धमाका : फिल्म समीक्षा

धमाका हर मामले में कमजोर है। चाहे वो लेखन हो, राम माधवानी का डायरेक्शन हो या कार्तिक आर्यन की एक्टिंग हो।

समय ताम्रकर
सोमवार, 22 नवंबर 2021 (13:04 IST)
कार्तिक आर्यन की फिल्म 'धमाका' कोरियन फिल्म 'द टेरर लाइव' (2013) पर आधारित एक न्यूज रूम ड्रामा है। मीडिया का टीआरपी की रेटिंग को लेकर निचले स्तर तक पहुंच जाना, मीडियाकर्मी का आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा को लेकर सब कुछ दांव पर लगा देना, आम आदमी के खिलाफ बढ़ता अन्याय और भ्रष्टाचार से फलती-फूलती सरकार जैसे मुद्दों को इस फिल्म के जरिये उठाने की कोशिश की गई है, लेकिन बात नहीं बन पाती है।  
 
टीआरटीवी भरोसा के टॉप न्यूज एंकर अर्जुन पाठक (कार्तिक आर्यन) को रेडियो जॉकी बना दिया गया है जिससे वह दु:खी है। एक प्रोग्राम के दौरान उसके पास रघुबीर म्हाता का कॉल आता है। रघुबीर कहता है कि वह मुंबई स्थित सी लिंक को बम से उड़ाने वाला है। इस बात को अर्जुन मजाक समझता है, लेकिन रघुबीर एक विस्फोट कर देता है और कहता है कि वह थोड़ी देर बाद फिर कॉल करेगा। 
 
अर्जुन इस बात का फायदा उठा कर अपनी बॉस अंकिता (अमृता सुभाष) को इस बारे में बताता है और कहना है कि उसे फिर से न्यूज एंकर बनाया जाए क्योंकि उसके पास धमाकेदार ब्रेकिंग न्यूज है। अंकिता मान जाती है। रघुबीर का फोन आता है कि एक मंत्री के कारण तीन मजदूरों की जान गई है। वह मंत्री अर्जुन के चैनल पर आकर माफी मांगे वरना वह फिर से विस्फोट करेगा। 
 
अर्जुन अपने शो में रघुबीर से लाइव बात करता है। उसे समझाने की कोशिश करता है। उसकी बात सुनता है। साथ ही बात को लंबा खींचता है ताकि पुलिस को रघुबीर को पकड़ने का मौका मिले। अर्जुन की पत्नी सौम्या (मृणाल ठाकुर) सी लिंक पर लाइव रिपोर्ट कर रही है। अर्जुन और सौम्या तलाक लेने वाले हैं और अर्जुन को उसकी भी चिंता है। 
 
धमाका में कई बातें एक साथ चलती हैं, लेकिन सभी सतही लगती है। एक भी सीधे दर्शकों के दिल को नहीं छूती। अर्जुन और अंकिता का जो एंगल है वो अर्थहीन है। कहानी में इससे कोई खास मोड़ नहीं आता। लाइव कवरेज के दौरान ही दोनों पर्सनल हो जाते हैं। 
 
न्यूजरूम को जो ड्रामा दिखाया गया है वो रोचक नहीं है। इससे ज्यादा ड्रामा तो रियल न्यूज चैनल्स पर नजर आता है। मीडिया और सरकार पर सवाल खड़े करने की कोशिश की गई है, लेकिन बात नहीं बन पाती। 
 
रघुबीर और अर्जुन की बातचीत में कोई दम नहीं है। रघुबीर से अर्जुन न कुछ उगलवा पाता है और न ही पुलिस की कोई मदद कर पाता है। उसे लोगों से ज्यादा खुद के करियर की चिंता रहती है जो फिल्म को कमजोर करती है। एक न्यूज एंकर की कोई क्वालिटी उसमें नजर नहीं आती, उल्टा वो लड़खड़ाता रहता है। माना की हालात खतरनाक हैं, लेकिन यदि वह टॉप न्यूज एंकर है तो इस स्थिति को अच्छे हैंडल कर सकता था। 
 
परिदृश्य बहुत ही विचित्र है और लेखन अति सामान्य। स्क्रिप्ट में कई झोल हैं। आतंकवादी ने यह सब कैसे किया, इस पर बिलकुल बात नहीं की गई। स्टूडियो में विस्फोट कैसे हो रहे हैं? स्टूडियो में धमाका होने के बाद भी टीवी पर प्रसारण कैसे हो रहा है? ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब ही नहीं मिलते। मंत्री से सिर्फ माफी के लिए रघुबीर इतना सब कर रहा है यह बात हजम नहीं होती जबकि पूरी कहानी की इमारत ही इसी बात पर खड़ी की गई है।  
 
फिल्म का क्लाइमैक्स और भी निराश करता है। बात को और अच्छे तरीके से खत्म किया जा सकता था। अंत में दर्शकों को कुछ हासिल नहीं होता। 
 
निर्देशक राम माधवानी का प्रस्तुतिकरण सवालिया निशानों के घेरे में और अस्पष्ट है। कई बातें वे ठीक से समझा नहीं पाए हैं। किरदार परिस्थितियों से विपरीत रिएक्ट करते हैं जिससे कहानी अविश्वसनीय हो जाती है। कई बातें इतनी जल्दी घटित होती है कि हैरानी होती है। चूंकि यह फिल्म कोरोनाकाल में शूट हुई है इसलिए किए गए समझौतों का असर फिल्म में नजर आता है।  
 
कार्तिक आर्यन अपनी लवर बॉय इमेज के लिए जाने जाते हैं। धमाका में उन्हें कुछ अलग करने का मौका मिला, लेकिन वे कमाल नहीं दिखा पाए। अपने किरदार को दर्शकों से जोड़ पाने में वे असफल रहे हैं। मृणाल ठाकुर सहित अन्य कलाकार छोटे-छोटे रोल में हैं। 
 
कुल मिलाकर यह 'धमाका' फुस्सी ही साबित होता है, जो कुछ दिखाया गया है वह असंभव सा लगता है। 
 

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