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सुशांत सिंह राजपूत के परिवार ने लिखी चिट्ठी, बोले- मिल रहीं धमकियां, उछाला जा रहा कीचड़

हमें फॉलो करें सुशांत सिंह राजपूत के परिवार ने लिखी चिट्ठी, बोले- मिल रहीं धमकियां, उछाला जा रहा कीचड़
, बुधवार, 12 अगस्त 2020 (12:31 IST)
दिवंगत बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत केस की जांच तेज हो गई है। इस केस में हर दिन नए खुलासे की वजह से मामला सुलझने की बजाय थोड़ा उलझता सा नजर आ रहा है। अब इसी कड़ी में सुशांत के परिवार ने 9 पेज का बयान जारी किया है।

 
परिवार का आरोप है कि उन्हें सबक सिखाए जाने की धमकियां मिल रही हैं। इतना ही नहीं एक-एक करके एक्टर के परिवार के सदस्यों पर कीचड़ उछाला जा रहा है। इसके साथ ही सुशांत के परिवार ने रिया और मुंबई पुलिस पर भी आरोप लगाए हैं। सुशांत के परिवार ने फिराक जलालपुरी के एक शेर से पत्र की शुरुआत की और लिखा, 'तू इधर-उधर की ना बात कर ये बता कि काफिला क्यों लुटा, मुझे रहजनों से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है।'
 
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परिवार ने आगे लिखा, कुछ साल पहले की ही बात है। ना कोई सुशांत को जानता था, ना उसके परिवार को। आज सुशांत के निधन को लेकर करोड़ों लोग व्यथित हैं और सुशांत के परिवार पर चौतरफा हमला हो रहा है। अखबार पर अपना नाम चमकाने की गरज से कई फर्जी दोस्त-भाई-मामा बन अपनी-अपनी हांक रहे हैं। ऐसे में बताना जरूरी हो गया है कि आखिर ‘सुशांत का परिवार’ होने का मतलब क्या है?
 
सुशांत के माता-पिता कमाकर खाने वाले लोग थे। उनके हंसते खेलते पांच बच्चे थे। उनकी परवरिश अच्छी हो सके इसलिए नब्बे के दशक में गांव से शहर आ गए। रोटी कमाने और बच्चों को पढ़ाने में जुट गए। एक आम भारतीय माता-पिता की तरह उन्होंने मुश्किलें खुद झेली। अपने बच्चों को किसी बात की कमी नहीं होने दी। हौसले वाले थे तो कभी उनके सपनों पर पहरा नहीं लगाया। 
उन्होंने लिखा, कहते थे कि जो कुछ दो हाथ-पैर का आदमी कर सकता है, तुम भी कर सकते हो। पहली बेटी में जादू था। कोई आया और चुपके से उसे पारियों के देश ले गया। दूसरी राष्ट्रीय टीम के लिए क्रिकेट खेली। तीसरे ने कानून की पढ़ाई की तो चौथे ने फैशन डिजाइन में डिप्लोमा किया। पांचवा सुशांत था। ऐसा, जिसके लिए सारी माएं मन्नत मांगती हैं।
 
पूरी उमर, सुशांत के परिवार ने ना कभी किसी से कुछ लिया, ना कभी किसी का आहत किया। मदद करें...अग्रजों के वारिश हैं, एक अदना हिंदुस्तानी मरे, इन्हें क्यों परवाह हो?' पिता ने मदद की अपील करते हुए आगे लिखा, 'मदद करें। अग्रजों के वारिश हैं, एक अदना हिंदुस्तानी मरे, इन्हें क्यों परवाह हो? चार महीने बाद सुशांत के परिवार का डर सही साबित होता है। अंग्रेजों के दूसरे वारिस मिलते हैं। दिव्यचक्षु से देखकर बता देते हैं कि ये तो जी ऐसे हुआ है। व्यावहारिक आदमी हैं। पीड़ित से कुछ मिलना नहीं, सो मुलजिम की तरफ हो लेते हैं।
 
सुशांत के पिता अपनी बात को खत्म करते हुए आगे लिखते हैं, 'अंग्रेजों के एक और बड़े वारिश तो जालियावाला-फेम जनरल डायर को भी मात दे देते हैं। सुशांत के परिवार को कहते हैं कि तुम्हारा बच्चा पागल था, सुसाइड कर सकता था।'
 

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