केसरी चैप्टर 2 मूवी रिव्यू: अक्षय कुमार की फिल्म दिखाती है जलियांवाला बाग की एक अनकही लड़ाई

समय ताम्रकर
शुक्रवार, 18 अप्रैल 2025 (13:14 IST)
जलियांवाला बाग कांड को हुए सौ बरस से ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन 13 अप्रैल 1919 को हुई इस बर्बर घटना के बारे में जब भी सुनने, देखने या पढ़ने को ‍मिलता है तो भारतीयों का खून खौलने लगता है और आंखें नम हो जाती हैं। जनरल डायर नामक दरिंदे ने निर्दोष और निहत्थे भारतीयों को चारों ओर से घेर कर कर गोलियों की बरसात कर दी थी और हजारों लोगों की जान चली गई थी, जिसमें 6 माह के बच्चे भी थे। 
 
इस भयावह त्रासदी को लेकर कई फिल्में बनीं, लेकिन केसरी चैप्टर 2 इस दर्दनाक इतिहास को एक नए नजरिए से प्रस्तुत करती है, उस व्यक्ति की कहानी के माध्यम से जिसने ब्रिटिश साम्राज्य को अदालत में चुनौती दी थी।
 
यह कहानी है सर शंकरन नायर की, एक वकील, जो वायसराय एग्जिक्यूटिव काउंसिल के सदस्य थे और ब्रिटिशों के लिए काम करते थे, लेकिन जलियांवाला बाग कांड ने उनका दृष्टिकोण बदल दिया। फिल्म दर्शाती है कि कैसे एक जागरूक नागरिक अपने जमीर की आवाज़ सुनकर साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ खड़ा होता है।
 
रघु पलट और पुष्पा पलट द्वारा लिखी पुस्तक The Case That Shook the Empire पर आधारित इस फिल्म की शुरुआत ही जलियांवाला बाग की घटना से होती है, जिससे दर्शक तुरंत फिल्म की गहराई में उतर जाते हैं। फिल्म का केंद्रीय भाग एक कोर्टरूम ड्रामा है, जहां शंकरन नायर, अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ मुकदमा लड़ते हैं। 
 
जज, पुलिस, ज्यूरी, सब अंग्रेज, और शंकरन अकेले। इस संघर्ष को निर्देशक करण सिंह त्यागी ने यथार्थवाद से प्रस्तुत किया है।


 
हालांकि फिल्म में कई दृश्य प्रभावशाली हैं, लेकिन कोर्टरूम सीन्स में और अधिक तीव्रता लाई जा सकती थी। जोरदार संवादों की कमी महसूस होती है। शंकरन के निजी जीवन और मानसिक संघर्ष को और अधिक विस्तार से दिखाया जाना चाहिए था।
 
निर्देशक करण सिंह त्यागी ने ‍फिल्म को ओवर ड्रामेटिक नहीं होने दिया है। उन्होंने फिल्म में देशभक्ति को ओवर द टॉप नहीं ‍किया है। लेकिन सिनेमा के नाम पर उन्होंने लिबर्टी, खासकर फिल्म के दूसरे घंटे में, ज्यादा ली है। अक्षय कुमार और माधवन के ‍किरदार की दुश्मनी को ठीक से उभारा नहीं गया है। शॉट उन्होंने शानदार ‍फिल्माए हैं और कमियों के बावजूद वे दर्शकों पर पकड़ बनाने में कामयाब रहे हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक का उन्होंने अच्छा उपयोग किया है। 
 
अक्षय कुमार ने सपाट चेहरे के साथ अपना रोल अदा ‍किया है। उनके चेहरे पर कुछ दृश्यों में जरूरी भावों की कमी महसूस होती है। अनन्या पांडे ने अपना काम अच्छे से ‍किया है, हालांकि उनका रोल बहुत पॉवरफुल नहीं है। आर माधवन, अमित सियाल और रेजिन कैसेंड्रा अपनी एक्टिंग से प्रभावित करते हैं। जनरल डायर के रोल में सिमोन पैस्ले खूंखार लगे हैं। मसाबा गुप्ता पर फिल्माया गया गीत कहानी की गंभीरता को तोड़ता है और इसे आसानी से हटाया जा सकता था।
 
तकनीकी रूप से फिल्म मजबूत है। देबोजीत रे की सिनेमाटोग्राफी जलियांवाला बाग और कोर्टरूम के दृश्यों को गहराई देती है। नितिन बैद की एडिटिंग टाइट है और फिल्म को बिखरने नहीं देती। बैकग्राउंड म्यूजिक भावनात्मक असर को बढ़ाता है और दर्शकों को कहानी से जोड़े रखता है।
 
केसरी चैप्टर 2 एक साहसी और जरूरी कहानी को सामने लाती है। यह न केवल इतिहास की एक अनकही लड़ाई को उजागर करती है, बल्कि यह भी बताती है कि न्याय के लिए लड़ी गई हर लड़ाई एक प्रेरणा बन सकती है। फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है उसका विषय और शंकरन नायर जैसा नायक, जिसे आज भी बहुत कम लोग जानते हैं।
 

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