इच्छा, नियति और भाग्य के बीच का समीकरण बहुत उलझा हुआ है। आप इच्छा करते हैं, नियति अपना रोल निभाती है और भाग्य का अपना खेल होता है। इस उलझाव को 'लूप लपेटा' में दर्शाया गया है। यह जर्मन फिल्म 'रन लोला रन' का हिंदी रीमेक है जो 1998 में रिलीज हुई थी। लूप लपेटा में कहानी को थोड़े बदलाव के साथ पेश किया गया है और समय के लूप में फंसे दो प्रेमियों की कहानी दर्शाई गई है।
सावि (तापसी पन्नू) एक एथलीट है, लेकिन चोट की वजह से उसके सपने टूट गए। अस्पताल की छत से छलांग लगाकर आत्महत्या करने ही वाली थी कि उसे सत्या (ताहिर राज भसीन) बचा लेता है। वह कहता है कि तुम मर नहीं रही थी बल्कि जो जीवन जी रही थी उसे खत्म करने जा रही थी। सत्या को जिंदगी में एक मौके की तलाश है ताकि वह अमीर बन जाए। इस शॉर्टकट के चक्कर में जुआ खेलना उसकी आदत बन गई है।
सावि और सत्या साथ रहने लगते हैं। एक दिन सावि को सत्या का फोन आता है कि उससे 50 लाख रुपयों का बैग गुम हो गया है। यदि 50 मिनट में पैसों का इंतजाम नहीं हुआ तो उसका बॉस उसका काम तमाम कर देगा। सावि अपने बॉयफ्रेंड को बचाने और पैसों का इंतजाम करने के लिए गोआ की सड़कों पर दौड़ पड़ती है। उसकी रेस समय के साथ है।
इस कहानी के साथ दूसरी कहानियां भी हैं। दो मूर्ख बेटे अपने पिता की ज्वैलरी शॉप लूटने की योजना बना रहे हैं। एक टैक्सी ड्राइवर इस बात पर गुस्सा है कि उसकी गर्लफ्रेंड की दूसरे लड़के से शादी हो रही है। एक अति उत्साही पुलिस वाला है। ये सारे किरदार सावि और सत्या से टकराते हैं और इनकी कहानी आपस में जुड़ जाती है।
कहानी लूप में चलती है यानी कि सत्या को बचाने के लिए सावि निकलती है और गलतियां हो जाती हैं। इसके बाद कहानी वहीं से फिर शुरू होती है और सावि कुछ गलतियां सुधारती है। तीसरी बार सावि फिर से रिस्टार्ट करती है। एक ही कहानी को तीन बार लूप में चलाया गया है।
रन लोला रन का हिंदी संस्करण विनय छावल, केतन पेडगांवकर, आकाश भाटिया और अर्णव नंदूरी ने मिल कर लिखा है। सत्यवान और सावित्री की पौराणिक कहानी को उन्होंने इससे जोड़ा है और मुख्य किरदारों के नाम भी यही दिए हैं। सावित्री ने सत्यवान के जीवन के लिए यमराज से लड़ाई की थी। यहां पर सत्या की लाइफ बचाने के लिए सावि निकल पड़ती है।
फिल्म के कुछ किरदार और प्रसंग कुछ लोगों को बेतुके लग सकते हैं। मिसाल के तौर पर अप्पू-गप्पू के किरदार कई लोगों को बोरिंग लगेंगे तो कई को व्यंग्य से भरपूर। ज्वैलरी शॉप को लूटने की इनकी प्लानिंग हंसाती है। टैक्सी ड्राइवर और उसकी प्रेमिका की कहानी थोड़ी खींची हुई है और उसमें ज्यादा ह्यूमर नहीं है। सत्या के किरदार के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी गई है। टाइम का लूप कैसे बार-बार चलता है इसको लेकर स्पष्टता नहीं है। इन कमियों के बावजूद इन लेखकों का प्रयास सराहनीय है। उन्होंने संवादों और किरदारों के जरिये बांध कर रखा है।
निर्देशक आकाश भाटिया ने कहानी को नॉन लीनियर तरीके से पेश किया है। उन्होंने कई प्रयोग भी किए हैं। फ्लेशबैक का इस्तेमाल शानदार है। एक कहानी को तीन बार कहना आसान नहीं था, लेकिन आकाश अपने निर्देशकीय कौशल के बूते पर कामयाब रहे। वे तकनीकी रूप से दमदार नजर आए और उन्होंने तकनीशियनों से शानदार काम लिया है।
हर लूप में कहानी के कुछ तार छोड़ना और दूसरे में जोड़ना सफाई के साथ किया गया है। एक ही सीन में उन्होंने कई बात कहने की कोशिश भी की है। 8 नंबर एक लूप की तरह है और फिल्म में इसका इस्तेमाल बार-बार है। 80 मिनट का समय, घड़ी में 8 का बजना और कैसिनो में 8 नंबर का दांव लगाना जैसे छोटे-छोटे डिटेल्स का उन्होंने ध्यान रखा है।
लूप लपेटा निर्देशक से भी ज्यादा एडिटर की फिल्म है और प्रियांक प्रेम कुमार ने कमाल की एडिटिंग की है। उन्होंने हर लूप में कहानी को जिस तरह से जोड़ा और आगे बढ़ाया है वो तारीफ के काबिल है वरना दर्शकों को कन्फ्यूजन भी हो सकता था। साथ ही उन्होंने दर्शकों से भी अपेक्षा की है कि वे भी कई बातें याद रखें। स्क्रीन को भी उन्होंने क्षैतिज (horizontal), विकर्ण (diagonal) और मल्टीपल (multiple) भागों में विभक्त किया है और दर्शकों को एंगेज रखा है।
सिनेमाटोग्राफर यश खन्ना का काम अद्भुत है। उनके कैमरा एंगल कमाल के हैं। लाइट्स और कलर पैलेट्स फिल्म देखते समय एक अलग ही अहसास कराते हैं। सिनेमाघर में यह फिल्म रिलीज होती तो और मजा देती।
फिल्म का एक्टिंग डिपार्टमेंट मजबूत है। तापसी पन्नू एथलीट बन चुकी हैं, लेकिन यहां पर उन्हें एक अलग मकसद के लिए भागते देखना भी अच्छा लगता है। पहली फ्रेम से ही वे अपने किरदार को दांतों से पकड़ लेती हैं और दिखा देती हैं कि वर्तमान दौर में क्यों उन्हें प्रतिभाशाली अभिनेत्रियों में से एक माना जाता है।
ताहिर राज भसीन, तापसी का साथ शानदार तरीके से निभाते हैं। ताहिर और तापसी की केमिस्ट्री पूरी फिल्म में नजर आती है। इन दोनों की एक्टिंग भी फिल्म को देखने लायक बनाती है। माणिक पपनेजा (अप्पू), राघव राज कक्कर (गप्पू), दिव्येंदु भट्टाचार्य (विक्टर), राजेन्द्र चावला (ममलेश) ने भी पूरा साथ दिया है।
लूप लपेटा एक्सपरिमेंटल मूवी है। लूप में एक ही कहानी को बार-बार देखना भले ही ज्यादा लोगों को पसंद न आए, लेकिन एक्टिंग और टेक्नीकल डिपार्टमेंट के शानदार काम के लिए फिल्म देखी जा सकती है।
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निर्माता : तनुज गर्ग, अतुल कस्बेकर, आयुष माहेश्वरी
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निर्देशक : आकाश भाटिया
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कलाकार : तापसी पन्नू, ताहिरा राज भसीन, माणिक पपनेजा, राघव राज कक्कर, दिव्येंदु भट्टाचार्य, राजेन्द्र चावला
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ओटीटी : नेटफ्लिक्स * 2 घंटे 11 मिनट
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रेटिंग : 3/5