Ganapath movie review : बोरिंग पथ पर गणपत

समय ताम्रकर
शुक्रवार, 20 अक्टूबर 2023 (13:34 IST)
Ganapath movie review : क्वीन और सुपर 30 जैसी फिल्म बनाने वाले निर्देशक विकास बहल ने 'गणपत भाग 1: ए हीरो इज़ बोर्न' नामक फिल्म बनाई है। हॉलीवुड वाले 50 से लेकर 500 साल आगे की दुनिया पर फिल्म बना सकते हैं, तो बॉलीवुड वाले क्यों नहीं? यही सोचकर विकास ने 'गणपत' को लिखा और निर्देशित किया है। 
 
बताया जाता है कि एक बम फूटा और दुनिया दो हिस्सों में बंट गई। ऐश करते अमीरों की दुनिया और भूखे-नंगे गरीबों की दुनिया। अमीरों की दुनिया का वीएफएक्स देखकर ही मुंह में कंकड़ आने का फील आ जाता है। 
 
माना कि हमारी फिल्मों का बजट हॉलीवुड वालों जितना नहीं होता, लेकिन इतना घटिया वीएफएक्स? इतना नकलीपन देख हैरानी होती है कि जेब में पैसा नहीं तो फिर क्रिएटिविटी दिखाओ और वो भी नहीं है तो ऐसे विषय पर फिल्म ही नहीं बनाओ। 
 
खैर, वीएफएक्स वाली बात को साइड में रखते हैं। तो बात चल रही थी कहानी की। अमीर और गरीबों की दुनिया में हर रंग के लोग हैं, चाइनीज, भारतीय से लेकर तो अंग्रेज तक। सब हिंदी जानते हैं। कहानी कौन से साल की है यह नहीं बताया गया है। 


 
गरीबों की बस्ती में दलपति (अमिताभ बच्चन) नामक एक वृद्ध इंसान है। जिसे न जाने यह बात कैसे पता चलती है कि उसकी बहू के गर्भ में पल रहा बच्चा, जिसे वह गणपत कह कर पुकारता है, योद्धा या मसीहा बन कर आएगा और गरीबों के लिए लड़ेगा। अमीर और गरीब को विभाजित करने वाली दीवार को तोड़ेगा। उसकी बात सभी मानते हैं। यही से फिल्म की कहानी पटरी छोड़ देती है। 
 
इससे भी बड़ा सवाल तो ये बनता है कि बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन इतने छोटे और महत्वहीन रोल क्यों करते हैं? धन-दौलत, शोहरत, सब कुछ तो है उनके पास, फिर ऐसी क्या मजबूरी है कि ऐसी भूमिका के लिए वे हां कह देते हैं। 
 
अब गणपत (टाइगर श्रॉफ) युवा हो चुका है और हालात ऐसे बनते हैं कि वह अमीरों की दुनिया में पहुंच चुका है। उसे अपने अतीत के बारे में कुछ भी नहीं पता। गणपत का पहला सीन है जिसमें वह नींद से जागता है और बिस्तर के चारों ओर दर्जन भर हसीनाएं लेटी हुई हैं। वह मुस्कुराता है और गुनगुनाता है- दुनिया हसीनों का मेला, रात भर मैं खूब खेला। 
 
जानी के लिए गणपत काम करता है जो रिंग में पहलवानों को लड़वाता है। लोग पैसा लगाते हैं और वह हेराफेरी कर पैसे कमाता है। गरीबों की बस्ती से गणपत लड़ने वाले युवाओं को लाता है। फिर विकास बहल अपनी कमजोर तर्कों के सहारे ऐसे हालात बनाते हैं कि गणपत गरीबों की बस्ती में पहुंच जाता है। 
 
वहां उसे कुछ लोग पहचान जाते हैं कि यह तो गणपत है जो हमारे लिए लड़ेगा। कैसे पहचानते हैं? इस सवाल का जवाब नहीं मिलेगा। लॉकेट और टैटू जैसे थके थकाए फॉर्मूलों का भी इस्तेमाल कर लेते तो समझ आता कि पहचान की वजह क्या है, लेकिन इससे भी परहेज किया गया। 
 
खैर जब तक यह खेल चलता रहता है तब तक निर्देशक ने फिल्म का मूड हल्का-फुल्का रखा है, लेकिन ऐसे दृश्य सिरे से गायब हैं जिनसे दर्शकों का मनोरंजन हो। दर्शक खूब बोर होते हैं और बार-बार हाथ मोबाइल पर जाता है। इन हल्के-फुल्के दृश्यों में टाइगर श्रॉफ की एक्टिंग की पोल खुल जाती है। एक्शन सीन में तो हाथ-पैर खूब चला लेते लेते हैं, लेकिन एक्टिंग के नाम पर टाइगर के हाथ-पैर फूल जाते हैं। 
 
इंटरवल के ठीक पहले एक बढ़िया एक्शन सीन आता है और इसके बाद गाड़ी कच्चे में उतर जाती है। इंटरवल के बाद कहानी को बैक सीट पर डाल कर रिंग फाइटिंग पर फोकस किया गया, लेकिन ये सीन इतने उबाऊ और पकाऊ हैं कि आप इंतजार करते है कि कब फिल्म खत्म हो। 
 
फोकट के एक-दो टर्न और ट्विस्ट डाले गए हैं, ताकि दर्शक चौंके, लेकिन समझदार दर्शक इन बातों को बहुत पहले ही पकड़ लेते हैं। 
 
बॉलीवुड के इतिहास पर नजर डाले तो कई ऐसे उदाहरण मिलेंगे जब कम बजट में अच्छी फिल्म बनाने वाला निर्देशक को ज्यादा बजट और स्टार्स दे दिए जाए तो बहक जाता है। ठीक वही विकास बहल के साथ हुआ है। इतनी कमजोर लेखन और निर्देशन की उम्मीद उनसे नहीं थी। न ढंग का स्क्रीनप्ले लिख सके, न दर्शकों का मनोरंजन कर सके और न ठीक-ठाक फिल्म बना सके। 
 
टाइगर श्रॉफ ने खूब स्टंट्स दिखाए, लेनि उनकी उछलकूद तभी ठीक लगती है जब स्क्रिप्ट का साथ हो, वरना ये सर्कस में तब्दील हो जाती है। उनसे कई गुना बेहतर कृति सेनन रहीं, जिन्हें कम सीन मिले लेकिन काम अच्छा किया। 
 
गीत-संगीत की बात करना फिजूल है। बैकग्राउंड म्यूजिक कान फोड़ देता है। टाइगर जब-जब हीरो वाले अंदाज दिखाते हैं तो Here I come, I am fighter बजने लगता है। कितनी बार वही सुनेंगे? बैकग्राउंड म्यूजिक इतना लाउड है कि फिल्म की शुरुआत में वाइस ओवर ठीक से सुनाई नहीं देता। 
 
गणपत भाग 2 भी आने वाला है, क्योंकि कहानी अभी अधूरी है। पता नहीं ऐसी फिल्मों को दो भाग में बनाने की हिम्मत कैसे कर लेते हैं? 
 
फिल्म के एक सीन में टाइगर श्रॉफ कहते हैं- उम्मीद नहीं पालनी चाहिए क्योंकि ये बड़ी कुत्ती चीज होती है। लेकिन 'गणपत' का तो ये हाल है कि बिना उम्मीद के भी इस फिल्म को क्या पोस्टर को भी नहीं देखना चाहिए। 
 

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