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एके वर्सेज एके : फिल्म समीक्षा

हमें फॉलो करें एके वर्सेज एके : फिल्म समीक्षा

समय ताम्रकर

, शनिवार, 2 जनवरी 2021 (19:11 IST)
अनुराग कश्यप और विक्रमादित्य मोटवाने उन भारतीय फिल्मकारों में से हैं जो हमेशा नए प्रयोग करने के लिए उत्सुक रहते हैं और जोखिम भी उठाते हैं। कई बार इनके प्रयोग सराहनीय रहते हैं तो कभी-कभी विफल भी हो जाते हैं। ऐसी ही एक प्रयोगात्मक फिल्म 'एके वर्सेज एके' विक्रमादित्य ने बनाई है। 
 
पहले एके हैं अनिल कपूर, जो इस उम्र में भी फिट हैं, अपनी उम्र से बहुत कम दिखाई देते हैं और अभी भी डिमांड में हैं। दूसरे एके हैं अनुराग कश्यप, जो डार्क सब्जेक्ट पर फिल्म/वेबसीरिज बनाने के लिए जाने जाते हैं, विद्रोही किस्म के हैं और गुस्से से उबलते रहते हैं। 
 
इन दोनों को 'एके वर्सेज एके' में वैसा ही किरदार दिया गया है जैसे कि वे रियल लाइफ में हैं। यानी अनिल कपूर, अनिल कपूर हैं और अनुराग कश्यप, अनुराग कश्यप हैं। समझ ही नहीं आता कि ये अभिनय कर रहे हैं या जैसे वे हैं वैसे ही पेश आ रहे हैं। 
 
एक मंच पर दोनों का विवाद हो जाता है क्योंकि अनुराग कश्यप कहते हैं कि बॉलीवुड में आप तभी सफल हैं जब आपका सरनेम कपूर है। इस पर अनिल कपूर, कश्यप को बताते हैं कि उनकी फ्लॉप फिल्म भी अनुराग की बनाई हुई फिल्मों से कहीं करोड़ का ज्यादा कलेक्शन करती है। 
 
बात मंच से आगे निकल जाती है और अनुराग, अनिल की बेटी सोनम कपूर का अपहरण कर लेते हैं। अनिल के आगे कुछ शर्तें रख देते हैं। पूरी रात का समय है अनिल के पास और उन्हें अपने दम पर बेटी का पता पूरे मुंबई शहर में ढूंढना है। एक कैमरा लगातार अनिल और अनुराग को शूट करता रहता है क्योंकि यही अनुराग की फिल्म का प्लॉट है। 
 
आमतौर पर फिल्में रियलिटी के नजदीक होती है या किसी रियल घटना पर आधारित होती है, या फिर कल्पना की नींव पर इमारत बना दी जाती है। 'एके वर्सेज एके' की खासियत है कि यह इस लाइन के दोनों ओर चलती रहती है। कैरेक्टर्स रियल हैं और कहानी को आप काल्पनिक मान सकते हैं, या ऐसा सच में हुआ है ऐसा भी माना जा सकता है क्योंकि फिल्म इसी तरह से पेश की गई है। 
 
फिल्म दो घंटे से भी छोटी है, लेकिन अंत तक रोमांच बना रहता है। हालांकि कई बार आप महसूस करते हैं कि फिल्म को थोड़ा लंबा खींचा जा रहा है। थोड़ी एडिटिंग में सख्ती दिखाई जानी थी। फिल्म में कुछ ऐसी बातें, जोक्स हैं जिसे वो लोग बेहतर तरीके से समझ सकते हैं जो फिल्म इंडस्ट्री को नजदीक से जानते हैं या हार्ड कोर फैन हैं। 
 
मिसाल के तौर पर अनुराग को इस बात की खुन्नस है कि अनिल ने उनकी 'एल्विन कालीचरण' नामक फिल्म नहीं की। अनिल बताते हैं कि उस समय वे करियर के पीक पर थे और इस तरह की ऑफबीट फिल्म करने का जोखिम उठाने में उन्हें डर लगता था। कुछ सही बातें भी हो सकती हैं जैसे अनिल ने अनुराग के नाम की सिफारिश की थी। उनके फ्लैट की किश्त भरने में मदद की थी। 
 
अनिल कपूर, उनका बेटा हर्षवर्धन, भाई बोनी कपूर भी दिखाई देते हैं। अनिल कपूर और अनुराग कश्यप के घर पर भी शूटिंग की गई है। सोनम को लेकर उनके पति आनंद की चिंता भी है जो लगातार अनिल को फोन करता रहता है। इन सब प्रसंगों और लोगों से फिल्म दर्शकों के मन में विश्वास जगाती है कि यह सब कुछ सही में हुआ है। 
 
फिल्म के सस्पेंस को लगातार छुपा कर रखने की कोशिश की गई है, लेकिन 'होशियार' दर्शक ताड़ लेते हैं कि आखिरी में यह होगा और यहां पर निर्देशक तथा लेखक थोड़े कमजोर साबित होते हैं। फिल्म में कुछ सीन बेहतरीन हैं, जैसे पुलिस थाने का सीन जहां अनिल शिकायत दर्ज कराने जाते हैं, क्रिसमस मना रही भीड़ के बीच 'स्टार' अनिल पहुंच जाते हैं, अनुराग कश्यप को लोग अनुराग बसु या मधुर भंडारकर कह कर पुकारते हैं।  
 
फिल्म को दौड़ते-भागते फिल्माया गया है मानो दो व्यक्ति का कैमरा लेकर पीछा किया गया हो। अनिल कपूर ने 'अनिल कपूर' को बेहतरीन तरीके से निभाया है। '24' नामक टीवी सीरियल की वे याद दिला देते हैं। अनुराग कश्यप भी सशक्त अभिनेता हैं और उन्हें ज्यादा से ज्यादा फिल्मों में अभिनय करना चाहिए। अनिल बनाम अनुराग के इस संघर्ष और खींचतान को समय दिया जा सकता है। 
 
निर्माता : दीपा मोटवाने
निर्देशक : विक्रमादित्य मोटवाने
संगीत : आलोकनंदा दासगुप्ता
कलाकार : अनिल कपूर, अनुराग कश्यप, योगिदा बिहानी 
* नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध * 1 घंटा 48 मिनट
रेटिंग : 3/5 

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