बात को लंबा खींचा जाऐ तो वो भले ही कितनी अच्छी हो अपना असर खो बैठती है। फिल्म बनाने के यह बेसिक नियमों में से एक है, लेकिन हंसमुख नामक वेबसीरिज में इसका पालन नहीं किया गया। जो बात तीन एपिसोड के लायक थी उस पर दस एपिसोड बना डाले। इस सीरिज का मूल आइडिया अच्छा है, लेकिन इस आइडिए को ठीक से पेश नहीं किया गया।
सरहानपुर में रहने वाला हंसमुख एक स्टैंड अप कॉमेडियन है जिसे उसका गुरु गुलाटी उभरने नहीं देता। तंग आकर हंसमुख अपने गुरु को मौत के घाट उतार देता है और उसके बाद स्टेज पर जाकर वाह-वाही लूट लेता है। आमतौर पर स्टेज पर जाते समय वह बहुत नर्वस रहता है, लेकिन वह यह बात महसूस करता है कि किसी की हत्या करने के बाद उसके अंदर एक अलग ही फील आती है और उसका आत्मविश्वास स्टेज पर कार्यक्रम देते समय बढ़ जाता है।
हंसमुख की लोकप्रियता मुंबई तक जा पहुंचती है और उसे टीवी शो 'कॉमेडी बादशाहो' में बतौर वाइल्ड कार्ड एंट्री मिलती है जिसमें उसका सामना कॉमेडी के महारथी केके से होता है। हंसमुख अपने साथ बतौर मैनेजर जिम्मी को ले जाता है।
हर परफॉर्मेंस के पहले जिम्मी और हंसमुख किसी न किसी का मर्डर करते हैं और उसके बाद हंसमुख के परफॉर्मेंस में चार चांद लग जाते हैं।
कॉमेडी और थ्रिल का यह जोड़ शुरुआती एपिसोड में लुभाता है, लेकिन यह सिलसिला लंबा चलता है तो दर्शक महसूस करते हैं कि कहानी जहां की तहां है और आगे ही नहीं बढ़ रही है। जैसे-जैसे सीरिज के एपिसोड सामने आते जाते हैं कहानी की कमियां तेजी से उभरने लगती हैं। दर्शकों के मन में सवाल छोड़ने लगती है।
जिस आसानी से हंसमुख और जिम्मी मशहूर नेता, वकील, अभिनेता की हत्या करते हैं, कहानी अपनी विश्वसनीयता खोने लगती है। ऐसा लगता है कि इन दोनों के लिए हर जगह मर्डर करना बाएं हाथ का खेल है। वे कहीं भी अपना ये 'कमाल' दिखा सकते हैं। पुलिस दिखाई गई है जो इन हत्याओं के पीछे कौन है इसका पता लगाने में जुटी है, लेकिन यह पुलिस काम कम और बक-बक ज्यादा करती है।
चूंकि कहानी का लीड कलाकार स्टैंड अप कॉमेडियन है, इसलिए ढेर सारे ऐसे दृश्य हैं जहां पर हंसाने की कोशिश की गई है, लेकिन इनका लेखन इतना कमजोर है कि आपको हंसी नहीं आती। लेखक व्हाट्स एप की ही मदद ले लेते तो कई बेहतरीन जोक्स मिल सकते थे। एक चुटकुला इतनी बार रखा गया है कि सुन सुन कर कान पक जाते हैं।
रियलिटी शो के पीछे की राजनीति को भी दिखाया गया है कि किस तरह से टीआरपी बढ़ाने के लिए खेल होते हैं, शो को फिक्स किया जाता है, गुंडों का कितना आतंक है, लेकिन इनमें कोई नई बात नजर नहीं आती।
वीर दास ने लीड रोल निभाया है और उनका अभिनय इतना कमजोर है कि आपको कोफ्त होने लगती है। उन्होंने जम कर बोर किया है। अपने आपको बहुत 'भला' या 'नेकदिल' दिखाने के लिए उन्हें बहुत प्रयास करने पड़े हैं। उनके कैरेक्टर में कई शेड्स थे, जैसे वे किलर हैं, कॉमेडियन हैं, सताए हुए हैं, उभरते हुए सितारे हैं, लेकिन वे एक ही एक्सप्रेशन के जरिये काम चलाते रहे। उनको कॉमेडी करते देखना आसान नहीं है।
जिम्मी की भूमिका में रणवीर शौरी का अभिनय उम्दा है। सुहैल नैयर, इनामुल हक और अमृता बागची भी अपना असर छोड़ते हैं। मनोज पाहवा और रवि किशन का ठीक से उपयोग नहीं किया गया।
निर्देशक निखिल गोंसाल्विस अपने स्तर पर सीरिज को बेहतर बनाने की कोशिश करते नजर आए, लेकिन कमजोर लेखन उनकी कोशिशों पर पानी फेर गया।
हंसमुख की कहानी अभी अधूरी है और दूसरे सीज़न में इसे पूरा किया जाएगा, लेकिन अहम सवाल यह है कि क्या दर्शक इसे देखने के लिए उत्सुक रहेंगे?
हसमुख वेबसीरिज (सीजन : 1, एपिसोड : 10)
नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध
निर्देशक : निखिल गोंसाल्विस
कलाकार : वीर दास, रणवीर शौरी, सुहैल नैयर, इनामुल हक, अमृता बागची, मनोज पाहवा, रवि किशन
* 18 वर्ष से ऊपर वालों के लिए
* रेटिंग : 2/5