पुण्य की बातें भी जोड़ी गई हैं। जिस तरह से लूडो के खेल में हर गोटी आखिर में एक ही घर में जाती है, उसी तरह आदमी मरने के बाद एक ही जगह जाता है। पाप-पुण्य की मान्यता को फिल्म एक तरह से खारिज करती है। 
 
लेखक अनुराग पर निर्देशक अनुराग भारी पड़ते हैं। उन्होंने सभी कहानियों को 'फनी' तरीके से पेश किया है। छोटे-छोटे दृश्य उन्होंने पेश किए हैं जो फिल्म को खूबसूरत भी बनाते हैं और इमोशन भी पैदा करते हैं। गैंगस्टर भी प्यारा लगता है और पुलिस इंस्पेक्टर भी। सारे किरदार दिल के अच्छे हैं, लेकिन हालातों में जकड़े हुए हैं। एक सामान्य कहानी को अपने निर्देशकीय कौशल के बूते पर अनुराग दर्शकों को बांध कर जरूर रखते हैं।  
 
शुरुआती घंटे के बाद फिल्म में कहीं-कहीं बोरियत भी हावी हो जाती है। फिल्म को बहुत लंबा खींचा गया है और उलझी हुई चीजें सुलझने का नाम ही नहीं लेती। फिल्म आसानी से आधा घंटा छोटी की जा सकती थी। 
 
सभी कलाकारों का काम बढ़िया है। अभिषेक बच्चन को यदि संवाद कम दिए जाए तो वे बेहतर लगते हैं और यही काम अनुराग ने किया है। आदित्य रॉय कपूर और सान्या मल्होत्रा के बीच कुछ संवाद बढ़िया हैं और दोनों ने अच्छा अभिनय किया है। 
 
पंकज त्रिपाठी पर मिर्जापुर के कालीन भैया का रंग चढ़ा नजर आया। राजकुमार राव अपनी अभिनय शैली से दर्शकों का मनोरंजन करने में सफल रहे हैं। फातिमा सना शेख ने शायद ही ऐसा रोल पहले कभी निभाया हो। रोल उनके लिए मुश्किल था, लेकिन उन्होंने इसे आसान बनाया। सपोर्टिंग कास्ट ने अपना काम खूब किया। 
 
अनुराग बसु बेहतरीन फिल्ममेकर हैं, लेकिन 'लूडो' में वे कुछ नया नहीं पेश कर पाए, अपने आपको उन्होंने दोहरा दिया। 
 
निर्माता : भूषण कुमार, दिव्य खोसला कुमार, कृष्ण कुमार, अनुराग बसु, तानी बसु, दीपशिखा बोस 
निर्देशक : अनुराग बसु 
संगीत : प्रीतम
कलाकार : अभिषेक बच्चन, राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी, आदित्य रॉय कपूर, फातिम सना शेख, सान्या मल्होत्रा
अवधि : 150 मिनट
रेटिंग : 2.5/3 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

The Suicide Squad में नजर आएंगे Sylvester Stallone, डायरेक्टर ने किया कंफर्म